मुलहठी स्वाद में मीठी, शीतल, पचने में भारी, शरीर को बल देने वाली होती है, इसलिए यह वनौषधि मानी जाती है। इसके इतने गुण हैं जिससे तीनों दोष शांत होते हैं। उ मुलहठी का अत्यधिक उपयोग खांसी-जुकाम के लिए किया जाता है। इसके सेवन से कफ कम होता है। उ जब कफ छाती में इकट्ठा होता है उससे छाती में जलन होने लगती है। इसके लिए मुलहठी को शहद में मिलाकर चाटना चाहिए लाभ मिलता है। उ मुलहठी को घिसकर दूध या पानी के साथ पिलाने से छोटे बच्चों को पेट दर्द से आराम मिलता है। उ अल्सर को मिटाने के लिए, मुलहटी को मिलाकर पकाए गए घी का प्रयोग करें। आमाशय की बढ़ी हुई अम्लता और व्याधियों में मुलहठी बहुत उपयोगी सिद्ध होती है। मुलहठी की मधुरता से पित्त का नाश होता है इसलिए पित्त वृद्धि को शांत करने के लिए इसका उपयोग कीजिए। उ मुलहठी फेफड़ों की बीमारियों, दमा, खांसी, टी.बी. तथा स्वरभेद आदि में लाभदायक है। यह कफ को आसानी से निकालती है। कफ निकल जाने से इन रोगों के रोगी का बुखार भी कम हो जाता है। इसलिए मुलहठी का छोटा टुकड़ा मुंह में डालकर चबाएं। फायदा होगा। उ पेशाब की रुकावट एवं जलन में मुलहठी का सेवन करें। फायदा होगा। उ मुलहठी के चूर्ण के सेवन से गुदा से होने वाला रक्तòाव, यह चाहे किसी भी कारण से हो, बंद हो जाता है। शरीर के भीतरी एवं बाहरी जख्मों को मुलहठी जल्दी भरती है। जख्मों पर मुलहठी का लेप बनाकर लगाएं। इससे रक्तòाव रुक जाएगा और जख्म भी जल्दी ठीक हो जाता है। उ चर्मरोगों में भी मुलहठी अत्यंत गुणकारी है। त्वचा में जलन एवं सूजन हो तो मुलहठी का लेप बनाकर उपयोग करें। इससे त्वचा का रंग निखर जाता है। शारीरिक सुंदरता बनाए रखने के लिए इसका भीतरी बाहरी प्रयोग काफी लाभदायक होगा। उ यदि किसी जख्म में जलन और दर्द हो रहा हो तो मुलहठी और तिल का चूर्ण जौ के आटे एवं घी में मिलाकर पेस्ट बना ले और इसे जख्म पर लगाते रहें। जख्म का घाव बहुत ही जल्दी ठीक हो जाएगा।