महिलाएं ही कुर्बान करती हैं नींद

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स्त्रा-पुरूष की परिवार में समान सहभागिता के बाद भी स्त्रा सभी मोर्चों पर ज्यादा जूझती है। वह घर से लेकर बाहर तक कामकाज करती है। बच्चों की परवरिश, परिजनों की देखभाल, रसोई घर की जिम्मेदारी उसे ही वहन करनी पड़ती है। वह दिन-रात मशीन की तरह काम करती है और रात को बच्चों एवं बीमार परिजनों की देखभाल तथा पति के खर्राटों से वही महिला अपनी नींद को भी कुर्बान करती है।
भरपूर नींद बच्चे, बड़े एवं बूढ़े सभी के लिए जरूरी है किन्तु परिवार की मुख्य महिला सदस्य कभी भी अपनी नींद पूरी नहीं कर पाती। कामकाजी महिला पर यही भार दोगुना बढ़ जाता है। पिता की अपेक्षा माता को ही बच्चों की देखभाल के लिए रात में अपनी नींद खराब या कुर्बान करनी पड़ती है।
नींद और उसका टूटना :- स्त्रा-पुरूष, बच्चे-बड़े सभी को अपनी उम्र एवं काम के अनुरूप कम या ज्यादा समय की नींद की जरूरत पड़ती है। बच्चे को अधिक एवं वृद्धों को कम नींद की जरूरत पड़ती है किन्तु एक पूर्ण वयस्क को न्यूनतम 6 से 8 घण्टे तक की गहरी नींद की जरूरत पड़ती है।
वयस्क यदि 6 घण्टे से कम एवं 8 घण्टे से ज्यादा नींद लेता है तब उसे अनेक शारीरिक, मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है एवं आगे उसे असमय कई बीमारियां घेर लेती हैं। जब महिलाएं रात में उठती हैं तो वे औसतन 44 मिनट के बाद ही सो पाती हैं जबकि उनके मुकाबले रात को नींद टूटने पर पुरूष केवल 30 मिनट के भीतर ही सो जाते हैं। नींद टूट कर रात को जागने का भार अधिकतर महिलाओं पर ही पड़ता है। इसके कारण महिलाओं के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
स्त्रा की तुलना में पुरूष अधिक तेज खर्राटे लेते हैं। इसके कारण दुनियां की 39 प्रतिशत पत्नियां परेशान रहती हैं। पुरूष के खर्राटों का शोर पत्नी की नींद को खराब करता है जिससे वे पूरी नींद नहीं ले पाती है। इसी के कारण स्त्रा की रोज डेढ़ घण्टे की नींद खराब होती है। इसका मतलब एक वर्ष में लगभग 574 घण्टे अर्थात् 23 दिनों की नींद पति के खर्राटों की भेंट चढ़ जाती है।
कम सोने वाली महिलाओं के स्वास्थ्य पर प्रभाव :- महिलाओं को 7 घण्टे की नींद जरूर लेनी चाहिए। ऐसा नहीं करने पर उनका स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है जबकि पुरूषों पर कम नींद लेने से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। जो महिलाएं 5 घण्टे या उससे कम सोती हैं, उन्हें उच्च रक्तचाप और दिल की समस्याएं होने की संभावना ज्यादा होती है।
ऐसी महिलाओं को आगे चलकर शारीरिक एवं मानसिक रूप से कई परेशानियां झेलनी पड़ती हैं। कम नींद लेने वाले जल्द मौत के मुंह में चले जाते हैं। महिलाओं को औसतन 6 से 8 घण्टे तक रोज सोना चाहिए। इससे कम नींद लेने पर हृदय रोग, कोरोनरी हार्ट डिजीज, कार्डियोवेस्कुलर डिजीज का खतरा बढ़ जाता है।
नींद का उम्र के साथ संबंध है। 6 से 8 घण्टे तक गहरी नींद सोने वाली वयस्क महिला की उम्र काफी लम्बी होती है। इन्हें रोगों का जोखिम भी कम रहता है। विज्ञान का मानना है कि नींद के समय हमारा शरीर कई तरह से स्वयं अथवा कोशिकाओं की मरम्मत करता है। यही स्वस्थ एवं दीर्घायु बनाता है।
नींद की कमी के लक्षण µ
 तनाव, क्रोध एवं चिड़चिड़ापन।
 स्मरण शक्ति में कमी।
 किसी भी काम में मन नहीं लगना।
 ताजगीपन का अभाव।
 रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी।
 उखड़ा-उखड़ा सा रहना।
 किसी से तालमेल नहीं बिठा पाना।
 बी. पी. एवं हृदय रोग के लक्षण।
 आंखों एवं चेहरे में लालिमा।
 सिर दर्द करना, भारी लगना।
निष्कर्ष :- महिला परिवार की केन्द्र बिन्दु है। घर का भार उसी पर टिका रहता है अतएव परिवार के सभी सदस्यों की जिम्मेदारी बनती है कि वे महिला सदस्य की नींद में अनावश्यक व्यवधान न डालें। जिम्मेदारियों को आपस में बांटकर उस पर से भार को कम करें। उसके स्वास्थ्य एवं सुविधाओं का भी ख्याल रखें। 

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