सिख धर्म के दसवें गुरु हुए गुरु गोविंद सिंह की जन्म स्थली
बिहार की राजधानी पटना के बारे में कहा जाता है कि पटना शहर
को सन 1541 ई0 में शेरशाह सुरी ने बसाया था। हालांकि पटना महानगर का इतिहास 600 शताब्दी पूर्व भगवान
बुद्ध के समय से भी जुडा है। पटना तब एक छोटा सा कस्बा हुआ करता था और इसे पाटलीपुत्र नाम से दुनियाभर में पहचान मिली हुई थी। राजा अजात शत्रु ने अपने शत्रु लिच्छवी
गणतन्त्र का मुकाबला करने के लिए गंगा किनारे इस पाटलीपुत्र
कस्बे को एक किले के रूप में विकसित किया। जिसके तहत कस्बे के चारो ओर दीवारे बनाई गई। इसके बाद
महात्मा बुद्ध यहां आए और कुछ समय यहां प्रवास किया ,इसी कारण पटना को भगवान बुद्ध की नगरी भी कहां जाता है। कहा
जाता है कि 320 ई0 पूर्व नन्द राजा की राजधानी पाटलीपुत्र हुआ करती थी। राजा नन्द का साम्राराज्य भारत के एक बडे क्षेत्र तक फैला हुआ था। उस समय भी इस नगर के चारो तरफ दीवारे होने के प्रमाण मिलते है।
सेल्यूकश निकेटर के राजदूत मेगास्थ्निज के शब्दों में
,’पटना शहर भारत के बडे शहरों में से एक है, जिसके चारों
तरफ लकडी की दीवारे होना बताई गई थी,साथ ही इस
शहर के चारों तरफ 36 फीट चौडी व 15 फीट गहरी
खाई होने होने की बात भी इतिहास में दर्ज है। इस
शहर में 64 प्रवेशद्वार थे और 367 गुम्बज पटना नगर की
शोभा बढाते थे। लेकिन 530 ई0 में आए भंयकर भूुकम्प ने पटना शहर को बर्बाद कर दिया
था। बाद में समय के साथ पटना ने अपने आपको संभालाऔर कुछ ही वर्षो में फिर यह शहर दुनिया को अपनी तरफ आकर्षित करने लगा।
धार्मिक,साहित्यिक व राजनीतिक गतिविधियों के केन्द्र
पटना वह पावन धरती है जहां महात्मा बुद्ध,गुरू नानकदेव,गुरू तेग बहादुर व गुरू गोविन्द सिंह के चरण पडे जिससे यह धरती पवित्र और पावन हो गई। कहा जाता है कि प्रसिद्ध अर्थशास्त्री कौटिल्य ने इसी धरती पर अर्थशास्त्र की रचना की थी।दुनियाभर में प्रख्यात रहे व्याकरण विद्वान पाणिनी की प्रसिद्ध पुस्तक ‘अष्टाध्यायी’ भी यही लिखी गई थी। कहा यह जाता है कि महाराजा पत्रक ने अपनी रानी पाटल के नाम पर इस शहर का नाम पटना रखा था वही भविष्य पुराण में महाबली पाली द्वारा अपनी पत्नी पटल के नाम पर इस शहर का नाम पटना रखे जाने का उल्लेख मिलता है। वास्तव में सही क्या है यह तो इतिहासकार ही जाने परन्तु इतना सच है कि पटना में गुरू गोविन्द सिंह 22 दिसम्बर सन 1666 ई0को जन्मे थे। गुरू तेगबहादुर धर्म प्रचार के दौरान आसाम के धुब डी गए थे और माता गुजरी
को गर्भवती होने के कारण पटना में विश्राम के लिए छोड गए थे जहां पर माता गुजरी ने गुरू गोविन्द सिंह को जन्म दिया और गुरू गोविन्द सिंह जन्म से सात साल तक पटना में ही रहे। यानि उनका बाल्यकाल पटना में ही
बीता। इसी कारण पटना को गुरू का घर भी कहा जाता
है।पटना की महिमा स्वयं सिख धर्म के दसवें गुरू गोविन्द सिंह ने की है। जिसका वर्णन उन्होने यूं
किया है, ‘तही प्रकाश हमारा भयों ।पटना शहर बिखै भव लयौ ।।’पटना गुरू का घर इसलिए भी है क्योंकि यहां गुरू
