छब्बीस जनवरी हमारे देश का राष्ट्रीय पर्व है। सभी जानते हैं कि 26 जनवरी, 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ था। हम सभी के लिए यह एक ऐतिहासिक दिन है क्योंकि इसी दिन भारत ने खुद को एक स्वतंत्र गणराज्य के रूप में स्थापित किया था। कहना ग़लत नहीं होगा कि यह दिन हमें अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक करता है, और हमें एक नई दिशा और प्रेरणा प्रदान करता है। गौरतलब है कि इस दिन का महत्व सिर्फ हमारे देश के संविधान के लागू होने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमें हमारे महान स्वतंत्रता सेनानियों की भी याद दिलाता है, जिन्होंने अपने संघर्षों और बलिदानों के जरिए हमें अंग्रेजी से आजादी दिलाई थी।भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, सुभाष चंद्र बोस, महात्मा गांधी जैसे महान व्यक्तित्वों ने हमें अपने देश सेवा में पूरी निष्ठा, बलिदान और कर्तव्यनिष्ठ होने का पाठ सिखाया। छब्बीस जनवरी के दिन हम सब देशवासी उन दूरदर्शी जन-नायकों, विद्वानों का कृतज्ञता-पूर्वक स्मरण करते हैं, जिन्होंने हमारे भव्य और प्रेरक संविधान के निर्माण में अमूल्य योगदान दिया था। कहना ग़लत नहीं होगा कि गणतंत्र दिवस, हमारे आधारभूत मूल्यों और सिद्धांतों को स्मरण करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है।
वास्तव में, छब्बीस जनवरी वह महत्वपूर्ण दिन है जो भारत के लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार और लिखित संविधान के साथ एक गणतंत्र में परिवर्तन का प्रतीक है। सच तो यह है कि यह देश के संविधान और लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और एकता जैसे इसके मूल्यों का जश्न मनाने का दिन है। बहरहाल, कहना चाहूंगा कि आज हमारे युवाओं के आत्मविश्वास के बल पर ही भावी भारत का निर्माण हो रहा है। आज भारत पचपन करोड़ से अधिक युवाओं के साथ विश्व का सबसे युवा देश है। अतः विशेषकर युवाओं को ध्वज के बारे में कुछ विशेष तथ्य जानने की जरूरत है।हर साल 26 जनवरी(गणतंत्र दिवस) को झंडा फहराया(फ्लैग अनफर्लिंग) जाता है और 15 अगस्त को ध्वजारोहण(फ्लैग होस्टिंग) किया जाता है, लेकिन बहुत कम लोग यह बात जानते होंगे कि ध्वजारोहण(फ्लैग होस्टिंग) और झंडा फहराने(फ्लैग अनफर्लिंग) में अंतर होता है। तो आइए , हम यहां यह जानते हैं दोनों में क्या अंतर है ? पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि ध्वजारोहण(फ्लैग होस्टिंग) का कार्यक्रम 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस के दिन होता है। जानकारी के अनुसार, 1947 में इस दिन ही भारत में ब्रिटिश राज का झंडा नीचे उतार कर हमारे राष्ट्रीय ध्वज को ऊपर चढ़ाया गया था। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय ध्वज को जब स्तंभ पर नीचे से ऊपर की तरफ चढ़ाया जाता है तो यह ध्वजारोहण कहलाता है। ध्वजारोहण के साथ ही राष्ट्रगान भी बजाया जाता है। वास्तव में, ध्वजारोहण किसी नए राष्ट्र के उदय का प्रतीक माना जाता है। इसे भारत के उदय और ब्रिटिश शासन के अंत के तौर पर भी चिह्नित किया जाता है। यहां पाठकों को बताता चलूं कि लाल किले पर होने वाले कार्यक्रम यानी स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री ध्वजारोहण करते हैं।
