योगाभ्यास एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से शरीर-दुरूस्त तो रहता ही है, साथ ही उसके माध्यम से अनेक रोगों का उपचार भी संभव है। आज के समय में रोगों से मुक्त रहने के लिए योग से बढ़कर अन्य कोई दूसरा उपाय हो ही नहीं सकता। योग के माध्यम से कुछ रोगों का उपचार बताया जा रहा है।
मलावरोध दूर करता है सुप्तवज्रासन:- सुप्तवज्रासन की क्रिया करते रहने से सुषुम्ना का मार्ग अत्यंत सरल होता है तथा कुंडलिनी शक्ति सरलता से ऊर्ध्वगमन कर सकती हैं। इस आसन में ध्यान करने से मेरुदंड को आराम मिलता है। इस आसन का अभ्यास करने से प्रायः तमाम अंतःस्रावी ग्रंथियों को जैसे शीर्षस्थ ग्रंथि, कंठस्थ ग्रंथि, मूत्रापिंड की ग्रंथि, पुरुषार्थग्रंथि आदि को पुष्टि मिलती है। इससे जठराग्नि प्रदीप्त होती है तथा मलावरोध की पीड़ा दूर होती है। धातुक्षय, स्वप्नदोष, पक्षाघात, पथरी, आंखों की दुर्बलता आदि दूर हो जाती है।
शरीर को बलवान बनाता है हलासन:- हलासन के अभ्यास से अजीर्ण, कब्ज, बवासीर, थायराइड का अल्प विकास, अंगविकार, असमय वृद्धत्व, दमा, कफ, रक्तविकार, लिंग शिथिलता, आदि दूर होती है। इस आसन से लिवर अच्छा होता है। छाती का विकास होता है तथा स्तन शिथिलता दूर होती है। श्वसन क्रिया तेज होकर ऑक्सीजन से रक्त शुद्ध बनता है। गले का दर्द, पेट की बीमारी, पेट की चर्बी कम होती हैं। शरीर बलवान् एवं तेजस्वी बनता है। गर्भवती स्त्रिायों को छोड़कर सभी को यह आसन अवश्य ही करना चाहिए।
पाचन तंत्रा को सुदृढ़ बनाता है मयूरासन:- मयूरासन करने से ब्रह्मचर्य पालन में सहायता मिलती है। पाचनतंत्रा के अंगों की ओर रक्त का प्रवाह अधिक बढ़ने से अंग बलवान् और कार्यशील बनते हैं। पेट के भीतर के भागों में दबाव पड़ने से उनकी शक्ति भी बढ़ती है। उदर के अंगों की शिथिलता और मंदाग्नि को दूर करने के साथ ही इस आसन के माध्यम से प्रदर संबंधी सभी बीमारियों में लाभ मिलता है।
आँखों की रोशनी तेज करता है वज्रासन:- वज्रासन के अभ्यास से शरीर का मध्यभाग सीधा रहता है। श्वास की गति मंद पड़ने से वायु बढ़ती हैं। आंखों की ज्योति तेज होती है। वज्रनाड़ी अर्थात् वीर्यधारा नाड़ी मजबूत बनती हैं। वीर्य की ऊर्ध्वगति होने से शरीर वज्र जैसा बनता है। लंबे समय तक सरलता से इस आसन को किया जा सकता है। इससे मन की चंचलता दूर हो जाती है तथा बुद्धि में वृद्धि होती है। पेट की वायु का नाश होता है, कब्ज दूर होता है तथा रीढ़, कमर, जांघ, घुटने एवं पैरों में शक्ति बढ़ती है। स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है, शुक्रदोष, वीर्यदोष, घुटनों का दर्द आदि समाप्त हो जाते हैं। आंखों की रोशनी बढ़ती है तथा आंखों की अनेक बीमारियां भी दूर हो जाती हैं।
स्तनों का विकास करता है मत्स्यासन:- मत्स्यासन से पूरा शरीर मजबूत होता है। गले, छाती व पेट की तमाम बीमारियां दूर होती हैं। स्त्रिायों के अविकसित स्तनों का विकास होता है तथा वे सुडौल हो जाते हैं। गला साफ रहता है, फेफड़ों का विकास होता है, श्वसन क्रिया ठीक रहती है। पेट साफ रहता है, आंतों का मैल दूर होता है। चमड़ी के रोग नहीं होते। पेट की चरबी कम होती है। इस आसन से स्त्रिायों के मासिक धर्म संबंधी सभी बीमारियां दूर हो जाती है। इस आसन को करने से पहले थोड़ा पानी पी लेना चाहिए।
गर्भाशय को सशक्त बनाता है योगमुद्रासन:- योगमुद्रासन का स्थान योगाभ्यास में महत्त्वपूर्ण माना जाता है। इससे गैस की बीमारी दूर होती है। पेट एवं आंतों की सभी शिकायतें दूर होती हैं। कलेजा, फेफड़े, हृदय आदि मजबूत होते हैं। योगमुद्रासन स्त्रिायों के गर्भाशय को मजबूत बनाता है। इसका अभ्यास करते रहने से गर्भपात नहीं होता। गर्भवती को अभ्यास नहीं करना चाहिए। योगमुद्रासन से पुराना कब्ज दूर होता है, धातु की दुर्बलता दूर होती है, उदरपटल सशक्त बनता है, मानसिक शक्ति बढ़ती है तथा कमर की सुंदरता भी बढ़ती है।