जाति, संस्कृति के आधार पर विभाजन पैदा करने वाली ताकतों के खिलाफ लड़ने की जरुरत : धनखड़

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नयी दिल्ली,  उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने जाति, वर्ग, पंथ और संस्कृति के विभाजन को बढ़ाने की कोशिश करने वाली ताकतों के खिलाफ आगाह करते हुए शनिवार को कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जो लोग ऐसी ताकतों से उत्पन्न खतरे को समझते हैं, वे संकीर्ण हितों के कारण इस खतरे को नजरअंदाज कर देते हैं।

धनखड़ ने कहा कि किसी भी धर्म में विश्वास स्वैच्छिक होता है और हेरफेर से उत्पन्न धार्मिक विश्वास मानव शोषण का सबसे बुरा स्वरूप है।

उपराष्ट्रपति ने पुस्तक ‘आई एम?’ के विमोचन के अवसर पर आयोजित एक समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि दूसरों पर वर्चस्व हासिल करने और जनसांख्यिकीय क्षमता के आधार पर दूसरों को आधिपत्य में रखने का उद्देश्य चिंता का विषय है।

इस पुस्तक का संकलन उद्योगपति गोपीचंद पी हिंदुजा द्वारा किया गया है।

उन्होंने कहा, ‘‘यह पुस्तक भारतीयता की सार्वभौमिक प्रासंगिकता को रेखांकित करती है, जो सभी धर्मों में देखी जाने वाली सद्गुणता है। हम धर्मांतरण के प्रलोभन के बिना दूसरों के सत्य का सम्मान और सराहना कर सकते हैं। एकता का मतलब एकरूपता नहीं है। भारतीयता इसका आदर्श उदाहरण है। यह विविधता में एकता का उदाहरण है।’’

 

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