वैज्ञानिकों पर भरोसे के मामले में भारत दूसरे नंबर पर

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 विश्व की तीसरी सबसे बड़ी वैज्ञानिक और तकनीकी जनशक्ति भी हमारे यहां यह भारतवासियों के लिए खुशी की खबर है, साथ ही विश्व पटल पर सम्मान की बात भी है। तमाम चुनौतियों के बावजूद भारत में वैज्ञानिकों एवं उनके रिसर्च वर्क के प्रति आम आदमी का विश्वास और सम्मान कायम है। अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर ह्यूमन बिहेवियर में प्रकशित नए अध्ययन के अनुसार मिस्र के बाद 68 देशों में भारत को वैज्ञानिकों पर भरोसे के मामले में दूसरे पायदान पर है। मिस्र शीर्ष पर है. उसके बाद भारत, नाइजीरिया, केन्या और ऑस्ट्रेलिया को रखा गया है। इसी तरह अमेरिका को बारहवें जबकि ब्रिटेन को 15वें स्थान पर रखा गया है। वहीं इन 68 देशों में अल्बानिया सबसे निचले पायदान पर है।यह अध्ययन हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की विक्टोरिया कोलोग्ना और ज्यूरिख यूनिवर्सिटी के नील्स जी मेडे के नेतृत्व में 169 संस्थानों के 241 शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम द्वारा किया है। इसमें बाथ विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ भी शामिल थे। इस सर्वेक्षण में शोधकर्ताओं ने 71,922 लोगों से उनकी राय ली है।

 दरअसल, वैज्ञानिक समाज में महत्वपूर्ण भूमिका रखते हैं। यह वैज्ञानिक ही हैं जिन्होंने मानव की जिदंगी को साल दर साल आसान ही बनाया है लेकिन क्या आम जनता भी विज्ञान और वैज्ञानिकों पर भरोसा करती है जो हमारे भविष्य को आकार दे रहे हैं, इन्हीं सवालों के जबाव ढूंढने के लिए शोधकर्ताओं ने भारत सहित 68 देशों में आम लोगों पर एक सर्वेक्षण किया था। सुखद बात यह रही कि इसमें सामने आया कि दुनिया के अधिकांश लोग अब भी वैज्ञानिकों पर भरोसा करते हैं। महिलाओं और बुजुर्गों का वैज्ञानिकों पर भरोसा पुरुषों और युवाओं से कहीं ज्यादा है। इसके साथ ही शहरी, शिक्षित और आर्थिक रूप से समृद्ध लोग वैज्ञानिकों पर अधिक विश्वास करते हैं। निष्कर्ष कुछ चिंताजनक पहलुओं को भी उजागर करते हैं। वैश्विक स्तर पर महज 42 फीसदी लोग मानते हैं कि वैज्ञानिक दूसरों के विचारों पर ध्यान देते हैं।

कुछ लोगों को यह भी लगता है कि वैज्ञानिक प्राथमिकताएं हमेशा उनकी प्राथमिकताओं से मेल नहीं खाती। अध्ययन के नतीजे दर्शाते हैं लोगों का वैज्ञानिकों पर भरोसा मजबूत है. फिर भी इसे बनाए रखने के लिए कुछ चुनौतियां हैं। ऐसे में इस भरोसे को कायम रखने के लिए शोधकर्ताओं ने सिफारिश की है कि वैज्ञानिकों से बात करनी चाहिए और उनकी राय लेनी चाहिए। अध्ययन में यह भी सामने आया है कि आमतौर पर भारतीय वैज्ञानिकों की काबिलियत और समाज कल्याण में उनके योगदान को सकारात्मक रूप से देखते हैं। अध्ययन इस बात को भी दर्शाता है कि विज्ञान के प्रति भारतीयों की मजबूत आस्था है। 78 फीसदी लोगों ने माना कि वैज्ञानिक महत्वपूर्ण शोध करने में सक्षम हैं। वहीं 57 फीसदी लोग वैज्ञानिकों को ईमानदार मानते हैं। इसी तरह 56 फीसदी का विचार है कि वैज्ञानिक समाज की भलाई के बारे में सोचते हैं। हालांकिए 42 फीसदी लोग ऐसे भी हैंए जिन्हें लगता है कि वैज्ञानिक दूसरों की बातों पर ध्यान देते हैं। इसी तरह ज्यादातर ;83 फीसदी लोगों का मानना है कि वैज्ञानिकों को अपना काम जनता के साथ साझा करना चाहिए। हालांकि 23 फीसदी लोगों का मानना है कि वैज्ञानिकों को विशिष्ट नीतियों को बढ़ावा देने से बचना चाहिए, जबकि 52 फीसदी का मानना है कि वैज्ञानिकों को नीति निर्माण में बड़ी भूमिका निभानी चाहिए।

