गंगा की महिमा के संबंध में विभिन्न पुराणों, धार्मिक पुस्तकों आदि में वर्णन मिलता है। गंगाजल को अमृत माना जाता है। गंगास्नान की महत्ता तो इसी से समझी जा सकती है कि इसे पापनाशिनी भी कहा जाता है।
’हरि अनन्त हरिकथा अनन्ता‘ की तरह ही गंगा की महिमा भी अपरम्पार है। एक गीत में कहा भी गया है-’मानो तो मैं गंगा हूं, न मानो तो बहता पानी‘ यानी विश्वास/मान्यता ही श्रद्धा का मूल है।
श्रीमदभागवत गीता के 10 वें अध्याय में श्रीकृष्ण ने कहा है-’’मैं नदियों में गंगा हूं।‘‘ गंगा के महत्त्व पर पुराणों में आई चर्चाओं पर दृष्टि डालें।
पदम पुराण में महर्षि वेद व्यास कहते हैं कि जो व्यक्ति गंगा जी के जल में विधिपूर्वक पिण्डदान करता हैं, उसे सौ यज्ञों का फल प्राप्त होता है तथा अक्षय स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
स्कन्द पुराण में आया है कि गंगा जी मुक्ति प्रदान करने वाली हैं। गंगाजी पतितों को भी सद्गति प्रदान करती है।
ब्रह्ममवैवर्त पुराण में वर्णन है कि मनुष्यों के छोटे-मोटे पाप तो गंगा की स्पर्शवायु से ही भाग जाते हैं।
विष्णु पुराण कहता है कि गंगा जी में स्नान करने से शीघ्र पाप नाश हो जाता है और अपूर्व पुण्य लाभ मिलता है।
वृहन्नारदीय पुराण में वर्णन है कि धरती पर सभी तीर्थों में गंगा जी श्रेष्ठ हैं तथा इसके समान पापों का नाश करने वाला अन्य तीर्थ इस भूमण्डल में नहीं है।
गंगा जल के बारे में प्रचलित मान्यताएं व तथ्य तो यहां तक कहते हैं कि यदि मृत्यु शैय्या पर पड़े व्यक्ति के मुख में गंगाजल डाल दिया जाये तो वह भी बन्धनों से मुक्त हो जाता है।
वाराणसी के गंगा तट पर मणिकर्णिका घाट पर मृत शरीर का अन्तिम संस्कार होने से उस प्राणी को मोक्ष मिलता है, ऐसा विश्वास किया जाता है।
गंगा तट पर ही वाल्मीकि ने रामायण रची तो तुलसीदास ने इसी के किनारे रामचरितमानस रचा।
आज गंगाजल प्रदूषण को लेकर चर्चा होती रहती है। सत्य है कि स्वार्थी मानव प्रवृत्ति के कारण गंगाजल प्रदूषित हो रहा है किंतु यह वही गंगाजल है, जिस पर वैज्ञानिकों ने शोध किये व इसकी पवित्राता का लोहा माना।
गंगाजल का परीक्षण करने वाले वैज्ञानिक हैनवरी ने लिखा है कि-युगों से हिन्दुओं का विश्वास रहा है कि गंगाजल सर्वथा पवित्रा है। उसमें किसी भी मलिन वस्तु के सम्पर्क से मलिनता नहीं आती बल्कि जिस वस्तु से उसका स्पर्श हो जाता है, वह निश्चित रूप से पवित्रातम व शुद्ध हो जाती है। हम पश्चिम वाले इसके लिए हिंदुओं का मजाक उड़ाते आ रहे थे मगर अब परीक्षणों के बाद हमें अपनी हंसी रोकनी पड़ी है।‘ यानी इन्होंने भी इसकी महत्ता स्वीकारी।
प्रसिद्ध शहनाई वादक उस्ताद बिसमिल्ला खान ने एक बार कहा था-’मैं धन्य हूं कि गंगा के निकट रहा। मैंने लम्बे समय तक गंगा तट पर बैठकर शहनाई का अभ्यास किया है। इसमें मुझे अलौकिक आनन्द व संतुष्टि मिलती है।‘
