यूनियन कार्बाइड का कचरा इंदौर के निकट पीथमपुर में लाकर नष्ट किया जाएगा। भोपाल गैस त्रासदी मानवीय भूल पर होने वाली सज़ा का शिखर है। किसी भी मानवीय भूल पर इससे बड़ी और विकराल सज़ा विश्व के इतिहास में कहीं भी नहीं हुई है। पूर्व प्रधानमंत्री एवं इंजीनियरिंग के छात्र रहे राजीव गांधी ने कहा था कि इंसानों द्वारा की जाने वाली भूल को इंसान तो माफ कर सकते हैं लेकिन अगर मशीनों के साथ भूल की गयी तो वह नाप कर बराबर सज़ा देती है। जितनी बड़ी भूल होती है सज़ा भी उतनी ही मिलती है।
गोयाकि अधिकांश अपराध भी एक प्रकार से भूल ही होते हैं। आपवादिक अपराध ही सुनियोजित षड्यंत्र के तहत कारित किये जाते हैं किंतु कानून की भूल को क्षम्य नहीं माना गया है, कोई अपराधी यह प्ली नहीं कर सकता है कि भूल से उससे अपराध कारित हो गया. यदि ऐसी प्ली वह अदालत के समक्ष कर दे तब अदालत उसकी संस्वीकृति पर उसे दोषी करार देकर सज़ा सुना सकती है, इसलिए हर अपराधी अपराध को सिरे से नकार देता है. दरअसल तो वह भीतर ही भीतर भूल स्वीकार करता है।
भोपाल गैस त्रासदी भी भूल के कारण घटित हुई थी और वह भूल परिणामों को सोचे बगैर कर दी गयी थी। यूनियन कार्बाइड के कारखाने में कर्मचारी कम थे और कमज़ोर धातु के सस्ते टैंक बनाए जाने के कारण जहरीली गैस का स्त्राव हुआ एवं फिर उसके जो परिणाम हुए उसके किस्से विश्वभर में सुने और सुनाए गए। जो सोता था वह सोता ही रह गया और जो चल रहा था वह ज़मीन पर गिर पड़ा।
यह पीड़ा उस घटना का प्रतिबिंब थी जहां हिटलर ने यहूदियों की हत्या के लिए गैस चेंबर बनाए थे हिटलर का वह अपराध शताब्दियों तक नहीं भुलाया जा सकता है, उस घटना के बाद ही विश्व के स्वयंभू ठेकेदारों ने यहूदियों पर दया का भाव दिखाते हुए उन्हें फिलिस्तीन की धरती पर बसा दिया, हैरानी वाली बात है यहूदियों की हत्या यूरोप ने की और उन्हें बसने के लिए जगह फिलिस्तीन में दी गयी। एक अन्याय ने विश्व में दूसरी लड़ाई को छेड़ दिया जो आज तक जारी है रोज़ गाजा के पांच बच्चें मारे जाते हैं। हिटलर की क्रूर आत्मा आज भी दुनिया पर काले बादल के रूप में मौजूद है।
गौरतलब है कि कुछ समय के लिए यूनियन कार्बाइड के दस दस किलोमीटर के भीतर का इलाका गैस चैंबर बन गया था। यह भूल बड़ी थी जहां इतनी खतरनाक गैस को सस्ते टैंक में भरकर रख लिया गया था उससे बड़ी भूल यह थी कि नागरिक आबादी के बीच ज़हरीली गैस का कारखाना खोल दिया गया था।
बहरहाल, विगत चालीस वर्षों से यूनियन कार्बाइड का कचरा नष्ट नहीं किया गया था। अब इसे इंदौर के निकट पीथमपुर में नष्ट किया जाएगा। सरकार ने अपना शपथपत्र अदालत में दिया है कि यह ज़हरीला कचरा नहीं है अपितु मशीनों का कचरा है। एक भूल के बाद कहीं दूसरी भूल नहीं हो जाए। चिंता की लकीरें खिंच जाती हैं।
इस घटना पर महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज के कुछ चिकित्सकों ने आपत्ति जताते हुए रिट याचिका प्रस्तुत की है। यह कचरा फसलों को प्रदूषित कर सकता है और जलस्त्रोत पर दूषित प्रभाव डाल डाल सकता है. कुछ ऐसे तर्क याचिकाकर्ता ने अपनी जनहित याचिका में प्रस्तुत किये हैं। प्रश्न यह भी है कि यदि कचरा ज़हरीला नहीं है तब उस कचरे को भरने हेतु किसी भी मजदूर से मात्र तीस मिनट ही काम क्यों लिया गया और पीपीई किट पहनाकर कचरा क्यों भरवाया गया?
