‘प्रदर्शन’नहीं गणतंत्र का ‘दर्शन’ है संविधान

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एक और गणतंत्र दिवस हमारे सामने है। एक बार फिर से राष्ट्रीय ध्वज फहरा रहा है और गणतंत्र का उत्सव मनाया जा रहा है।  एक बार फिर से पूरा देश गणतंत्र एवं लोकतांत्रिक देश होने पर इठला रहा है लेकिन पिछले कुछ दिनों से जिस प्रकार से संविधान को ‘दर्शन’ के बजाय ‘प्रदर्शन’ की वस्तु बनाकर प्रयोग किया जा रहा है उस पर बहुत कुछ सोचने को मजबूर करता है इस बार का गणतंत्र दिवस।

    वर्तमान संदर्भों पर जाने से पहले बेहतर हो कि देख लिया जाए इतिहास क्या कहता है हमारे संविधान पर।

 

1950 से हुआ लागू

भारतीय संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ और यह भारत को एक लोकतांत्रिक, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और गणराज्य के रूप में परिभाषित करता है। यह देश की सर्वोच्च विधि है और भारत के सभी नागरिकों, संस्थाओं और सरकारों को उनके अधिकारों और कर्तव्यों का मार्गदर्शन प्रदान करता है। भारतीय संविधान को समझने के लिए जरूरी है कि हम जान लें की इस संविधान का मूल स्वरूप क्या है।

संविधान की विशेषताएं

 लोकतंत्र का आधार

भारतीय संविधान भारत को एक लोकतांत्रिक देश घोषित करता है, जहां प्रत्येक नागरिक को समान मताधिकार का अधिकार है। यह जनता को सरकार चुनने का अधिकार देता है और शासन को जनता के प्रति उत्तरदायी बनाता है। यह देश में राजतंत्र को रोकने के लिए गणतंत्र चुनाव प्रणाली को प्रश्रय देता है

 

 मूल अधिकारों का रक्षक

भारतीय संविधान प्रत्येक नागरिक को स्वतंत्रता, समानता, और न्याय के मूल अधिकार प्रदान करता है। ये अधिकार नागरिकों को उनके अधिकारों के हनन से बचाने का कार्य करते हैं लेकिन साथ ही साथ यह नागरिकों को राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों से बांधता भी है।

 

धर्मनिरपेक्षता पर बल

भारतीय संविधान धर्मनिरपेक्षता की गारंटी देता है। यह प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता देता है और राज्य को किसी भी धर्म के प्रति पक्षपाती होने से रोकता है। संविधान की मानें तो भारत में हर धर्म, पंथ, संप्रदाय या जाति अथवा वर्ग हर तरह से समान एवं समकक्ष हैं।

 

समाजवाद को प्रश्रय

भारत कासंविधान सामाजिक और आर्थिक समानता को बढ़ावा देता है। यह समाज के कमजोर वर्गों के लिए विशेष प्रावधानों का प्रावधान करता है। इन्हीं प्रावधानों के चलते हुए कमजोर तब को के लिए आरक्षण की व्यवस्था संविधान की इसी विशेषता के चलते हो पाई है।

 

 लचीलापन व उदारता

भारतीय संविधान की संरचना इसे स्थायित्व और लचीलापन दोनों प्रदान करती है। इसे समय और परिस्थितियों के अनुसार संशोधित किया जा सकता है, जिससे यह वर्तमान समस्याओं के समाधान में सहायक बनता है। यानी भारतीय संविधान कल स्थिति एवं आवश्यकता के अनुसार संविधान संशोधन की अनुमति देता है।

 

कानूनी सर्वोच्चता

संविधान कहता है कि देश में संविधान के प्रावधानों के अनुसार ही सभी निर्णय लिए जाते हैं। यह सरकार और नागरिकों दोनों पर लागू होता है यानी भारत का संविधान सरकारों, संस्थाओं एवं नागरिकों को उच्च उच्छृंखल एवं उद्दंड होने से रोकता है।

 

 संघीय ढांचा

भारत के राज्यों और केंद्र सरकार के बीच शक्ति के बंटवारे के लिए संविधान एक स्पष्ट संघीय ढांचे की स्थापना करता है। भारतीय संविधान न केंद्र सरकार और न ही राज्यों की सरकारों को मनमानी करने या एक पक्षीय निर्णय लेने की छूट प्रदान करता हैं और न ही केंद्र सरकार की सर्वोच्चता को आघात पहुंचाता है।

