नयी दिल्ली, 23 फरवरी (भाषा) विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने इस महीने अबतक भारतीय शेयर बाजार से 23,710 करोड़ रुपये से अधिक की निकासी की है। इस तरह 2025 में अबतक एफपीआई भारतीय शेयरों से एक लाख करोड़ रुपये से अधिक निकाल चुके हैं।
जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेज के मुख्य निवेश रणनीतिकार वी के विजयकुमार का मानना है कि भारत में एफपीआई निवेश का पुनरुद्धार तब होगा जब आर्थिक वृद्धि और कंपनियों की आय में सुधार होगा। इसके संकेत दो से तीन माह में मिलने की उम्मीद है।
डिपॉजिटरी के आंकड़ों के अनुसार, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने इस महीने (21 फरवरी तक) अबतक भारतीय शेयरों से 23,710 करोड़ रुपये निकाले हैं। इससे पहले जनवरी में उन्होंने 78,027 करोड़ रुपये के शेयर बेचे थे। इस तरह 2025 में अबतक एफपीआई 1,01,737 करोड़ रुपये की बिकवाली कर चुके हैं।
इतनी जबर्दस्त बिकवाली के चलते निफ्टी ने सालाना आधार पर इस दौरान चार प्रतिशत का नकारात्मक रिटर्न दिया है।
मॉर्निंगस्टार इन्वेस्टमेंट रिसर्च इंडिया के एसोसिएट निदेशक-प्रबंधक शोध हिमांशु श्रीवास्तव ने कहा, ‘‘अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा कई देशों पर जवाबी शुल्क के साथ-साथ इस्पात और एल्युमीनियम के आयात पर नए शुल्क लगाने पर विचार करने की रिपोर्ट के बाद बाजार की चिंताएं बढ़ गई हैं। उन्होंने कहा कि इन घटनाक्रमों ने संभावित वैश्विक व्यापार युद्ध की आशंकाओं को फिर से जगा दिया है, जिसने एफपीआई को भारत सहित उभरते बाजारों में अपने जोखिम का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए प्रेरित किया है।’’
श्रीवास्तव ने कहा कि घरेलू मोर्चे पर कंपनियों के उम्मीद से कमजोर तिमाही नतीजों तथा डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट ने भी भारतीय परिसंपत्तियों की अपील को और कम कर दिया है।
जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेज के विजयकुमार ने कहा कि ट्रंप की राष्ट्रपति चुनाव में जीत के बाद अमेरिका बाजार में शेष दुनिया से भारी पूंजी का प्रवाह हो रहा है।
उन्होंने कहा, चूंकि चीन के शेयर सस्ते हैं ऐसे में ‘भारत में बेचो और चीन में खरीदो’ का रुख अभी जारी रह सकता है।
समीक्षाधीन अवधि में एफपीआई ने ऋण या बॉन्ड बाजार से भी निकासी की है। उन्होंने बॉन्ड में सामान्य सीमा के तहत 7,352 करोड़ रुपये और स्वैच्छिक प्रतिधारण मार्ग से 3,822 करोड़ रुपये निकाले हैं। कुल मिलाकर विदेशी निवेशकों सतर्क रुख अपना रहे हैं।
एफपीआई का 2024 में भारतीय बाजार में निवेश काफी कम होकर 427 करोड़ रुपये रहा था। इससे पहले 2023 में उन्होंने भारतीय बाजार में 1.71 लाख करोड़ रुपये डाले थे, जबकि 2022 में वैश्विक केंद्रीय बैंकों द्वारा ब्याज दरों में आक्रामक वृद्धि के बीच 1.21 लाख करोड़ रुपये की निकासी की थी।