महाकुंभ: दैनिक जल परीक्षण, पूजा अपशिष्ट हटाना आदि गंगा को ‘स्नान के लिए सुरक्षित’ रखने के उपाय

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महाकुंभ नगर (उप्र),  महाकुंभ के दौरान गंगा “आस्था की डुबकी के लिए सुरक्षित” रहे, यह सुनिश्चित करने के लिये प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा नदी के पानी के नमूनों की प्रतिदिन जांच, पानी से फूलों और पूजा सामग्री को चौबीसों घंटे अलग करना, सभी अपशिष्ट जल (ग्रेवाटर) को उपचार सुविधाओं तक पहुंचाने के लिए 200 किलोमीटर लंबी अस्थायी जल निकासी व्यवस्था और मानव अपशिष्ट से निपटने के लिए अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी जैसे उपाय किये जा रहे हैं।

हर 12 साल में आयोजित होने वाला महाकुंभ, प्रयागराज में 13 जनवरी से शुरू हुआ और 45 दिनों तक चलेगा। अब तक आठ करोड़ से ज्यादा तीर्थयात्री गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम पर डुबकी लगा चुके हैं।

अधिकारियों का अनुमान है कि 29 जनवरी को मौनी अमावस्या जैसे प्रमुख स्नान दिवसों पर 50 लाख लोग आएंगे। अधिकारियों का कहना है कि इन आगंतुकों के कारण प्रतिदिन लगभग 1.6 करोड़ लीटर मल-मूत्र और लगभग 24 करोड़ लीटर ग्रेवाटर (खाना पकाने, कपड़े धोने और नहाने से उत्पन्न होने वाला अपशिष्ट जल) उत्पन्न होने की उम्मीद है।

महाकुंभ मेले के अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (एडीएम) विवेक चतुर्वेदी के अनुसार, पवित्र स्नान के लिए नदी का पानी पूरी तरह सुरक्षित है।

उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, “प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक टीम प्रतिदिन विभिन्न घाटों से नदी जल के नमूनों की जांच कर रही है और स्तर नियंत्रण में है। ध्यान देने का दूसरा क्षेत्र है पूजा के दौरान निकलने वाला अपशिष्ट, जो नदियों में जा रहा है। इसमें फूल, नारियल और अन्य चीजें शामिल हैं, जो अनुष्ठान के भाग के रूप में चढ़ाई जाती हैं। हमने हर दो घंटे में नदी से इन्हें निकालने के लिए विभिन्न घाटों पर मशीनें तैनात की हैं।”

उन्होंने कहा, “गंगा सेवादूतों की एक टीम है, जो नदी और घाटों की शुद्धता बनाए रखने के लिए सामग्री को तुरंत एकत्र करने और उसका निपटान करने के लिए घाटों पर तैनात रहती है। वे बारी-बारी से पालियों में काम करते हैं।”

उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकारियों के अनुसार, इस वर्ष कुंभ मेले पर राज्य सरकार द्वारा खर्च किए जा रहे 7,000 करोड़ रुपये में से 1,600 करोड़ रुपये अकेले जल और अपशिष्ट प्रबंधन के लिए निर्धारित किए गए हैं।

प्रशासन द्वारा 1.45 लाख शौचालयों की स्थापना; शौचालयों के अस्थायी सेप्टिक टैंकों में एकत्रित अपशिष्ट और कचरे को संभालने के लिए पूर्वनिर्मित अवजल उपचार संयंत्र (एफएसटीपी) की स्थापना; सभी अपशिष्ट जल को उपचार सुविधाओं और अस्थायी और स्थायी अवजल पाइपलाइनों तक पहुंचाने के लिए 200 किलोमीटर की अस्थायी जल निकासी प्रणाली की स्थापना; जल उपचार तालाबों का निर्माण; कचरा ले जाने वाले वाहनों की तैनाती और अन्य अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग भी अपनाए जा रहे स्वच्छता उपायों में शामिल हैं।

अधिकारी मानव अपशिष्ट, विशेषकर मल और अपशिष्ट जल से निपटने के लिए भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बार्क) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा विकसित प्रौद्योगिकी का उपयोग कर रहे हैं।

उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, “हम यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि पानी हमेशा नहाने लायक हो। दिशा-निर्देशों और विनिर्देशों के अनुसार, बीओडी (बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड) तीन (यूनिट) से कम होना चाहिए, यानी स्नान योग्य गुणवत्ता का। बीओडी जितना अधिक होगा, अशुद्धता उतनी ही अधिक होगी। अशुद्धता कार्बनिक पदार्थ के रूप में होती है।”

उन्होंने कहा, “इसलिए सभी नाले, जो अवजल शोधन संयंत्र (एसटीपी) में नहीं जा रहे हैं, उन्हें विभिन्न प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके अस्थायी रूप से रोका जा रहा है, और हम उन्हें उपचारित करेंगे, तथा किसी भी अनुपचारित अवजल को नदी तक नहीं पहुंचने देंगे।”

सिंह ने बताया कि प्रत्येक शौचालय के नीचे सिंटेक्स (प्लास्टिक का पानी) टैंक रखा जा रहा है, ताकि मल जमीन तक न पहुंचे।

उन्होंने कहा, “लगभग तीन-चौथाई क्षेत्र बलुआ है, और नदी से पुनः प्राप्त किया गया है। इसलिए, यदि आप इसे (मल को) जमीन तक पहुंचने देते हैं, तो यह अंततः रिसकर 20-30 दिनों में नदी तक पहुंच जाएगा, और 2019 से पहले ऐसा ही होता था।”

इस बीच, महाकुंभ में कपड़े के थैले, स्टील की प्लेटें और गिलास वितरित किए जा रहे हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक समागम प्लास्टिक मुक्त हो।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सह-सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल द्वारा प्लास्टिक की थैलियों और उपयोग के बाद फेंकने योग्य वस्तुओं की जगह लेने के लिए पुरानी जीटी रोड पर सेक्टर 18 में “एक प्लेट, एक थैला” अभियान शुरू किया गया है।

 

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