 

पारदर्शिता और जवाबदेही

संविधान के प्रावधान सरकार को पारदर्शी और उत्तरदायी बनाते हैं। यह भ्रष्टाचार और अधिनायकवाद को रोकने में सहायक है। भारतीय संविधान के निर्माता को शायद इस बात का एहसास था कि आने वाले समय में यदि शक्तियां केवल कुछ ही व्यक्तियों तक सीमित हो जाएंगी तो देश तानाशाही की ओर जा सकता है इसीलिए इसमें पारदर्शिता एवं जवाब देही तय की गई है।

 

भले ही भारतीय संविधान अपने आप में सर्वोच्च क्यों न हो लेकिन समय के साथ इसकी कई सीमाएं व कमजोरियां भी उजागर हुई हैं आज अवसर है इन खामियों एवं सीमाओं पर चर्चा करने का

खामियां एवं सीमाएं

 

धीमी न्याय प्रणाली

भारतीय संविधान के बावजूद, न्यायपालिका में लंबित मामलों की बड़ी संख्या नागरिकों के लिए न्याय प्राप्त करने में बाधा बनती है। इसी कमी की वजह से आज भारतीय न्यायालय में भारी संख्या में प्रकरण लंबित है सरकारी विभागों में निर्णय लेने में टाल मटोल एवं दिल की प्रवृत्ति देखी जा रही है।

 

आर्थिक विषमता

समानता के अधिकार के बावजूद भी आर्थिक और सामाजिक असमानता अभी भी बनी हुई है। संविधान की प्रावधानों के बावजूद, समाज में जाति, धर्म और वर्ग आधारित भेदभाव देखा जाता है। दूसरे विकसित देशों की तरह आज भारत में भी अरबपतियों की संख्या बढ़ रही है और बहुत बड़ा वर्ग गरीबों की रेखा के आसपास या नीचे का जीवन जीने को विवश है अब समय आ गया है कि इस खाई को पाटने की समुचित व्यवस्था की जाए।

 

राजनीतिक हस्तक्षेप

संविधान की भावना के विपरीत, राजनीतिक दल और नेता अपने स्वार्थ के लिए संवैधानिक प्रावधानों का दुरुपयोग करते हैं। स्वाधीनता के बाद एक बार नहीं अनेक बार सत्ता पक्ष ने अपनी सुविधा एवं लाभ की दृष्टि से ऐसे अनेक निर्णय लिए हैं जो संविधान में राजनीतिक हस्तक्षेप को स्पष्ट इंगित करते हैं। इस प्रवृत्ति पर रोक के लिए जागरूकता बहुत जरूरी है ।

 

बेशक, भारतीय संविधान एक आदर्श और व्यापक दस्तावेज है जो लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय की भावना को सुदृढ़ करता है। लेकिन इसे प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए जनता और सरकार दोनों को मिलकर काम करना होगा। इसकी खामियां दूर करने के लिए शिक्षा, जागरूकता और राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है।

 देखने में तो भारतीय संविधान सशक्त नज़र आता है लेकिन पिछले कुछ दिनों से जिस प्रकार से सत्ता पक्ष एवं विपक्ष ने संविधान के प्रावधानों नियमों कानूनों एवं नीति निर्देशक तत्वों का अपने-अपने हित में उपयोग किया है या करने की कोशिश की है वह एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है ।

 

खतरनाक होती राजनीति  

जेब में संविधान लेकर घूमने, सभा में उसे एक लाल किताब की तरह पेश करना, उसका तिरस्कार करने के लिए उसे जलाना या उसमें दिए गए प्रावधानों का आंशिक रूप से इस तरह इस्तेमाल करना कि  राजनीतिक रोटियां सेंकी जा सकें बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण एवं खतरनाक है ।

 

 चुनाव के वक्त और बाद में भी संविधान से जिस प्रकार की खिलवाड़ की जा रही है वह एक बहुत बड़ा प्रश्न इस देश के लोकतांत्रिक व गणतांत्रिक राष्ट्र होने पर बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा करता नजर आता है ।

     यदि गणतंत्र के सूर्य को गौरव के साथ भारत माता को अपनी स्वर्णिम रश्मियों से खुशियां प्रदान करते देखना है तो उसके राजनीतिकरण को रोकना ही होगा।

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