म॰प्र॰ के बैतूल जिले में सतपुड़ा पर्वत श्रेणी की मनोहारी घाटी में कई प्राकृतिक स्थल हैं और अनेक नदियों का उद्गम हुआ है। जिले की मुलताई तहसील से 4 नदियां निकलती हैं, तथा ताप्ती, बेल एवं बधी। इन नदियों में पौराणिक और धार्मिक मान्यता ताप्ती नदी को ही प्राप्त है। इस नदी को सूर्यपुत्राी भी कहा जाता है। नगर के मध्य में एक तालाब स्थित है जिसमें एक छोेटे से कुण्ड से ताप्ती का उद्गम हुआ है, ऐसा कहा जाता है।
ताप्ती तालाब एवं नदी के उद्गम के निकट कार्तिक पूर्णिमा के समय यहां 15 दिन का मेला लगता है जहां लाखों श्रद्धालु आकर ताप्ती नदी में डुबकी लगाते हैं।
पुराणों में उल्लेख है कि ताप्ती 21 कल्प अर्थात् युग युगांतर पुरानी है। यह भी उल्लेखित है कि ताप्ती में स्नान करते समय जो भक्त 107 बार नाम उच्चारण करते हैं वे मोक्ष को प्राप्त होते हैं। सत्य, कपीला, तपिनी, अमृत वाहिनी, श्रीतामना आदि 21 नामों से ताप्ती को पुकारा जाता है। ताप्ती को आदिगंगा के नाम से भी जाना जाता है।
प्राचीन ग्रंथों विशेषकर ऋग्वेद में ताप्ती का विस्तृत वर्णन मिलता है। ताप्ती गंगा नदी के समान ही पवित्रा, तेजोमय और पूज्या मानी जाती थी। ऐसी किंवदन्ती है कि ताप्ती का तेज और महात्म्य कम करने की नीयत से नारद ताप्ती नदी के बिनारे आये और तपस्या की। प्रसन्न होकर ताप्ती ने उनसे वर मांगने को कहा। इस पर नारद ने उनसे उनका महात्म्य अध्ययन करने के लिए मांगा। ताप्ती ने अपना महात्म्य नारद को प्रदान कर दिया। जिस स्थान पर नारद ने तपस्या की थी और उसका नाम नारद टेकरी है।
नारदजी महात्म्य लेकर आए और उसे गंगा जी में प्रवाहित कर दिया जिससे ताप्ती जी का तेज और महत्व गंगा को प्राप्त हो गया। नारद के छल कपट की जानकारी मिलने पर उन्होंने नारद को कोढ़ी होने का श्राप दे दिया। नारद ने अपने शरीर में कुष्ठ रोग को देखा तो उसके निराकरण के लिए शंकरजी के पास गए और ताप्ती के श्राप से मुक्त करने की प्रार्थना की।
भगवान शंकर से निदान न होने पर नारद ब्रह्मा के पास गए। ब्रह्मा ने नारद को ताप्ती की ही शरण में जाने के लिए सुझाव दिया। बाद में नारद ताप्ती की ही शरण में आए। उन्होंने तट पर तपस्या की और क्षमा मांगी। उसके बाद ताप्ती जी के जल में स्नान कर उन्होंने इस रोग से मुक्ति पाई।
आज भी यह मान्यता है कि कुष्ठ रोग के रोगी यदि ताप्ती के जल से स्नान कर लें तो उन्हें कुष्ठ या अन्य रोग से मुक्ति मिल जाती है। ताप्ती का जन्म कहां और किसके यहां हुआ, इसके बारे में मान्यता है कि ताप्ती नदी भगवान सूर्य की पुत्री हैं इसीलिये उसमें स्नान करने से शनि का प्रभाव कम होता है। हिंदू धर्म के अनुसार यमराज सूर्यपुत्र हैं इसीलिये ताप्ती यम भगिनी हुई। इसी कारण मृत्यु पश्चात् सद्गति प्राप्त करने के लिए इसके पावन तट पर हिंदुओं के कर्मकाण्ड आज भी सम्पन्न होते हैं।
