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देवभूमि उत्तराखण्ड़ प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से भारत का ही नही अपितु विश्व का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है। यहां के पर्यटन एवं तीर्थ स्थलों का भ्रमण करते हुए जो आध्यात्मिक अनुभूति होती है वह अपने आप में अद्भुत है।पर्यटन की दृष्टि से ही नहीं बल्कि तीर्थाटन की दृष्टि से भी यह पावन भूमि महत्वपूर्ण है। इसी कारण यहां का भ्रमण अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा श्रेष्ठ एंव संतोष प्रदान करने वाला है। पर्यटन एवं तीर्थाटन के विकास के लिए सरकार समुचित सहायता व प्रोत्साहन कब देगी यह तो समय ही बताएगा, किन्तु इतना जरूर है कि गुमनामी के साये में बदहाल तीर्थ स्थल यदि प्रकाश में लाएं जाएं तो ये तमाम तीर्थ विराट महत्व को प्रकट कर आस्था व भक्ति का अलौकिक संगम बनकर उभर सकते है। ऐसे ही पावन तीर्थों में अद्भुत महिमा वाला क्षेत्र है,गोपेश्वर महादेव मंदिर।
जनपद बागेश्वर के काड़ां क्षेत्रान्तर्गत गोपेश्वर महादेव का मंदिर पौराणिक काल से परम पूज्यनीय रहा है। स्थानीय जनमानस में इस मंदिर के प्रति अगाध श्रद्वा है। स्कंदपुराण में गोपेश्वर महादेव की महिमा का अद्भुत वर्णन करते हुए कहा गया है कि गोपेश्वर के स्मरण व दर्शन से समस्त पापों का हरण हो जाता है।
*पातका विप्रलीयन्ते गोपीश। दर्शनात् किमु भो विप्रा : पूजनात् कथयाम्यहम्(59)(केदारखण्ड़ अध्याय80)*
पुराणों के अनुसार गोपेश्वर नामक इस स्थान पर गोपियों ने भगवान शंकर की आराधना करके उत्तम गति प्राप्त की। गोपियों द्वारा इस स्थान पर शिवजी की तपस्या किये जाने से ही इस स्थान का नाम गोपेश्वर पड़ा।इस स्थल की महिमा इतनी विराट है,कि उसे शब्दों में नहीं समेटा जा सकता है। इस क्षेत्र से होकर बहने वाली पवित्र नदी भद्रा की महिमा गोपेश्वर की गरिमा को दर्शाती है। पुराणों में कहा गया है कि भद्रा में स्नानकर उसके बायीं ओर गोपेश्वर का पूजन करने से मोक्ष प्राप्त होता है। इसके पादतल से होकर बहने वाली सरस्वती नदी भद्रा में मिलती है।
*यस्य वामे महादेवो गोपीश:पूज्यते द्विजाः। निमज्य मुनिशादूर्ला भद्रातोये प्रयन्नतः।।…..पूज्य गोपेश्वरं देवं प्रयाति परमं पदम्।*
महर्षि भगवान वेद व्यास जी ने गोपेश्वर की महिमा का बखान करते हुए कहा कि इस स्थान पर भगवान शंकर की पूजा करने से पितामह, मातामह आदि पूर्वजों द्वारा किये गये पाप भी प्रभावहीन होकर समाप्त हो जाते है। शिवजी की आराधना के लिए भूमण्डल में यह भूभाग सर्वोत्तम तथा शिवलोक की प्राप्ति कराने वाला कहा गया है। हिमालय की गोद में बसे उत्तराखण्ड़ के पवित्र आंचल जनपद बागेश्वर की भूमि में स्थित गोपेश्वर कभी गोपीवन के नाम से प्रसिद्व रहा हैं। सौंदर्य से परिपूर्ण घाटी नागगिरी पर्वत के समीप गोपेश्वर महादेव में शिव जागृत रुप में विराजमान बताये जाते है,कहा जाता है,कि जो प्राणी भगवान गोपेश्वर के इस दरबार में अपनी भावनाओं के श्रद्धापुष्प भक्ति के साथ भोलेनाथ जी के चरणों में अर्पित करता है,वह समस्त भयों से रहित होकर जीवन का आनन्द व मोक्ष प्राप्त करता है। इस दुर्लभ स्थान की सबसे बड़ी विशेषता यह है,कि वर्णसंकर दोष का यहीं निवारण होता है। कहा तो यहां तक गया है कि दुरात्मा मानवों के पाप गोपेश्वर मण्डल में पहुंचने के पूर्व तक ही विद्यमान रहते है। यहां पहुचने पर पूर्वजों के पाप भी क्षय हो जाते है। गोपेश्वर का पूजन करने पर इक्कीस बार सारी पृथ्वी की परिक्रमा करने का फल मिलता है।