गोविन्द सिंह के नन्हे नन्हे पैरों की अमिट छाप पडी और उनका बचपन यहां बीता।गुरू गोविन्द सिंह के बचपन की स्वर्णिम यादें पटना के ऐतिहासिक श्री हरिमन्दिर साहिब गुरूद्वारें में संजोयी हुई है। जिन्हे निहारने के लिए देश विदेश से बडी संख्या में श्रद्धालु यहां आए दिन पधारते
है।यही वह स्थान है जहां पर खालसा पंथ के जन्मदाता
सृजनहार का प्रकाश हुआ। जिस तरह श्री ननकाना साहिब में श्री
गुरू नानकदेव के अवतार धारण करने के कारण वह स्थान सिखी का मूल है उसी तरह दसवें गुरू गोविन्द सिंह के यहां अवतार लेने के कारण यह स्थान खालसा पंथ का मूल बन गया है। गुरू गोविन्द सिंह के इसी जन्म स्थान पर उनके अनुयायी सिख ने एक यादगार इमारत बनवाईं और इस इमारत का नाम तख्त श्री हरि मंन्दिर साहिब रखा गया जो सिखो का पावन शक्ति का केन्द्र बन गया,इस श्री हरि मन्दिर साहिब भवन का विस्तार सन 1837 ई0 में महाराजा रणजीत सिंह ने करवाया परन्तु सन 1934 में आए भूकम्प से इस गुरूद्वारें की इमारत को भारी क्षति हुई परन्तु सिख धर्म में आस्था
रखने वालों ने इस इमारत को ठीक करके आलीशान बना
दिया। इस गुरूद्वारे में गुरू तेगबहादुर सिंह और गुरू
गोविन्द सिंह दोनो केखडाउ ,वस्त्र व अन्य उपयोग की हुई वस्तुयें दर्शनीय रखी हुई है।गुरू गोविन्द सिंह की गुलेल,तीर,तलवार के साथ ही उनका पवित्र चोगा जो
पहले पाकिस्तान में था को श्री हरिमन्दिर साहिब में दर्शनीय रखा गया है। इस गुरूद्वारे में एक माता का कुआ भी है जिसके बारे में कहा जाता है कि इस कुएं का पानीगुरू गोविन्द सिंह के बाल्यकाल में बहुत मीठा था ।
जिसकारण आस पास के क्षेत्र की महिलायें इस कुएं से पानी
भरने आती थी। परन्तु उस समय बालक रहे गुरू गोविन्द सिंह गुलेल से महिलाओं के घडे तोड देते थे। परेशान होकर महिलाओं ने माता गुजरी के कहने पर
अपने घडे धातु के बनवा लिए परन्तु गुरू गोविन्द सिंह ने
बाल लीला करते हुए तीर से एक महिला का पानी से भरा धातु का घडा भी तोड दिया ।जिससे आहत होकर माता गुजरी ने कुएं का पानी खारा हो जाने का शाप दे दिया इस पर गुरू गोविन्द सिंह ने माता गुजरी को सफाई दी कि जिस महिला का जो घडा
उन्होने तोडा है उसमें सांप है और वास्तव में घडे में सांप देखकर सब हैरान रह गए। मौके पर मौजूद सभी ने माता गुजरी से उक्त कुएं का पानी फिर से मीठा कर देने के लिए कहा, जिसपर माता गुजरी ने कहा कि जैसे जैसे यहां संगत आएगी वैसे वैसे इस कुएं का पानी मीठा होता जाएगा
और वास्तव में श्री हरिमन्दिर साहिब में संगत बढने के
साथ ही कुएं का पानी मीठा हो गया। तभी से इस कुएं को
‘माता का कुआ’ कहा जाने लगा और इसी कुएं के पानी से
गुरूद्वारे का प्रसाद बनाया जाने लगा। इस गुरूद्वारे में पहुंचकर
मत्था टेकने से बेहद की शान्ति का अनुभव होता
है। मन्नते मांगने और मन्नते पूरी होने पर मत्था टेकने वालों का यंहा तांता लगा रहता है। इस गुरूद्वारे के बारे में धार्मिक मान्यता है कि प्रत्येक सिख को जीवन में एक बार यहां आकर मत्था जरूर टेकना चाहिए।
शायद इसी लिए पटना में सिख धर्म से जुडे लोग तो आते ही है वही अन्य धर्मो से जुडे लोग भी श्री हरिमन्दिर साहिब आकर मत्था टेकते है।
