वृद्धावस्था में तरह-तरह की चिंताओं से ग्रस्त होना स्वाभाविक है। जवानी में अविवेक और अहंकार तथा काम और क्रोध के वशीभूत होकर जो जो भूलें कीं और उन भूलों के जो जो दुष्परिणाम हुए, इन पर सोचते रहने के लिए बाध्य होने वाले वृद्ध कम नहीं हैं। कुछ ऐसे होंगे जिन्होंने किसी को धोखा नहीं दिया होगा, तो भी किसी किसी से ऐसा धोखा खाना पड़ा होगा जिस से अकथनीय दुःख भोगना पड़ा होगा।
कुछ ऐसे बूढ़े हैं जो जवानी की अनियमित जीवनचर्या के फलस्वरूप तरह-तरह की शारीरिक बीमारियों के शिकार हो गए हैं। कुछ ऐसे बूढ़े भी हैं जो किसी सड़क दुर्घटना में ग्रस्त होने के कारण विकलांग हो गए हैं। कुछ ऐसे होंगे जिन की आंखांे की ज्योति चली गई है या श्रवण शक्ति नष्ट हो गई है। ऐसे भी कुछ होंगे जो सारी नियमितताओं के बावजूद किसी प्रकार के शारीरिक रोग से पीडि़त होंगे।
इन सारे वृद्धों के लिए निद्राहीनता एक बड़ी समस्या बन जाती है। रात को बड़ी देर तक नींद नहीं आती। बिस्तर पर लेटे हुए नींद का इंतजार कर रहे होते हैं पर मन से चिंताएं दूर हों, तब न? कुछ तो रात के दो या तीन बजे ही जग जाते हैं। फिर लाख कोशिश करने पर भी नींद नहीं आती। डॉक्टर के पास जब निद्राहीनता की शिकायत करते हैं तो वे स्लीपिंग पिल्स खाने की सलाह देते हैं।
स्लीपिंग पिल्स के गुलाम रहने से अच्छा है आध्यात्मिकता और ईश्वर भजन की ओर मुड़ना? इससे कई लाभ हैं। एक स्लीपिंग पिल्स खरीदने के पैसे बच जाते हैं। दूसरा, उससे पड़ने वाले बुरे असर से बच सकते हैं। तीसरा, हमें लगता है कि हमारा जीवन अधिक सार्थक हो रहा है। वैसे तो पुरुषार्थ चार बताए गए हैंµधर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। मोक्ष के लिए जीवन के बंधनों से छुटकारा पाने के लिए ईश्वर भजन ही तो उपाय माना जाता है।
एक और सबसे प्रमुख लाभ यह है कि आध्यात्मिकता हमारी अपेक्षाएं कम कर देती है। ज्यों ज्यों हम ईश्वर की शरण में जाते हैं, त्यों-त्यों दूसरों के दुर्व्यवहार को सहने की शक्ति हम में दृढ़तर हो जाती है। अपना दुर्व्यवहार भी इस से हम सुधारते जाते हैं जिससे घरवाले अधिक संतुष्ट हो जाते हैं।
पूजा पाठ में मन लगाने पर हमें लगता है कि जो भी अवकाश मिल जाता है चाहे दिन में हो या रात में, उस का पूरा-पूरा उपयोग हम अपनी आध्यात्मिक उन्नति के लिए कर रहे हैं।
पुराने जमाने में केरल के हिन्दू भवनों में बूढ़े बूढि़यां सुबह तीन बजे उठ कर स्नान आदि से निपट कर या तो निकट के किसी मंदिर जाते या अपने पूजा कक्ष में बैठे पूजा पाठ करते थे। ध्यान करते थे, हरिनाम कीर्तन के गीत गाते थे, गीता आदि ग्रंथ पढ़ते थे। इससे घर के बच्चों पर भी अनायास ही धार्मिकता का, आध्यात्मिकता का, सुसंस्कार पड़ जाता था। गांधी जी ने अपने आत्मकथन में लिखा है कि उनके मां-बाप के भजन कीर्तन का ‘पूजा-पाठ’ का व्रतों का उन के शिशु-मन पर कैसा सुप्रभाव पड़ा था।
वृद्धावस्था में कुछ योग-ध्यान का भी अभ्यास डालें तो इससे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में अद्भुत सुधार आ जाता है। इतना सुधार आ जाता है कि ’स्लीपिंग पिल्स‘ की जरूरत कभी नहीं पड़ती।