नए साल की चुनौतियां और हमारी जिम्मेदारी

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नया साल प्रारंभ हो रहा है । आज जन मानस के जीवन  में मोबाईल इस कदर समा गया है कि अब साल बदलने पर कागज के कैलेंडर बदलते कहां हैं ?अब साल , दिन ,महीने , तारीखें,  समय सब कुछ टच स्क्रीन में कैद हाथो में सुलभ है । वैसे भी अंतर ही क्या होता है , बीतते साल की  आखिरी तारीख और नए साल के पहले दिन में , आम लोगों की जिंदगी तो वैसी ही  बनी रहती है ।

 

हां दुनियां भर में नए साल के स्वागत में जश्न , रोशनी , आतिशबाजी जरूर होती है । लोग नए संकल्प लेते तो हैं , पर निभा कहां पाते हैं?  कारपोरेट जगत में गिफ्ट का आदान प्रदान होता है , डायरी ली दी जाती है , पर सच यह है की अब भला डायरी लिखता भला कौन है ? सब कुछ तो मोबाइल के नोटपैड में सिमट गया है ।देश का संविधान भी सुलभ है , गूगल से फरमाइश तो करें । समझना है की संविधान में केवल अधिकार ही नहीं कर्तव्य भी तो दर्ज हैं  ।  लोकतंत्र के नाम पर आज स्वतंत्रता को स्वच्छंद स्वरूप में बदल दिया गया है ।

 

इधर मंच से स्त्री सम्मान की बातें होती हैं उधर भीड़ में कुत्सित लोलुप  दृष्टि मौका मिलते ही चीर हरण से बाज नहीं आती । स्त्री समानता और फैशन के नाम पर स्त्रियां स्वयं फिल्मी संस्कृति अपनाकर संस्कारों का उपहास करने में पीछे नहीं मिलती ।  

 

देश का जन गण मन तो वह है , जहां फारूख रामायणी अपनी शेरो शायरी के साथ राम कथा कहते हैं . जहां मुरारी बापू के साथ ओस्मान मीर , गणेश और शिव वंदना गाते हैं . पर धर्म के नाम पर वोट के ध्रुवीकरण की राजनीति ने तिरंगे के नीचे भी जातिगत आंकड़े की भीड़ जमा कर रखी है ।

 

इस समय में जब हम सब मोबाइल हो ही गए हैं, तो आओ नए साल के अवसर पर  टच करें हौले से अपने मन , अपने बिसर रहे संबंध , और अपडेट करें एक हंसती सेल्फी अपने सोशल मीडिया स्टेटस पर नए साल में, मन में स्व के साथ समाज वाले भाव भरे सूर्योदय के साथ ।

 

यह शाश्वत सत्य है कि भीड़ का चेहरा नहीं होता पर चेहरे ही लोकतंत्र की शक्तिशाली भीड़ बनते हैं  । सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर सेल्फी के चेहरों वाली  संयमित एक दिशा में चलने वाली भीड़ बहुत ताकतवर होती है । इस ताकतवर भीड़ को नियंत्रित करना और इसका रचनात्मक हिस्सा बनना आज हम सब की जिम्मेदारी है।

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