नये साल के पहले ही सप्ताह तिब्बत के शिगात्से क्षेत्र में लगभग 7 परिमाण का भूचाल आता है और उसके भय के झटके उत्तर भारत और खास कर हिमालयी राज्यों में महसूस किये जाते हैं। यह भूकंप उत्तर भारत और खास कर हिमालयी राज्यों के लिए एक चेतावनी है। भूकम्प का खौफ हिमालयी राज्यों में इसलिये ज्यादा है क्योंकि, भूकम्पीय संवेदनशीलता की दृष्टि से यह क्षेत्र जोन पांच और जोन चार में आता है, जिसे सर्वाधिक संवेदनशील माना जाता है। भूकम्प वैज्ञानिक पहले ही चेतावनी दे चुके हैं कि नेपाल को छोड़ कर हिमालयी भारत में पिछले 100 साल से अधिक समय से 8अंक परिमाण का बड़ा भूकम्प नहीं आया, जिस कारण धरती के अंदर बहुत अधिक भूगर्वीय ऊर्जा जमा हो चुकी है जो कि किसी भी समय बहुत ही भयंकर भूकम्प के साथ बाहर निकल सकती है। भूगर्वीय ऊर्जा का यह विस्फोट या भूचाल रिक्टर पैमाने पर 8 अंक या उससे अधिक परिमाण का हो सकता है जो कि बहुत ही विनाशकारी हो सकता है। चूंकि इसे रोका नहीं जा सकता, इसलिये सावधानी और सतर्कता और जागरूकता में ही सुरक्षा की गारंटी निहित है।
निरन्तर बढ़ रही भूकम्प की घटनाएं
राष्ट्रीय भूकम्प विज्ञान केन्द्र की बेवसाईट पर अगर नजर डालें तो उसमें अकेले 8 जनवरी के दिन सिक्किम में 2.8 से लेकर 4.9 परिमाण तक के 24 भूकम्पों के रिकार्ड किये जाने का उल्लेख है। 7 जनवरी को भी इतने ही भूकम्प सिक्किम में दर्ज हुये थे। इस साल पहली जनवरी से लेकर 8 जनवरी तक मणिपुर, हिमाचल प्रदेश के डोडा, मध्य प्रदेश के सिंगरौली और गुजरात के कच्छ आदि में दर्जनों भूचाल दर्ज हो गये। लोकसभा में 6 दिसम्बर 2023 को पृथ्वी विज्ञान मंत्री किरन रिजजू द्वारा दिये गये एक वक्तव्य के अनुसार उत्तर भारत और नेपाल में आने वाले भूकम्पों की संख्या निरन्तर बढ़ती जा रही है और इसका मुख्य कारण पश्चिमी नेपाल में अल्मोड़ा फॉल्ट का सक्रिय होना है। वैज्ञानिक पहले ही एमसीटी जैसे भ्रंशों के आसपास खतरे की चेतावनी देते रहते हैं।
भारतीय उपमहाद्वीप टकरा रहा है यूरेशियन प्लेट से
भारत का हिमालयी क्षेत्र सदैव अपनी भूगर्वीय रचना के कारण भूकंप से अत्यधिक प्रभावित रहा है और यहाँ के निवासियों को अक्सर भूकंप के खतरों का सामना करना पड़ता है। विदित ही है कि हिमालयी क्षेत्र भौतिक दृष्टि से पृथ्वी की सबसे संवेदनशील जगहों में से एक है। हिमालय को सबसे युवा और नाजुक पहाड़ माना जाता है। यह क्षेत्र यूरेशियाई और भारतीय प्लेटों के बीच स्थित है जहां दोनों प्लेटें एक-दूसरे से टकराती हैं। यह टक्कर ही भूकंप के मुख्य कारणों में से एक है। भूगर्वीय इतिहास के अनुसार भारतीय उपमहाद्वीप मूल रूप से एक द्वीप था जो लगभग 50 मिलियन वर्ष पहले एशिया के साथ टकराया और इस प्रक्रिया में हिमालय का निर्माण हुआ। इस टक्कर के कारण पृथ्वी की सतह पर तीव्र दबाव और तनाव उत्पन्न हुआ, जो अब भी भूकंपन का कारण बनता है। भारतीय और यूरेशियाई प्लेटों की टक्कर निरंतर जारी है और इसके परिणामस्वरूप बड़ी मात्रा में भूगर्वीय ऊर्जा उत्पन्न होती है जो अचानक भूकंप के रूप में पृथ्वी की सतह को हिलाती है। हिमालयी क्षेत्र अत्यधिक ऊंचाई पर स्थित है, जहाँ भूमि की संरचना में लगातार परिवर्तन हो रहा है। भूकंप के झटके इन पहाड़ों की संरचना में उथल-पुथल पैदा करते हैं। पहाड़ी इलाकों में खनन, जलविद्युत परियोजनाओं, और अन्य निर्माण गतिविधियाँ भी भूकंपीय गतिविधियों को उत्तेजित कर सकती हैं। इन गतिविधियों से भूमि के भीतर दबाव बढ़ता है, जिससे भूकंप के झटके महसूस हो सकते हैं।