बिहार की राजधानी पटना के बारे में कहा जाता है कि पटना शहर
को सन 1541 ई0 में शेरशाह सुरी ने बसाया था। हालांकि पटना महानगर का इतिहास 600 शताब्दी पूर्व भगवान
बुद्ध के समय से भी जुडा है। पटना तब एक छोटा सा कस्बा हुआ करता था और इसे पाटलीपुत्र नाम से दुनियाभर में पहचान मिली हुई थी। राजा अजात शत्रु ने अपने शत्रु लिच्छवी
गणतन्त्र का मुकाबला करने के लिए गंगा किनारे इस पाटलीपुत्र
कस्बे को एक किले के रूप में विकसित किया। जिसके तहत कस्बे के चारो ओर दीवारे बनाई गई। इसके बाद
महात्मा बुद्ध यहां आए और कुछ समय यहां प्रवास किया ,इसी कारण पटना को भगवान बुद्ध की नगरी भी कहां जाता है। कहा
जाता है कि 320 ई0 पूर्व नन्द राजा की राजधानी पाटलीपुत्र हुआ करती थी। राजा नन्द का साम्राराज्य भारत के एक बडे क्षेत्र तक फैला हुआ था। उस समय भी इस नगर के चारो तरफ दीवारे होने के प्रमाण मिलते है।
सेल्यूकश निकेटर के राजदूत मेगास्थ्निज के शब्दों में
,’पटना शहर भारत के बडे शहरों में से एक है, जिसके चारों
तरफ लकडी की दीवारे होना बताई गई थी,साथ ही इस
शहर के चारों तरफ 36 फीट चौडी व 15 फीट गहरी
खाई होने होने की बात भी इतिहास में दर्ज है। इस
शहर में 64 प्रवेशद्वार थे और 367 गुम्बज पटना नगर की
शोभा बढाते थे। लेकिन 530 ई0 में आए भंयकर भूुकम्प ने पटना शहर को बर्बाद कर दिया
था। बाद में समय के साथ पटना ने अपने आपको संभालाऔर कुछ ही वर्षो में फिर यह शहर दुनिया को अपनी तरफ आकर्षित करने लगा।
धार्मिक,साहित्यिक व राजनीतिक गतिविधियों के केन्द्र
पटना वह पावन धरती है जहां महात्मा बुद्ध,गुरू नानकदेव,गुरू तेग बहादुर व गुरू गोविन्द सिंह के चरण पडे जिससे यह धरती पवित्र और पावन हो गई। कहा जाता है कि प्रसिद्ध अर्थशास्त्री कौटिल्य ने इसी धरती पर अर्थशास्त्र की रचना की थी।दुनियाभर में प्रख्यात रहे व्याकरण विद्वान पाणिनी की प्रसिद्ध पुस्तक ‘अष्टाध्यायी’ भी यही लिखी गई थी। कहा यह जाता है कि महाराजा पत्रक ने अपनी रानी पाटल के नाम पर इस शहर का नाम पटना रखा था वही भविष्य पुराण में महाबली पाली द्वारा अपनी पत्नी पटल के नाम पर इस शहर का नाम पटना रखे जाने का उल्लेख मिलता है। वास्तव में सही क्या है यह तो इतिहासकार ही जाने परन्तु इतना सच है कि पटना में गुरू गोविन्द सिंह 22 दिसम्बर सन 1666 ई0को जन्मे थे। गुरू तेगबहादुर धर्म प्रचार के दौरान आसाम के धुब डी गए थे और माता गुजरी
को गर्भवती होने के कारण पटना में विश्राम के लिए छोड गए थे जहां पर माता गुजरी ने गुरू गोविन्द सिंह को जन्म दिया और गुरू गोविन्द सिंह जन्म से सात साल तक पटना में ही रहे। यानि उनका बाल्यकाल पटना में ही
बीता। इसी कारण पटना को गुरू का घर भी कहा जाता
है।पटना की महिमा स्वयं सिख धर्म के दसवें गुरू गोविन्द सिंह ने की है। जिसका वर्णन उन्होने यूं
किया है, ‘तही प्रकाश हमारा भयों ।पटना शहर बिखै भव लयौ ।।’पटना गुरू का घर इसलिए भी है क्योंकि यहां गुरू