गोयाकि अधिकांश अपराध भी एक प्रकार से भूल ही होते हैं। आपवादिक अपराध ही सुनियोजित षड्यंत्र के तहत कारित किये जाते हैं किंतु कानून की भूल को क्षम्य नहीं माना गया है, कोई अपराधी यह प्ली नहीं कर सकता है कि भूल से उससे अपराध कारित हो गया. यदि ऐसी प्ली वह अदालत के समक्ष कर दे तब अदालत उसकी संस्वीकृति पर उसे दोषी करार देकर सज़ा सुना सकती है, इसलिए हर अपराधी अपराध को सिरे से नकार देता है. दरअसल तो वह भीतर ही भीतर भूल स्वीकार करता है।
भोपाल गैस त्रासदी भी भूल के कारण घटित हुई थी और वह भूल परिणामों को सोचे बगैर कर दी गयी थी। यूनियन कार्बाइड के कारखाने में कर्मचारी कम थे और कमज़ोर धातु के सस्ते टैंक बनाए जाने के कारण जहरीली गैस का स्त्राव हुआ एवं फिर उसके जो परिणाम हुए उसके किस्से विश्वभर में सुने और सुनाए गए। जो सोता था वह सोता ही रह गया और जो चल रहा था वह ज़मीन पर गिर पड़ा।
यह पीड़ा उस घटना का प्रतिबिंब थी जहां हिटलर ने यहूदियों की हत्या के लिए गैस चेंबर बनाए थे हिटलर का वह अपराध शताब्दियों तक नहीं भुलाया जा सकता है, उस घटना के बाद ही विश्व के स्वयंभू ठेकेदारों ने यहूदियों पर दया का भाव दिखाते हुए उन्हें फिलिस्तीन की धरती पर बसा दिया, हैरानी वाली बात है यहूदियों की हत्या यूरोप ने की और उन्हें बसने के लिए जगह फिलिस्तीन में दी गयी। एक अन्याय ने विश्व में दूसरी लड़ाई को छेड़ दिया जो आज तक जारी है रोज़ गाजा के पांच बच्चें मारे जाते हैं। हिटलर की क्रूर आत्मा आज भी दुनिया पर काले बादल के रूप में मौजूद है।
गौरतलब है कि कुछ समय के लिए यूनियन कार्बाइड के दस दस किलोमीटर के भीतर का इलाका गैस चैंबर बन गया था। यह भूल बड़ी थी जहां इतनी खतरनाक गैस को सस्ते टैंक में भरकर रख लिया गया था उससे बड़ी भूल यह थी कि नागरिक आबादी के बीच ज़हरीली गैस का कारखाना खोल दिया गया था।
बहरहाल, विगत चालीस वर्षों से यूनियन कार्बाइड का कचरा नष्ट नहीं किया गया था। अब इसे इंदौर के निकट पीथमपुर में नष्ट किया जाएगा। सरकार ने अपना शपथपत्र अदालत में दिया है कि यह ज़हरीला कचरा नहीं है अपितु मशीनों का कचरा है। एक भूल के बाद कहीं दूसरी भूल नहीं हो जाए। चिंता की लकीरें खिंच जाती हैं।
इस घटना पर महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज के कुछ चिकित्सकों ने आपत्ति जताते हुए रिट याचिका प्रस्तुत की है। यह कचरा फसलों को प्रदूषित कर सकता है और जलस्त्रोत पर दूषित प्रभाव डाल डाल सकता है. कुछ ऐसे तर्क याचिकाकर्ता ने अपनी जनहित याचिका में प्रस्तुत किये हैं। प्रश्न यह भी है कि यदि कचरा ज़हरीला नहीं है तब उस कचरे को भरने हेतु किसी भी मजदूर से मात्र तीस मिनट ही काम क्यों लिया गया और पीपीई किट पहनाकर कचरा क्यों भरवाया गया?