वैज्ञानिक अप्रोच से ही देश का समुचित विकास संभव

किसी भी देश का विकास वहाँ के लोगों के विकास के साथ जुड़ा हुआ होता है। इसके मद्देनज़र यह ज़रूरी हो जाता है कि जीवन के हर पहलू में विज्ञान.तकनीक और शोध कार्य अहम भूमिका निभाएं। विकास के पथ पर कोई देश तभी आगे बढ़ सकता है जब उसकी आने वाली पीढ़ी के लिये सूचना और ज्ञान आधारित वातावरण बने और उच्च शिक्षा के स्तर पर शोध तथा अनुसंधान के पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हों। इसमें दो राय नहीं है कि भारतीय वैज्ञानिकों का जीवन और कार्य प्रौद्योगिकी विकास तथा राष्ट्र निर्माण के साथ गहरी मौलिक अंतःदृष्टि के एकीकरण का शानदार उदाहरण रहा है। लेकिन कुछ तथ्य ऐसे भी हैं जो इशारा करते हैं कि भारत आज विश्व में वैज्ञानिक प्रतिस्पर्द्धा के क्षेत्र में कहाँ ठहरता हैघ् भारत की अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में क्या स्थिति हैघ् आखिर क्यों भारत शोध कार्यों के मामले में चीनए जापान जैसे देशों से पीछे हैघ् ऐसी कौन.सी चुनौतियाँ हैं जो अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में भारत की प्रगति के पहिये को रोक रही हैंघ् इस दिशा में क्या कुछ समाधान किये जा सकते हैं. यूनेस्को के अनुसारए ज्ञान के भंडार को बढ़ाने के लिये योजनाबद्ध ढंग से किये गए सृजनात्मक कार्य को ही रिसर्च यानी अनुसंधान एवं डेवलपमेंट यानी विकास कहा जाता है। इसमें मानव जाति, संस्कृति और समाज का ज्ञान शामिल है और इन उपलब्ध ज्ञान के स्रोतों से नए अनुप्रयोगों को विकसित करना ही अनुसंधान और विकास का मूल उद्देश्य है।

अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियां

इंडियन साइंस एंड रिसर्च एंड डेवलपमेंट इंडस्ट्री रिपोर्ट के अनुसार भारत बुनियादी अनुसंधान के क्षेत्र में शीर्ष रैंकिंग वाले देशों में शामिल है।विश्व की तीसरी सबसे बड़ी वैज्ञानिक और तकनीकी जनशक्ति भी भारत में ही है। वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद ;ब्ैप्त्द्ध द्वारा संचालित शोध प्रयोगशालाओं के ज़रिये नानाविध शोधकार्य किये जाते हैं। भारत विज्ञान और प्रौद्योगिकी अनुसंधान के क्षेत्र में अग्रणी देशों में सातवें स्थान पर है। मौसम पूर्वानुमान एवं निगरानी के लिये प्रत्युष नामक शक्तिशाली सुपरकंप्यूटर बनाकर भारत इस क्षेत्र में जापानए ब्रिटेन और अमेरिका के बाद चौथा प्रमुख देश बन गया है। नैनो तकनीक पर शोध के मामले में भारत दुनियाभर में तीसरे स्थान पर है। वैश्विक नवाचार सूचकांक में हम 57वें स्थान पर हैं। भारत ब्रेन ड्रेन से ब्रेन गेन की स्थिति में पहुँच रहा है और विदेशों में काम करने वाले भारतीय वैज्ञानिक स्वदेश लौट रहे हैं। व्यावहारिक अनुसंधान गंतव्य के रूप में भारत उभर रहा है तथा पिछले कुछ वर्षों में हमने अनुसंधान और विकास में निवेश बढ़ाया है। वैश्विक अनुसंधान एवं विकास खर्च में भारत की हिस्सेदारी 2017 के 3.70 से बढ़कर 2018 में 3.80 percent हो गई।

 भारत एक वैश्विक अनुसंधान एवं विकास हब के रूप में तेजी से उभर रहा है। देश में मल्टी.नेशनल कॉर्पोरशन रिसर्च एंड डेवलपमेंट केंद्रों की संख्या 2010 में 721 थी और अब नवीनतम आँकड़ों के अनुसार यह 2018 में 1150 तक पहुँच गई है।कृत्रिम बुद्धिमत्ता ए डिजिटल अर्थव्यवस्थाए स्वास्थ्य प्रौद्योगिकियोंए साइबर सुरक्षा और स्वच्छ विकास को बढ़ावा देने की संभावनाओं को साकार करने वाली वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिये भारत.यूके साइंस एंड इनोवेशन पॉलिसी डायलॉग के ज़रिये भारत और ब्रिटेन मिलकर काम कर रहे हैं।

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