ताप्ती की वर्तमान धार्मिक स्थिति:- ताप्ती तालाब के किनारे प्रति वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के समय स्नान करने के लिए प्रदेश और दूसरे राज्यों से 25-30 हजार से भी अधिक श्रद्धालु आते हैं। तालाब के किनारे प्राचीन मंदिरों की भव्य श्रृंखला है। भगवान विट्ठल, राधाकृष्ण, लक्ष्मी नारायण, संतोषी माता, सत्यनारायण, जगदीश स्वामी, राम, गणेश, हनुमान एवं श्रीदत्त मंदिर बने हैं।
इसी तालाब के किनारे श्री चिन्तेश्वर एवं श्री तप्तेश्वर नाथ के शिव मंदिर हैं। तालाब के किनारे ताप्ती का एक नया मंदिर भी बना है जिसमें ताप्ती जी की एक भव्य मूर्ति प्रतिष्ठित है। इस मंदिर के पीछे एक गहरा कुण्ड है। कुण्ड के पास ताप्ती का एक प्राचीन मंदिर है। नगर के हृदय स्थल पर तालाब, इसके चारों ओर मंदिर एवं नारद टेकरी ऐसे वातावरण की कल्पना को साकार रूप देती है जो हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों की तपोभूमि कही जा सकती है। कृष्ण एवं लक्ष्मी नारायण मंदिर के मध्य यज्ञ मंदिर का अस्तित्व यह अकाट्य साक्ष्य प्रस्तुत करता है कि यह स्थली यज्ञ की धूम्र घटाओं से आच्छादित रहा करती थी। कार्तिक स्नान के समय यहां जो मेला लगता है उसमें महाराष्ट्र और गुजरात के तीर्थ यात्राी भी बड़ी संख्या में आते हैं। करीब 15 लाख रूपये का व्यापार एवं व्यवसाय मेले में होता है।
मुलताई जिले की सबसे बड़ी तहसील का मुख्यालय है और बैतूल नगर के बाद सबसे बड़ा नगर भी मुलताई है। पुरातात्विक और सांस्कृतिक संपदा को अपने में समेटे हुए इस नगर का नाम ताप्ती नदी के उद्गम के कारण मुलतापी रखा गया था। कालान्तर में यह मुलताई हो गया।
नदी का उद्गम एवं भौगोलिक स्थिति:- ताप्ती नदी के उद्गम के बारे में आज भी अनेक मत मतान्तर हैं। कुछ इसे गौमुख से, कुछ नारद टेकरी से उद्गमित तो कुछ व्यक्ति तालाब से उद्गमित मानते हैं। ताप्ती नदी मुलताई से निकलकर पारसदीह और
दामजीपुर में दर्शनीय जल प्रपात बनाती हुई पश्चिम की और बहती है। प्रदेश की अनेक नदियों को अपने में समाहित कर विशाल रूप से गुजरात के सूरज नगर से होकर अरब सागर में मिलती है।
मुलताई और नदी की बात हो रही है तो एक रोचक तथ्य यह है कि मुलताई विश्राम गृह के पास ऐसा वृक्ष है जिसके एक ओर से बहा हुआ पानी वर्धा, वेनगंगा, गोदावरी से होता हुआ बंगाल की खाड़ी में जाता है और दूसरी ओर का पानी ताप्ती नदी से होता हुआ अरब सागर में जाता है। भैंसदेही से उद्गमित पूर्णा नदी उसी प्रकार माचना, सापना बेल, मोरण्ड आदि सहायक नदियों को मिलाती हैं। ताप्ती तो वास्तव में विशाल रूप से गुजरात में बहती हुई वहां की जीवन रेखा ही बन गई है।