गोविन्द सिंह के नन्हे नन्हे पैरों की अमिट छाप पडी और उनका बचपन यहां बीता।गुरू गोविन्द सिंह के बचपन की स्वर्णिम यादें पटना के ऐतिहासिक श्री हरिमन्दिर साहिब गुरूद्वारें में संजोयी हुई है। जिन्हे निहारने के लिए देश विदेश से बडी संख्या में श्रद्धालु यहां आए दिन पधारते
है।यही वह स्थान है जहां पर खालसा पंथ के जन्मदाता
सृजनहार का प्रकाश हुआ। जिस तरह श्री ननकाना साहिब में श्री
गुरू नानकदेव के अवतार धारण करने के कारण वह स्थान सिखी का मूल है उसी तरह दसवें गुरू गोविन्द सिंह के यहां अवतार लेने के कारण यह स्थान खालसा पंथ का मूल बन गया है। गुरू गोविन्द सिंह के इसी जन्म स्थान पर उनके अनुयायी सिख ने एक यादगार इमारत बनवाईं और इस इमारत का नाम तख्त श्री हरि मंन्दिर साहिब रखा गया जो सिखो का पावन शक्ति का केन्द्र बन गया,इस श्री हरि मन्दिर साहिब भवन का विस्तार सन 1837 ई0 में महाराजा रणजीत सिंह ने करवाया परन्तु सन 1934 में आए भूकम्प से इस गुरूद्वारें की इमारत को भारी क्षति हुई परन्तु सिख धर्म में आस्था
रखने वालों ने इस इमारत को ठीक करके आलीशान बना
दिया। इस गुरूद्वारे में गुरू तेगबहादुर सिंह और गुरू
गोविन्द सिंह दोनो केखडाउ ,वस्त्र व अन्य उपयोग की हुई वस्तुयें दर्शनीय रखी हुई है।गुरू गोविन्द सिंह की गुलेल,तीर,तलवार के साथ ही उनका पवित्र चोगा जो
पहले पाकिस्तान में था को श्री हरिमन्दिर साहिब में दर्शनीय रखा गया है। इस गुरूद्वारे में एक माता का कुआ भी है जिसके बारे में कहा जाता है कि इस कुएं का पानीगुरू गोविन्द सिंह के बाल्यकाल में बहुत मीठा था ।
जिसकारण आस पास के क्षेत्र की महिलायें इस कुएं से पानी
भरने आती थी। परन्तु उस समय बालक रहे गुरू गोविन्द सिंह गुलेल से महिलाओं के घडे तोड देते थे। परेशान होकर महिलाओं ने माता गुजरी के कहने पर
अपने घडे धातु के बनवा लिए परन्तु गुरू गोविन्द सिंह ने
बाल लीला करते हुए तीर से एक महिला का पानी से भरा धातु का घडा भी तोड दिया ।जिससे आहत होकर माता गुजरी ने कुएं का पानी खारा हो जाने का शाप दे दिया इस पर गुरू गोविन्द सिंह ने माता गुजरी को सफाई दी कि जिस महिला का जो घडा
उन्होने तोडा है उसमें सांप है और वास्तव में घडे में सांप देखकर सब हैरान रह गए। मौके पर मौजूद सभी ने माता गुजरी से उक्त कुएं का पानी फिर से मीठा कर देने के लिए कहा, जिसपर माता गुजरी ने कहा कि जैसे जैसे यहां संगत आएगी वैसे वैसे इस कुएं का पानी मीठा होता जाएगा
और वास्तव में श्री हरिमन्दिर साहिब में संगत बढने के
साथ ही कुएं का पानी मीठा हो गया। तभी से इस कुएं को
‘माता का कुआ’ कहा जाने लगा और इसी कुएं के पानी से
गुरूद्वारे का प्रसाद बनाया जाने लगा। इस गुरूद्वारे में पहुंचकर
मत्था टेकने से बेहद की शान्ति का अनुभव होता
है। मन्नते मांगने और मन्नते पूरी होने पर मत्था टेकने वालों का यंहा तांता लगा रहता है। इस गुरूद्वारे के बारे में धार्मिक मान्यता है कि प्रत्येक सिख को जीवन में एक बार यहां आकर मत्था जरूर टेकना चाहिए।
शायद इसी लिए पटना में सिख धर्म से जुडे लोग तो आते ही है वही अन्य धर्मो से जुडे लोग भी श्री हरिमन्दिर साहिब आकर मत्था टेकते है।