गोपेश्वर नाथ की अपरम्पार महिमा के बारे में ऋषियों की जिज्ञासा को शान्त करते हुए स्कंद पुराण में व्यास भगवान ने इस पावन स्थल के बारे में बताया है,कि कभी यहां के पावन पर्वतों पर नाग समुदाय ने माता कामधेनु की सेवा की थी। पुराणों में इस भूभाग को नागपुर क्षेत्र कहा गया है। ऊँचे पर्वतों पर विराजमान नाग देवताओं के मंदिर गोपेश्वर की अद्भुत महिमा को उजागर करते है। गोपेश्वर व उसके आसपास के तमाम पर्वत नाग पर्वतों के नाम से प्रसिद्ध है। इन तमाम मंदिरो में आज भी विधिवत नागों का पूजन होता है। पुराणों ने भी इस विषय की प्रामाणिकता को प्रकट करते हुए कहा है कि सतयुग के आरम्भ में ब्रह्मा जी ने सारी पृथ्वी को अनेक खण्ड़ों में विभक्त कर दिया था। विभक्त भूभागों में देवता,दानव,गन्धर्व,अप्सरायें, विद्याधर तथा भांति भांति के पशु,पक्षियों के रहने के लिए अनेक स्थान निश्चित किये गए।इसी क्रम में ब्रह्मा जी ने नागों के लिए हिमालय के आंचल में नागपुर नामक स्थान नियत किया। ब्रह्मा के बनाये गये नियमों को शिरोधार्य मानकर नागों ने यह भूखण्ड़ प्राप्त किया। जो नागपुर के नाम से जाना जाता है। इसी नागपुर में कामधेनु ने नागों की सेवा से संतुष्ट होकर उनसे वरदान मांगने को कहा इस पर नाग देवता बोले हमें अपने समान ही गोकुल प्रदान करके कृतार्थ कीजिए। कामधेनु से वर पाकर असंख्य गायों को प्राप्त करके उनके चरने के लिए नागों ने गोपीवन की रचना की और उस गोचर भूमि में गायों को चराने एवं उनकी रक्षा करने के लिए नागकन्याओं को जिम्मेदारी सौंपी गई। गोपीवन गोपेश्वर में गायों को चराने के साथ साथ नागकन्यायें गोपेश्वर की आराधना में तत्पर रहती थी। तभी भगवान भोलेनाथ की लीला के प्रभाव से एक बार उन्हें इस पहाड़ के अग्रभाग की तलहटी पर एक अद्भुत गुफा दिखाई दी।नागकन्याओं ने गुफा के समक्ष सरस्वती गंगा के भी दर्शन किए वहां उन्होनें शिवजी की भी पूजा की। यह गुफा वर्तमान में सानिउडियार के नाम से प्रसिद्ध है।मान्यता है,कि इसी गुफा में शांडिल्य ऋषि ने भगवान शंकर की तपस्या करके उन्हें संतुष्ट किया था। इस गुफा को देखकर नागकन्याओं की जिज्ञासा गुफा के रहस्य को लेकर बढ़ गयी। नागराज मूलनारायण की कन्या के साथ नाग कन्याओं ने उसमें प्रवेश की चेष्टा की लेकिन वे असफल हुई। निराश नागकन्याओं ने भगवान शंकर की स्तुति करते हुए कहा कि यदि हमारी शिवभक्ति सच्ची है तो हम गुफा को पार कर जाएं। भगवान शंकर को आगे करके वे गुफा में प्रवेश कर गई। उन्हें आशा थी अवश्य ही इस गुफा में भगवान शंकर उन्हें दर्शन देकर कृतार्थ करेगें लेकिन उनकी यह आस अधूरी रह गई,इतना ही नहीं उनकी गायें भी गुम हो गयी। गायों को ढूंढ़ते ढूंढते,भटकते भटकते नाग कन्यायें दूसरे वन में पहुंच गई। उस वन की गोचर भूमि में हरी भरी घास के बीच उन्होनें अपनी गायों को चरते देखा और सोचा कि ये गाये घास के लोभ में यहां तक पहुंच गयी हैं लेकिन इसी बीच उन्होने गायों के समुदाय के मध्य तेजोमय भगवान शिव के अलौकिक स्वरुप को देखा। उन्होने देखा कि इस स्वरुप से चराचर जगत दीप्तिमान् हो रहा है।उन्हीं गायों के मध्य भगवान शिव के अलौकिक स्वरूप वाले ज्योतिर्मय लिंग के तेजो मण्डल से आकाश के मध्यवर्ती सूर्य की ज्योति फीकी पड़ गई है।शिवजी के इस स्वरुप के दर्शन पाकर नागकन्याएं धन्य हो गई ।ये नागकन्यायें ही गोपियों के नाम से भी प्रसिद्ध थी। गोपियों ने शिव को प्रणाम कर भांति भांति प्रकार से उनका पूजन किया। गोपियों की भगवान गोपेश्वर के प्रति की गई यह स्तुति पुराण में काफी प्रसिद्ध है
*नमो हरायामितभूषणाय चितासमिदभस्मविलेपनाय।बृषध्वजाय सुवृषप्रभाय शिवाय शान्ताय नमो नमस्ते।।नमो विरूपाय कलाधराय षडर्धनेत्राय परावराय।ऋषिस्तुतायापरिसेविताय नमो नमस्ते बृषवाहनाय।।*
अर्थात् असंख्य भूषणभूषित,चिताभस्मलिप्तांग,वृ षध्वज,मोर की कान्ति स्वरुप शान्त शिव को हम प्रणाम करते हैं।विरूप,कलाधर,त्रिनेत्र,चन् द्रशेखर तथा महर्षियों से संस्तुत शंकर को हम बार बार नमस्कार करते है। गोपियों(नागकन्याओं)की प्रार्थना सुनकर शिवजी ने गोपियों को प्रत्यक्ष दर्शन दिए तथा उन्हें वरदान देकर अर्न्तध्यान हो गये शिवजी के वरदान के प्रभाव से गोपियां भी गायों के साथ शिवजी में प्रविष्ट हो गयी।इस प्रकार वे उत्तमगति को प्राप्त हुई और यह स्थान जगत में गोपेश्वर के नाम से प्रसिद्व हुआ । जनपद बागेश्वर के कांडा नामक स्थान से चंद किलोमीटर की दूरी पर सिमकौना स्थित गांव को मणगोपेश्वर के नाम से भी पुकारते है। रावल लोग इस मंदिर के पुजारी है।