वास्तव में गंगा व गंगाजल की महत्ता सिर्फ अहसास करने का विषय है। इसकी महिमा अपरम्पार है, जो युगों से है और रहेगी। जय मां गंगे।
’हरि अनन्त हरिकथा अनन्ता‘ की तरह ही गंगा की महिमा भी अपरम्पार है। एक गीत में कहा भी गया है-’मानो तो मैं गंगा हूं, न मानो तो बहता पानी‘ यानी विश्वास/मान्यता ही श्रद्धा का मूल है।
श्रीमदभागवत गीता के 10 वें अध्याय में श्रीकृष्ण ने कहा है-’’मैं नदियों में गंगा हूं।‘‘ गंगा के महत्त्व पर पुराणों में आई चर्चाओं पर दृष्टि डालें।
पदम पुराण में महर्षि वेद व्यास कहते हैं कि जो व्यक्ति गंगा जी के जल में विधिपूर्वक पिण्डदान करता हैं, उसे सौ यज्ञों का फल प्राप्त होता है तथा अक्षय स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
स्कन्द पुराण में आया है कि गंगा जी मुक्ति प्रदान करने वाली हैं। गंगाजी पतितों को भी सद्गति प्रदान करती है।
ब्रह्ममवैवर्त पुराण में वर्णन है कि मनुष्यों के छोटे-मोटे पाप तो गंगा की स्पर्शवायु से ही भाग जाते हैं।
विष्णु पुराण कहता है कि गंगा जी में स्नान करने से शीघ्र पाप नाश हो जाता है और अपूर्व पुण्य लाभ मिलता है।
वृहन्नारदीय पुराण में वर्णन है कि धरती पर सभी तीर्थों में गंगा जी श्रेष्ठ हैं तथा इसके समान पापों का नाश करने वाला अन्य तीर्थ इस भूमण्डल में नहीं है।
गंगा जल के बारे में प्रचलित मान्यताएं व तथ्य तो यहां तक कहते हैं कि यदि मृत्यु शैय्या पर पड़े व्यक्ति के मुख में गंगाजल डाल दिया जाये तो वह भी बन्धनों से मुक्त हो जाता है।
वाराणसी के गंगा तट पर मणिकर्णिका घाट पर मृत शरीर का अन्तिम संस्कार होने से उस प्राणी को मोक्ष मिलता है, ऐसा विश्वास किया जाता है।
गंगा तट पर ही वाल्मीकि ने रामायण रची तो तुलसीदास ने इसी के किनारे रामचरितमानस रचा।
आज गंगाजल प्रदूषण को लेकर चर्चा होती रहती है। सत्य है कि स्वार्थी मानव प्रवृत्ति के कारण गंगाजल प्रदूषित हो रहा है किंतु यह वही गंगाजल है, जिस पर वैज्ञानिकों ने शोध किये व इसकी पवित्राता का लोहा माना।
गंगाजल का परीक्षण करने वाले वैज्ञानिक हैनवरी ने लिखा है कि-युगों से हिन्दुओं का विश्वास रहा है कि गंगाजल सर्वथा पवित्रा है। उसमें किसी भी मलिन वस्तु के सम्पर्क से मलिनता नहीं आती बल्कि जिस वस्तु से उसका स्पर्श हो जाता है, वह निश्चित रूप से पवित्रातम व शुद्ध हो जाती है। हम पश्चिम वाले इसके लिए हिंदुओं का मजाक उड़ाते आ रहे थे मगर अब परीक्षणों के बाद हमें अपनी हंसी रोकनी पड़ी है।‘ यानी इन्होंने भी इसकी महत्ता स्वीकारी।
प्रसिद्ध शहनाई वादक उस्ताद बिसमिल्ला खान ने एक बार कहा था-’मैं धन्य हूं कि गंगा के निकट रहा। मैंने लम्बे समय तक गंगा तट पर बैठकर शहनाई का अभ्यास किया है। इसमें मुझे अलौकिक आनन्द व संतुष्टि मिलती है।‘
वास्तव में गंगा व गंगाजल की महत्ता सिर्फ अहसास करने का विषय है। इसकी महिमा अपरम्पार है, जो युगों से है और रहेगी। जय मां गंगे।