नयी दिल्ली, बिजली उत्पादकों ने सरकार से नवीकरणीय ऊर्जा के लिए अंतर-राज्यीय पारेषण शुल्क पर छूट 2030 तक जारी रखने का अनुरोध किया है, ताकि स्वच्छ ऊर्जा को भारत की अर्थव्यवस्था में और अधिक गहराई से जड़ें जमाने में मदद मिल सके।
नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री प्रल्हाद जोशी की अध्यक्षता में पांच फरवरी को एक परामर्श बैठक आयोजित की गई, जिसमें विंड इंडिपेंडेंट पावर प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन(डब्ल्यूआईपीपीए) और अन्य संघों ने अपनी चिंताओं और सुझावों को साझा किया।
मामले से अवगत सूत्रों ने बताया कि कंपनियों की मुख्य मांग अंतर-राज्यीय पारेषण प्रणाली (आईएसटीएस) शुल्क पर छूट को बढ़ाने की थी, जो इस वर्ष 30 जून को समाप्त होने वाली है।
नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र की कंपनियों ने इस क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देने तथा भारत के महत्वाकांक्षी ऊर्जा बदलाव लक्ष्यों में सहायता के लिए एमएनआरई से आईएसटीएस छूट को 2030 तक बढ़ाने का अनुरोध किया।
वर्तमान में, 30 जून, 2025 से पहले चालू की गई हरित ऊर्जा परियोजनाओं जैसे सौर, पवन और हाइब्रिड तथा बैटरी ऊर्जा और पंप भंडारण के लिए 25 साल के लिए शुल्क माफ कर दिया गया है।
मौजूदा आईएसटीएस छूट से नवीकरणीय ऊर्जा डेवलपर्स को 0.4-1.8 रुपये प्रति यूनिट के शुल्क से बचने में मदद मिलती है, जो बिजली उत्पादक राज्य से उपभोग केंद्रों तक ले जाने पर लगता। सूत्रों ने बताया कि यह कुल शुल्क का एक बड़ा हिस्सा है।
सूत्रों ने कहा कि यदि आईएसटीएस छूट को आगे नहीं बढ़ाया जाता है, तो इससे शुल्क में उल्लेखनीय वृद्धि होगी और नवीकरणीय स्रोतों से उत्पादित बिजली कोयले जैसे अन्य स्रोतों की तुलना में प्रतिस्पर्धी नहीं रह पाएगी। उन्होंने कहा कि इससे बिजली वितरण कंपनियों की खरीद लागत में भी वृद्धि होगी।
उद्योग जगत के लोगों का मानना है कि यदि जून, 2025 में छूट खत्म हो जाती है तो कई आवंटन पत्र (लेटर ऑफ अवार्ड) बिजली खरीद समझौतों (पीपीए) में परिवर्तित नहीं होंगे।
दूसरी ओर, छूट बढ़ाने की लागत नाममात्र है जबकि लाभ बहुत ज़्यादा हैं। इससे बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) को लंबित 40 गीगावाट के पीपीए पर हस्ताक्षर करने में मदद मिलेगी क्योंकि इससे उन्हें प्रति यूनिट 60-90 पैसे की बचत होगी।