अब यहां प्रश्न यह उठता है कि 15 अगस्त के दिन आखिर प्रधानमंत्री ही लाल किले पर ध्वजारोहण क्यों करते हैं ? तो इसका सीधा सा उत्तर यह है कि राष्ट्रपति, भारत सरकार का संवैधानिक प्रमुख होता है। ऐसे में स्वतंत्रता दिवस पर भी उन्हें ही ध्वजारोहण करना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं होता। दरअसल, जब देश 1947 में आजाद हुआ था, तब भारत का कोई आधिकारिक राष्ट्रपति नहीं था। उस वक्त लॉर्ड माउंटबेटन भारत के गर्वनर थे और जवाहरलाल नेहरू को भारत का प्रधानमंत्री चुना गया था। चूंकि, माउंटबेटन ब्रिटिश सरकार के अफसर थे, इसलिए स्वतंत्रता दिवस पर झंडा फहराने का काम प्रधानमंत्री ने किया। तब से भारत के प्रधानमंत्री ही 15 अगस्त को लाल किले पर ध्वजारोहण कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर झंडा फहराना, मुड़े हुए या लपेटे हुए झंडे को खोलने या अनावरण करने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है। यह आमतौर पर झंडे को रस्सी से बांधकर और फिर रस्सी को खींचकर झंडा फहराने के द्वारा किया जाता है। सरल शब्दों में कहें तो गणतंत्र दिवस(26 जनवरी) के दिन झंडा पहले से ही खंभे पर ऊपर की ओर बंधा रहता है, और इसकी रस्सी खींच कर इसे फहराना होता है. इसी प्रक्रिया को झंडा फहराना कहा जाता हैं। इसके साथ फूलों की पंखुड़ियां भी लगी होती हैं, जिसके कारण तिरंगा फहराने पर पुष्प वर्षा होती है।
यहां यह उल्लेखनीय है कि चूंकि हमारे देश का संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ था और राष्ट्रपति को देश का संवैधानिक प्रमुख कहा जाता है। ऐसे में हर साल देश के राष्ट्रपति संवैधानिक प्रमुख के हाथों ही कर्तव्य पथ(पुराना नाम राजपथ) पर झंडा फहराया जाता है। उल्लेखनीय है कि 26 जनवरी को झंडा कार्यक्रम के दौरान परेड की शुरुआत से पहले राष्ट्रीय ध्वज को फहराया जाता है। बहरहाल, कहना चाहूंगा कि हम सभी को भारतीय ध्वज संहिता और इससे जुड़े नये नियमों के बारे में जानकारी होनी चाहिए, क्योंकि हमारा झंडा राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है और यह गरिमापूर्ण राष्ट्रीय प्रतीकों में से एक है। पाठकों को बताता चलूं कि भारतीय ध्वज संहिता 26 जनवरी, 2002 को लागू हुई और 30 दिसंबर, 2021 को इसमें कुछ संशोधन किए गए। गौरतलब है कि इससे पहले तक तिरंगा फहराने के नियम ‘एम्बलेम्स एंड नेम्स (प्रिवेन्शन ऑफ इम्प्रॉपर यूज) एक्ट, 1950’ और ‘प्रिवेन्शन ऑफ इंसल्ट्स टू नेशनल ऑनर एक्ट, 1971 ‘ के तहत आते थे। नए कोड में राष्ट्रीय ध्वज को घर के खुले क्षेत्रों में फहराना शामिल है, जहाँ दिन और रात दोनों समय फहराया जा सकता है।
भारतीय झंडा संहिता, 2002 में निहित मुख्य दिशा-निर्देशों के अनुसार ‘भारत का राष्ट्रीय ध्वज, भारत के लोगो की आशाओं और आकांक्षाओं का प्रतिरूप है। यह हमारे राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है और सबके मन में राष्ट्रीय ध्वज के लिए प्रेम, आदर और निष्ठा है। यह भारत के लोगों की भावनाओं और मानस में एक अद्वितीय और विशेष स्थान रखता है। यहां यह उल्लेखनीय है कि भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का ध्वजारोहण/प्रयोग/संप्रदर्शन राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम, 1971 और भारतीय ध्वज संहिता, 2002 द्वारा नियंत्रित है। 30 दिसंबर, 2021 के आदेश द्वारा पॉलिएस्टर के कपडे से बने एवं मशीन द्वारा निर्मित राष्ट्रीय ध्वज की अनुमति दी गई। अब व्यवस्था है कि भारत का राष्ट्रीय ध्वज हाथ से काते गए और हाथ से बुने हुए या मशीन द्वारा निर्मित, सूती/पॉलिएस्टर/ऊनी/सिल्क/खादी के कपडे से बनाया गया हो। इतना ही नहीं अब कोई भी व्यक्ति, कोई भी गैर-सरकारी संगठन अथवा कोई भी शिक्षा संस्था राष्ट्रीय झंडे को सभी दिनों और अवसरों, औपचारिकताओं या अन्य अवसरों पर फहरा/प्रदर्शित कर सकता है, बशर्ते राष्ट्रीय झंडे की मर्यादा और सम्मान का ध्यान रखा जाये।
