मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू करना ‘‘कोई समाधान नहीं : इरोम शर्मिला
Focus News 14 February 2025 0
कोलकाता, 14 फरवरी (भाषा) मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला ने शुक्रवार को दावा किया कि मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू करना ‘‘कोई समाधान नहीं है’’ बल्कि राज्य में जारी जातीय हिंसा के लिए ‘‘लोकतांत्रिक जवाबदेही से बचने’’ का एक तरीका मात्र है।
शर्मिला ने राज्य में शांति बहाल करने के लिए ‘‘ईमानदार राजनीतिक इच्छाशक्ति’’ की आवश्यकता पर जोर दिया और कहा कि नए चुनाव ‘‘वास्तविक बदलाव नहीं लाएंगे।’’
शर्मिला ने ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ टेलीफोन पर हुई बातचीत में सुझाव दिया कि मणिपुर के पूर्ववर्ती राजपरिवार के प्रमुख को वर्तमान राज्यपाल के समान शक्तियों के साथ एकता के प्रतीक के रूप में सेवा करने के लिए आमंत्रित किया जाना चाहिए।
शर्मिला ने कहा, ‘‘राष्ट्रपति शासन कोई समाधान नहीं है। मणिपुर के लोग कभी ऐसा नहीं चाहते थे। लेकिन अब जब यह वास्तविकता बन गई है, तो केंद्र को आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों के लिए यथास्थिति बहाल करने को प्राथमिकता देनी चाहिए।’’
उन्होंने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को उद्योगपति मित्रों से निवेश लाना चाहिए ताकि बुनियादी ढांचा और विकास उपलब्ध कराया जा सके। अतीत में जब राष्ट्रपति शासन लगाया गया था, तो वह लोकतांत्रिक जवाबदेही से बचने का एक और तरीका मात्र था।’’
उन्होंने मेइती, नगा और कुकी समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वाली तीन अंतर-राज्यीय लघु विधानसभाओं के गठन का प्रस्ताव रखा तथा तर्क दिया कि इस तरह के मॉडल से सभी जातीय समूहों के लिए उचित प्रतिनिधित्व और प्रत्यक्ष वित्त पोषण सुनिश्चित होगा।
उन्होंने कहा कि विभिन्न जातीय समूहों के मूल्यों, सिद्धांतों और प्रथाओं का सम्मान किया जाना चाहिए। शर्मिला ने दावा किया, ‘‘भारत अपनी विविधता के लिए जाना जाता है और केंद्र को मणिपुर में भी इसे पहचानना चाहिए और अपनाना चाहिए।’’
उन्होंने सवाल किया कि अगर उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र या मध्यप्रदेश जैसे प्रमुख राज्यों में भी इसी तरह की जातीय हिंसा होती तो क्या केंद्र चुप रहता।
उन्होंने दावा किया, ‘‘मणिपुर पिछले दो वर्षों से जल रहा है और केंद्र सरकार मूकदर्शक बनी हुई है। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि मुंबई या दिल्ली जैसे शहरों में महीनों तक ऐसी स्थिति बनी रहती? सिर्फ इसलिए कि मणिपुर दूर स्थित है, किसी को पूर्वोत्तर की चिंता नहीं है। उग्रवाद से लड़ने के नाम पर करोड़ों रुपये बर्बाद हो जाते हैं, जिसका इस्तेमाल क्षेत्र के विकास के लिए किया जा सकता था।’’
मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया तथा मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के पद से इस्तीफा देने के कुछ दिनों बाद बृहस्पतिवार शाम को विधानसभा को निलंबित कर दिया गया, जिससे राज्य में राजनीतिक अनिश्चितता पैदा हो गई।
यह निर्णय ऐसे समय लिया गया जब भाजपा अपने पूर्वोत्तर प्रभारी संबित पात्रा और विधायकों के बीच कई दौर की चर्चाओं के बावजूद मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार पर आम सहमति बनाने में ‘‘विफल’’ रही।
सिंह ने लगभग 21 महीने की जातीय हिंसा के बाद 9 फरवरी को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। राज्य में हिंसा में अब तक 250 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है।
मणिपुर विधानसभा का कार्यकाल 2027 तक है। शर्मिला ने सिंह के इस्तीफे का स्वागत किया और कहा कि यह बहुत पहले हो जाना चाहिए था।
शर्मिला ने संकट से निपटने के लिए पूर्व में सिंह के इस्तीफे की मांग की थी।
शर्मिला ने यह भी दावा किया, ‘‘केंद्र का दृष्टिकोण सही नहीं है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हर राज्य और कई देशों का दौरा कर रहे हैं, लेकिन वह मणिपुर नहीं गए। वह देश के लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित नेता हैं। हिंसा शुरू हुए लगभग दो साल हो गए हैं, फिर भी उन्होंने दौरा नहीं किया। अगर देश के किसी मुख्य राज्य में ऐसी ही स्थिति होती तो वह ऐसा दृष्टिकोण नहीं अपनाते।’’
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री के सीधे हस्तक्षेप से संकट को बहुत पहले ही हल करने में मदद मिल सकती थी। उन्होंने कहा, ‘‘राज्य सरकार की तरह ही केंद्र भी अपनी जिम्मेदारियों से बच नहीं सकता।’’
शर्मिला ने सिंह की आलोचना करते हुए मुख्यमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल को ‘‘पूरी तरह विफल’’ बताया।
उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘राज्य सरकार की गलत नीतियों और केंद्र की चुप्पी ने मणिपुर को इस अभूतपूर्व संकट में धकेल दिया है। मई 2023 से शांति बहाल करने में विफल रहने के लिए बीरेन सिंह को बहुत पहले ही पद छोड़ देना चाहिए था। अब बहुत देर हो चुकी है।’’
शर्मिला ने 2000 में अपनी भूख हड़ताल तब शुरू की थी जब सुरक्षा बलों ने इंफाल के पास मालोम में एक बस स्टॉप पर 10 नागरिकों की कथित तौर पर हत्या कर दी थी। उन्होंने सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम (आफ्स्पा) के खिलाफ 16 साल तक अपना शांतिपूर्ण प्रतिरोध जारी रखा। हालांकि, उनके लंबे संघर्ष के बावजूद, कानून को निरस्त नहीं किया गया। उन्होंने 2016 में अपनी भूख हड़ताल समाप्त कर दी।
विधानसभा चुनावों में हार के बाद उन्होंने 2017 में शादी कर ली। अब वह अपनी दो बेटियों सहित अपने परिवार के साथ दक्षिण भारत में बस गई हैं।