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एक था गांव। उस गांव में गमन नामक लड़का रहता था। वह था आलसी। उसके परिवार में केवल मां थी। बेचारी बहुत परिश्रम करती लेकिन गमन कुछ भी नहीं करता था। एक बार मां ने दुखी हो कर कहा, ‘बेटा, अब तो तू बड़ा हो गया है। कुछ काम-धंधा कर तो ठीक रहेगा। मेरी जिंदगी का कोई भरोसा नहीं है। मेरे बाद तुझे कौन खिलाएगा। और कुछ नहीं, तो कम से कम कोई एक काम ही नियम से कर ले।’
गमन को मां की यह बात मजाक लगी। उसने कहा, ‘ठीक है मां, अब से उठते ही एक लोटा पानी पिया करूंगा।’
गमन नित्य सबेरे उठता और एक लोटा पानी पीता। फिर मां से कहता, ‘मां, मेरा आज का काम पूरा हो गया। है न?’
मां कहती, ‘हां बेटा, बहुत अच्छा किया।’
दिन गुजरने लगे लेकिन गमन का नियम चलता रहा। अचानक मां  बीमार हो गई। सुबह घर में पानी की एक भी बूंद नहीं थी। गमन ने सोचा, ‘चलो मैं ही पानी भर लाऊं।’
वह पानी का डोल और रस्सा ले कर कुएं पर गया लेकिन काम तो काम के तरीके से होता है। गमन ने कुएं में डोल डाला पर हाथ से रस्सा कुएं में गिर पड़ा। वह घबरा गया। उसने मन में सोचा, ‘मां इस बात पर कहेगी कि कुएं से पानी भी निकालना नहीं आता। यह तो ठीक नहीं।’
गमन दूसरा रस्सा तलाशने लगा। दूसरा रस्सा नहीं मिला। उसने मां को नारियल के रेशों से रस्सा बनाते हुए देखा था। मां ने नारियल के रेशे सुखा रखे थे। गमन चुपचाप रस्सा बनाने बैठ गया। बनाने में थोड़ा समय लगा पर वह काम करता रहा। जैसे-तैसे रस्सा बना लिया। दूसरा बर्तन लिया और कुएं से पानी निकाला। अपने नियम के अनुसार पानी पिया और पानी लेकर लौट चला।
रास्ते में शहर का एक आदमी मिला। उसने पूछा, ‘अरे भाई, यह रस्सा क्या बेचने के लिए है?’
गमन बोला, ‘रस्सा दस रूपए में दूंगा।’
उस आदमी को सौदा सस्ता लगा। उसने तुरंत रस्सा खरीद लिया। फिर पूछा, ‘ऐसे रस्से और कितने हैं?’
गमन बोला, ‘अभी तो नहीं हैं, लेकिन कल दस रस्से तैयार करके दे सकता हूं।’
गमन ने दूसरे दिन दस रस्से बना कर तैयार कर लिए। शाम को शहरी आया। उसने सौ रूपए दिए और दस रस्से ले गया। शहर में रस्सों की बहुत मांग थी। अब गमन रस्से बना कर बेचने लगा। गमन को बराबर पैसे मिलने लगे इसलिए वह जल्दी-जल्दी रस्से बनाने लगा। वह आलस्य से ऊब भी गया था। धंधा तेजी से चलने लगा। मां को भी आराम मिलने लगा। अपनी कमाई से मां का उपचार कराया। घर की गरीबी भी धीरे-धीरे दूर होने लगी।
वह मां से कहता, ‘मां तुम्हारी शिक्षा से मुझे बहुत सुख मिला है।’
मां बोली, ‘बेटा इस नियम को छोड़ना मत। यदि तू नित्य नियमानुसार काम करेगा, तो कभी पीछे नहीं रहेगा। सुनकर गमन हंस पड़ा।

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