इतना ही नहीं, भारतीय झंडा संहिता, 2002 को 20 जुलाई, 2022 के आदेश द्वारा संशोधित किया गया एवं भारतीय झंडा संहिता के भाग-॥ के पैरा 2.2 की धारा (xi) को निम्नलिखित धारा से प्रतिस्थापित किया गया-‘जहाँ झंडे का प्रदर्शन खुले में किया जाता है या जनता के किसी व्यक्ति द्वारा घर पर प्रदर्शित किया जाता है, वहां उसे दिन एवं रात में फहराया जा सकता है’,’राष्ट्रीय झंडे का आकार आयताकार होगा। यह किसी भी आकार का हो सकता है परन्तु झंडे की लम्बाई ओर ऊंचाई (चौडाई) का अनुपात 3:2 होगा। इतना ही नहीं,जब कभी राष्ट्रीय झंडा फहराया जाये तो उसकी स्थिति सम्मानजनक और पृथक होनी चाहिए।फटा हुआ और मैला-कुचैला झंडा प्रदर्शित नहीं किया जाये। झंडे को किसी अन्य झंडे अथवा झंडो के साथ एक ही ध्वज-दंड से नहीं फहराया जाये। संहिता के भाग-III की धारा-IX में उल्लखित गणमान्यों जैसे राष्ट्रपति, उप- राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल आदि, के सिवाय झंडे को किसी वाहन पर नहीं फहराया जायेगा।
किसी दूसरे झंडे या पताका को राष्ट्रीय झंडे से ऊँचा या उससे ऊपर या उसके बराबर में नही लगाना चाहिए। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम, 1971 राष्ट्रीय ध्वज, संविधान, राष्ट्रगान और भारतीय मानचित्र सहित देश के सभी राष्ट्रीय प्रतीकों के अपमान को प्रतिबंधित करता है।
यदि कोई व्यक्ति अधिनियम के तहत विभिन्न अपराधों जैसे कि राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करना, भारत के संविधान का अपमान करना, राष्ट्रगान के गायन को रोकना आदि में दोषी ठहराया जाता है, तो वह 6 वर्ष की अवधि के लिये संसद एवं राज्य विधानमंडल के चुनाव लड़ने हेतु अयोग्य हो जाता है। गौरतलब है कि संविधान का भाग IV-ए (जिसमें केवल एक अनुच्छेद 51-ए शामिल है) ग्यारह मौलिक कर्तव्यों को निर्दिष्ट करता है।अनुच्छेद 51ए(ए) के अनुसार, भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों एवं संस्थानों, राष्ट्रीय ध्वज तथा राष्ट्रगान का सम्मान करे। बहरहाल, यहां यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से साल 2022 में ‘हर घर तिरंगा’ अभियान चलाए जाने के बाद से अब लोग अपने घरों पर भी तिरंगा फहराने लगे हैं।घर पर तिरंगा फहराते समय कुछ खास नियमों का पालन करना बहुत जरूरी है। ऐसा ना करने पर जाने-अनजाने में हमारे राष्ट्रीय ध्वज का अपमान हो सकता है, जो कि कानूनन जुर्म है। कुछ मामलों में तो इसके लिए तीन साल तक जेल भी हो सकती है। गौरतलब है कि अगर कोई व्यक्ति तिरंगे झंडे को पब्लिकली जलाता है, गंदा करता है, कुचलता है या नियम के खिलाफ जाकर ध्वजारोहण करते हुए पाया जाता है, तो उसे 3 साल की जेल या जुर्माने की सजा अथवा दोनों भी हो सकती है।भारतीय झंडा संहिता के मुताबिक, कट-फटे तिरंगे को दफना देना चाहिए या फिर उसे एकांत में कहीं जलाकर नष्ट कर देना चाहिए।
पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि वर्ष 2022 में केंद्र सरकार ने ‘फ्लैग कोड’ के नियमों में दो बड़े बदलाव किये थे। पहला बदलाव ये किया गया कि तिरंगे को सूर्यास्त तक फहराने की बजाय अब रात में भी यानी 24 घंटे फहराया जा सकता है।दूसरा बदलाव ये किया गया कि पहले सिर्फ हाथ से बुने और काते ऊन, कपास या रेशमी खादी के तिरंगे फहराने की अनुमति थी। अब मशीन से बने कपास, ऊन या रेशमी खादी के तिरंगे भी फहराए जा सकते हैं। इतना ही नहीं, पॉलिएस्टर का झंडा भी फहरा सकते हैं।झंडा फहराते हुए हम सभी को यह याद रखना चाहिए कि यह आयताकार होना चाहिए और उसकी लंबाई-चौड़ाई का अनुपात 3:2 होना चाहिए। इसका मतलब है कि लंबाई, चौड़ाई से डेढ़ गुना होनी चाहिए। इतना ही नहीं, तिरंगा कभी भी जमीन को नहीं छूना चाहिए।झंडा फहराते समय केसरिया रंग हमेशा ऊपर की तरफ रहना चाहिए।यदि हम तिरंगे के साथ कोई और झंडा फहरा रहे हैं, तो हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि दूसरा झंडा राष्ट्रीय ध्वज से बड़ा या उसके बराबर नहीं होना चाहिए। हमें यह चाहिए हम झंडे को पानी में नहीं डुबाएं और उस पर कुछ भी लिखना भी गलत है। इतना ही नहीं,बिना सरकारी आदेश के झंडे को आधा झुकाकर नहीं फहराना चाहिए। पाठकों को बताता चलूं कि ध्वजारोहण के लिए इस्तेमाल तिरंगा खादी, सूती या सिल्क का हो तो बहुत अच्छा है हालांकि 2022 के बाद अन्य मटेरियल से बना झंडा भी फहरा सकते हैं।