सरकारी, कॉरपोरेट बॉन्ड बाजारों में संतुलन के तरीके तलाश रहा नीति आयोगः उपाध्यक्ष सुमन बेरी

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मुंबई, 10 जनवरी (भाषा) नीति आयोग के उपाध्यक्ष सुमन बेरी ने शुक्रवार को कहा कि आयोग सरकारी और कॉरपोरेट बॉन्ड बाजारों के बीच संतुलन को नए सिरे से स्थापित करने के तरीके तलाश रहा है।

बेरी ने यहां एनआईएसएम (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सिक्युरिटीज मार्केट) के एक कार्यक्रम में कहा कि नीति आयोग अत्यधिक व्यापक सरकारी बॉन्ड बाजार की तरह कॉरपोरेट बॉन्ड बाजार को भी व्यापक बनाने के मकसद से किए जाने वाले किसी भी कदम के संभावित प्रभाव की जांच करेगा।

उन्होंने कहा, “हमें कॉरपोरेट बॉन्ड और सरकारी बॉन्ड के बीच संतुलन को सही करने पर ध्यान देना है। इसके अलावा यह भी देखना है कि हमें राजकोषीय समायोजन और कॉरपोरेट बॉन्ड बाजार में नकदी के संदर्भ में असल में क्या करना है। ये ऐसे मुद्दे हैं जिन पर हम विचार कर रहे हैं।”

सरकारी प्रतिभूति बाजार पिछले कई वर्षों में बहुत व्यापक हो चुका है। बैंकों के लिए अनिवार्य वैधानिक तरलता अनुपात (एसएलआर) तय करने जैसी नीतियों से मदद मिली है। यह सुनिश्चित करता है कि सरकार के पास अपने विकासात्मक एजेंडे को पूरा करने के लिए पर्याप्त संसाधन हैं। ऐसे बॉन्ड के कारोबार वाला एक बेहद सक्रिय द्वितीयक बाजार भी है।

इसके उलट कॉरपोरेट बॉन्ड बाजार को व्यापक बनाने के लिए बहुत सारे प्रयास किए गए हैं जो इकाइयों के लिए बैंक उधारी के विकल्प के रूप में काम कर सकते हैं।

वित्त वर्ष 2024-25 के लिए सरकार की शुद्ध उधारी 11.63 लाख करोड़ रुपये आंकी गई है जबकि इकाइयों ने चालू वित्त वर्ष के पहले नौ महीनों में कॉरपोरेट बॉन्ड बाजार से 7.3 लाख करोड़ रुपये जुटाए हैं।

बेरी ने यह भी कहा कि आय के बढ़ते स्तर के साथ यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि वित्तीय साक्षरता अधिक लोगों तक पहुंचे ताकि लोग सुरक्षा पर अत्यधिक ध्यान दिए जाने की वजह से कहीं जोखिम भरे पोर्टफोलियो का रुख न करें।

उन्होंने कहा कि सेबी को निवेशकों को शिक्षित करने के लिए ‘आक्रामक रूप से’ काम करना होगा क्योंकि पूंजी बाजारों की जोखिम भरी दुनिया में जाने के लिए भारतीय परिवार इच्छुक हो रहे हैं।

उन्होंने कहा कि भारत ऐसा दृष्टिकोण अपना सकता है जो बैंकिंग-प्रधान प्रणाली और पूंजी बाजारों द्वारा अधिक जोखिम वाले प्रभुत्व वाले तंत्र का मिश्रण हो।

उन्होंने कहा कि अमेरिकी दृष्टिकोण पूंजी बाजारों से संचालित है जो जोखिम भरे विचारों का समर्थन करने के लिए तैयार हैं जबकि यूरोप पारंपरिक रूप से बैंकिंग-प्रणाली से संचालित रहा है।

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