नयी दिल्ली, पांच जनवरी (भाषा) विदेशी बाजारों में गिरावट के रुख के बीच बीते सप्ताह सभी खाद्य तेल-तिलहनों के दाम हानि दर्शाते बंद हुए। इस दौरान सरसों, मूंगफली, सोयाबीन तेल-तिलहन, कच्चा पामतेल (सीपीओ) एवं पामोलीन के साथ-साथ बिनौला तेल के दाम में गिरावट रही।
बाजार के जानकार सूत्रों ने कहा कि पाम-पामोलीन के दाम ऊंचा रहने के बीच इन खाद्य तेलों की मांग पहले से प्रभावित है। हालांकि, बीते सप्ताह इन खाद्य तेलों का दाम अपने पिछले सप्ताह के 1,240-1,245 डॉलर प्रति टन से घटकर 1,200-1,205 डॉलर प्रति टन रह गया। उसके बाद सरकार ने आयातित तेलों का आयात शुल्क मूल्य बढ़ाने के उपरांत आयात के लिए विनिमय दरों में वृद्धि की है। इन दोनों को मिलाकर आयात करने की लागत में 150 रुपये क्विंटल की और वृद्धि हो गई है। पाम, पामोलीन के पहले से ही खपने की मुश्किल हो रही है और आयात शुल्क मूल्य एवं विनिमय दर की वृद्धि के बाद पाम-पामोलीन और महंगा बैठेगा तो इसका खपना और नामुमकिन हो गया है।
उन्होंने कहा कि ऊंचे भाव के कारण सूरजमुखी का आयात कम हुआ है। इसके अलावा पाम-पामोलीन का भी ऊंचे दाम की वजह से आयात प्रभावित है। इन खाद्य तेलों की कमी को कहां से और किस खाद्य तेल से पूरा किया जायेगा, इसपर विचार करने की जरूरत है। इस स्थिति में सोयाबीन तेल का थोड़ा बहुत आयात बढ़ भी जाये तो वह मांग को पूरा करने के लिहाज से पर्याप्त नहीं होगा।
सूत्रों ने कहा कि देश में खाद्य तेल संयंत्र पूरी क्षमता से काम नहीं कर पा रहे हैं। जिस हिसाब से सोयाबीन का उत्पादन बढ़ा है, उस हिसाब से मंडियों में सोयाबीन की आवक नहीं हो रही है। वायदा कारोबार में बिनौला खल का दाम तोड़े जाने और आरंभ में भारतीय कपास निगम (सीसीआई) द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) लागत से कम दाम पर बिनौला सीड के बेचे जाने की वजह से बिनौला के अलावा मूंगफली, सोयाबीन और सरसों जैसे तिलहनों की आवक भी प्रभावित हुई है। ऐसा इस वजह से है क्योंकि बिनौला सीड का दाम टूटने से मूंगफली खल, सोयाबीन डीओसी के भाव भी कमजोर हुए हैं जिसकी वजह से सोयाबीन, मूंगफली तिलहन की भी तेल संयंत्र वालों की ओर से मांग प्रभावित हुई है। तेल संयंत्र को इनकी ख