धरती के अंदर जमा भयंकर ऊर्जा निकल सकती है बाहर
उत्तराखंड और हिमालयी क्षेत्र में पिछले लगभग 100 वर्षों से अधिक समय से कोई बड़ा भूकंप (8.0़ तीव्रता का) नहीं आया है। हिमालय क्षेत्र में आखिरी बार 8.0़ तीव्रता का बड़ा भूकंप 1934 (नेपाल-बिहार भूकंप) और 1950 (असम भूकंप) में आया था। यह स्थिति ‘‘सेस्मिक गैप’’ कहलाती है। भूविज्ञानियों के अनुसार इस गैप के कारण बड़ी मात्रा में भूगर्भीय ऊर्जा संचित हो रही है। इस ऊर्जा के लंबे समय तक रिलीज न होने से भविष्य में बड़े भूकंप की संभावना बढ़ गयी है। ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में देखा जाय तो 1803 में गढ़वाल भूकंप आया था जिसकी तीव्रता 7.5 से अधिक थी और इसने व्यापक तबाही मचाई थी। उसके बाद गढ़वाल में भयंकर अकाल पड़ा। इसके बाद 1905 में कांगड़ा भूकंप आया जिसकी तीव्रता 7.8, थी उसने भी हिमालय क्षेत्र में बड़ी तबाही मचाई। सन् 1950 के असम-तिब्बत भूकंप की तीव्रता 8.6, थी। यह हिमालय में दर्ज सबसे बड़ा भूकंप था, लेकिन उत्तराखंड इससे बचा रहा। उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्र लगभग 100 वर्षों से बड़े भूकंप से अछूते हैं, जिससे वैज्ञानिक मानते हैं कि इस ‘‘सेस्मिक गैप‘‘ के कारण इतनी भूगर्वीय उर्जा संचित हो चुकी है कि जो एक साथ बाहर किल गयी तो कई परमाणु बमों से अधिक विध्वंशकारी हो सकती है। इसलिये भविष्य के खतरों को देखते हुए, भूकंप-रोधी तकनीकों का उपयोग और आपदा प्रबंधन की तैयारियां अत्यंत आवश्यक हैं।
सावधानी और सतर्कता ही सबसे बड़ा बचाव
हालांकि भूकम्प एक प्राकृतिक घटना है जिसे रोका नहीं जा सकता। यही नहीं भूकंप का पूर्वानुमान करना फिलहाल संभव नहीं है। इससे बचने का सबसे बड़ा उपाय प्रकृति के साथ जीना सीखना ही है। भूकम्प किसी को नहीं मारता है। मारने वाला हमारा घर या भवन होता है जिसे हम अपनी सुरक्षा और सुविधा के लिये बनाते हैं। अगर भवन का ढांचा भूकम्प रोधी बने तो जानमाल का नुकसान कम किया जा सकता है। इसके लिये हमें जापान से सबक सीखना चाहिये। भारत सरकार ने ‘‘भारतीय मानक 1893’’ जैसे निर्माण मानकों को लागू किया है, जो भूकंप-रोधी संरचनाओं के निर्माण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। इसके अलावा विभिन्न वैज्ञानिक शोधों के माध्यम से कुछ भूकंपीय गतिविधियों का पूर्वानुमान किया जा सकता है। इसके लिए उपग्रहों और अन्य आधुनिक तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है। भारत में भूकंपीय नेटवर्क को मजबूत करना और इससे जुड़ी चेतावनी प्रणालियों को विकसित करना महत्वपूर्ण है। भूकंप की स्थिति में नागरिकों को किस तरह से प्रतिक्रिया करनी चाहिए, यह जानना अत्यधिक आवश्यक है। स्कूलों, कार्यालयों और समुदायों में भूकंप सुरक्षा को लेकर नियमित प्रशिक्षण और अभ्यास आयोजित करना चाहिए। इसके अलावा, भूकंप-रोधी किट्स जैसे पानी, भोजन, प्राथमिक चिकित्सा सामग्री और अन्य जरूरी सामान को तैयार रखना चाहिए। हिमालयी क्षेत्रों में सड़कों, पुलों और अन्य महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे की मजबूती को बढ़ाना चाहिए, ताकि भूकंप के दौरान इनका गिरना या क्षतिग्रस्त होना कम हो। साथ ही, पुराने ढाँचों की मरम्मत और पुनर्निर्माण पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।