नयी दिल्ली, छह फरवरी (भाषा) कांग्रेस ने उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू होने तथा गुजरात में इसको लेकर एक समिति का गठन किए जाने का हवाला देते हुए बृहस्तिवार को कहा कि यह देश को स्थायी तौर पर ध्रुवीकरण की स्थिति में रखने के लिए बनाया गया राजनीतिक साधन नहीं बन सकता।
पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने यह भी कहा कि उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता को जबरन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विभाजनकारी एजेंडे के एक अभिन्न हिस्से के रूप में लागू किया गया है।
रमेश ने एक बयान में कहा, ‘‘गुजरात सरकार ने राज्य में लागू की जाने वाली समान नागरिक संहिता तैयार करने के लिए एक समिति के गठन की घोषणा की है। यह घोषणा उत्तराखंड सरकार द्वारा हाल ही में राज्य में समान नागरिक संहिता लागू करने के बाद की गई है , हालांकि, अनुसूचित जनजातियों को इसमें छूट दी गई है।’’
उनके अनुसार, मोदी सरकार द्वारा नियुक्त 21वें विधि आयोग ने 31 अगस्त, 2018 को 182 पृष्ठों का ‘पारिवारिक कानून में सुधार पर परामर्श पत्र’ प्रस्तुत किया था जिसमें कहा गया था कि वर्तमान समय में समान नागरिक संहिता न तो आवश्यक है और न ही उसकी जरूरत है।
रमेश ने कहा, ‘‘इसके बाद, 14 जून, 2023 को प्रकाशित एक प्रेस नोट में, भारत के 22वें विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता के विषय की जांच करने के अपने इरादे को अधिसूचित किया। प्रेस नोट में स्पष्ट किया गया था कि यह कार्य विधि एवं न्याय मंत्रालय द्वारा भेजे गए संदर्भ पर किया जा रहा है। हालांकि, 22वें विधि आयोग को समान नागरिक संहिता पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत किए बिना 31 अगस्त 2024 को समाप्त कर दिया गया। 23वें विधि आयोग की घोषणा 3 सितंबर, 2024 को की गई थी, लेकिन इसकी संरचना अभी तक सार्वजनिक नहीं की गई है।’’
उन्होंने आरोप लगाया कि उत्तराखंड सरकार द्वारा लागू समान नागरिक संहिता खराब तरीके से तैयार किया गया कानून है, जो अत्यधिक हस्तक्षेपकारी है।
रमेश ने दावा किया, ‘‘यह किसी भी तरह से कानूनी सुधार का साधन नहीं है, क्योंकि इसमें पिछले दशक में पारिवारिक कानून को लेकर उठाई गई वास्तविक चिंताओं का कोई समाधान नहीं दिया गया है। इसे जबरन भाजपा के विभाजनकारी एजेंडे के एक अभिन्न हिस्से के रूप में लागू किया गया है।’’
कांग्रेस महासचिव के अनुसार, भारतीय संविधान का अनुच्छेद 44 को स्वीकार करते समय संविधान सभा ने भी यह कल्पना नहीं की होगी कि बाद में चलकर विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं द्वारा अलग-अलग समान नागरिक संहिताएं पारित की जाएंगी।
उन्होंने कहा, ‘‘अनेक समान नागरिक संहिताएं अनुच्छेद 44 की उस मूल भावना के विरुद्ध हैं, जिसमें ‘भारत के संपूर्ण क्षेत्र में एक समान नागरिक संहिता’ की बात कही गई है। अनुच्छेद 44 में परिकल्पित समान नागरिक संहिता वास्तविक आम सहमति बनाने के उद्देश्य से व्यापक बहस और चर्चा के बाद ही आ सकती है।’’
रमेश ने कहा कि यूसीसी देश को स्थायी तौर पर ध्रुवीकरण की स्थिति में रखने के लिए बनाया गया राजनीतिक साधन नहीं बन सकता।