फ्री फिशिंग एक्ट बनाने को लेकर आंदोलन

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कुमार कृष्णन

 

गंगा बेसिन का लगभग 79 फीसदी क्षेत्र भारत में है। बेसिन में 11 राज्य शामिल हैं – उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और दिल्ली। गंगा बेसिन से जुड़े सवालों को लेकर गंगा मुक्ति आंदोलन की ओर से बिहार के मुजफ्फरपुर के चंद्रशेखर  भवन ,मिठनपुरा, में गंगा बेसिन : समस्याएं एवं समाधान विषयक राष्ट्रीय विमर्श में जुटे देश के आठ राज्यों और नेपाल के प्रतिनिधियों ने एकजुट होकर गंगा के सवाल पर देशव्यापी अभियान चलाने का संकल्प लिया था।

इसी संकल्प के तहत गंगा  मुक्ति आंदोलन के बैनर तले अपने साथी संगठनों जल श्रमिक संघ , बिहार प्रदेश मत्स्यजीवी जल श्रमिक संघ के साथ मिलकर भागलपुर समाहरणालय  पर अपने आंदोलन का शंखनाद किया।

 

इसी भागलपुर  जिले  में 22 फरवरी  2025 को गंगा  मुक्ति आंदोलन के  वर्षगांठ पर कागजी टोला कहलगांव , भागलपुर में  पुनः देश भर से परिवर्तनवादी  जुटेंगे और आगे की योजना बनाएंगे। इस लिहाज़ से आंदोलन का शंखनाद दो दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। एक तो शासन तंत्र पर दबाव बनाने लिए, दूसरे सांगठनिक मजबूती के लिए।

 

जल श्रमिक संघ के प्रदेश संयोजक योगेंद्र सहनी ने कहा कि वन विभाग बिहार सरकार द्वारा दिए गए निःशुल्क शिकारमाही के अधिकार  को शिथिल करना चाहती है. पिछले  दिनों वन विभाग ने हजारों रुपए का जाल गंगा किनारे से उठा लिया है और कर्मचारियों ने महिलाओं के साथ भी अभद्र व्यवहार किया। इसके विरोध में आंदोलन भी हुआ।  गंगा मुक्ति आंदोलन  वरिष्ठ संगठक उदय का कहना था  कि एक दशक के लंबे संघर्ष के जलकर जमींदारी से मुक्ति मिली। संघर्ष  के बाद मछुओं को करमुक्त मछली पकड़ने का अधिकार मिला है जिसे सरकार ने निरस्त नहीं किया है ।भागलपुर के गंगा नदी में सुल्तानगंज के  जहांगीरा ( घोरघट पुल ) से पीरपैंती के हजरत पीरशाह कमाल  दरगाह तक बिहार सरकार के पशुपालन एवं मत्स्य विभाग ने अपने ज्ञापांक 2294 /मत्स्य / पटना दिनांक 11 दिसंबर 1991 द्वारा पारंपरिक मछुओं हेतु शिकारमाही के लिए निःशुल्क घोषित किया है।

 

निःशुल्क शिकारमाही की घोषणा के पूर्व ही  पर्यावरण विभाग बिहार पटना द्वारा 22 अगस्त 1990 को सुल्तानगंज से कहलगांव तक विक्रमशिला गांगेय डॉल्फिन आश्रयणी क्षेत्र घोषित किया जा चुका था।सरकार ने निःशुल्क शिकारमाही के अधिकार को किसी भी आदेश से निरस्त नहीं किया है ।

 

वन विभाग मौखिक रूप से जबरन कहता है कि उपरोक्त क्षेत्र में मछली पकड़ना मना है । मछली पकड़ने से रोकने के लिए तरह तरह का बेबुनियाद , झूठ और मनगढ़ंत आरोप मछुओं पर लगाया जाता है. हकीकत  ये है कि गैर मछुओं और सोसाइटी द्वारा गंगा में अवैध जाल चलाया जाता है और जिंदा धार में बाड़ी बांधा जाता है, उसे वन विभाग कुछ नहीं कहता है।

 

सवालिया लहजा में लोगों का कहना है कि वन विभाग नगर निगम / नगर परिषद / नगर पंचायत और एनटीपीसी पर गंगा को प्रदूषित कर डॉल्फिन मारने पर कोई कारवाई  या मुकदमा क्यों नहीं करती?

 

वन विभाग डॉल्फिन  पर नगर निगम के कचरे और एनटीपीसी के कचरे से होने वाले नुकसान पर मुंह क्यों  खोलता ? वन विभाग उम्र पूरा होने या प्रदूषण से मरने वाले सोंस की संख्या सार्वजनिक क्यों नहीं करता ?

 

मत्स्य विभाग मछुओं को निःशुल्क शिकारमाही का परिचय पत्र निर्गत करने में आना कानी और टाल मटोल करता है।वन विभाग अवैध रूप से बाड़ी (जो डॉल्फिन के लिए हानिकारक  है )बांधने पर कोई कारवाई क्यों नहीं करता ?

 

1993 के पहले गंगा में जमींदारों  के पानीदार थे जो गंगा के मालिक बने हुए थे। सुल्तानगंज से लेकर पीरपैंती तक 80 किलोमीटर के क्षेत्र में जलकर जमींदारी थी । यह जमींदारी मुगलकाल से चली आ रही थी। सुल्तानगंज से बरारी के बीच जलकर गंगा पथ की जमींदारी महाशय घोष की थी। बरारी से लेकी पीरपैंती तक मकससपुर की आधी-आधी जमींदारी क्रमशः मुर्शिदाबाद, पश्चिम बंगाल के मुसर्रफ हुसैन प्रमाणिक और महाराज घोष की थी। हैरत की बात तो यह थी कि जमींदारी किसी आदमी के नाम पर नहीं बल्कि देवी-देवताओं के नाम पर थी। ये देवता थे श्री श्री भैरवनाथ जी, श्री श्री ठाकुर वासुदेव राय, श्री शिवजी एवं अन्य। कागजी तौर जमींदार की हैसियत केवल सेवायत की रही है। सन 1908 के आसपास दियारे के जमीन का काफी उलट-फेर हुआ. जमींदारों के जमीन पर आये लोगों द्वारा कब्जा किया गया. किसानों में आक्रोश फैला। संघर्ष की चेतना पूरे इलाके में फैली; जलकर जमींदार इस जागृति से भयभीत हो गये और 1930 के आसपास ट्रस्ट बनाकर देवी -देवताओं के नाम कर दिया. जल कर जमींदारी खत्म करने के लिए 1961 में एक कोशिश की गयी; भागलपुर के तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर ने इस जमींदारी को खत्म कर मछली बंदोबस्ती की जवाबदेही सरकार पर डाल दी।

 

मई 1961 में जमींदारों ने उच्च न्यायालय में इस कार्रवाई के खिलाफ अपील की और अगस्त 1961 में जमींदारों को स्टे ऑडर मिल गया।1964 में उच्च न्यायालय ने जमींदारों के पक्ष में फैसला सुनाया तथा तर्क दिया कि जलकर की जमींदारी यानी फिशरीज राइट मुगल बादशाह ने दी थी और जल-कर के अधिकार का प्रश्न जमीन के प्रश्न से अलग है। क्योंकि जमीन की तरह यह अचल संपत्ति नहीं है। इस कारण यह बिहार भूमिसुधार कानून के अंतर्गत नहीं आता है। बिहार सरकार ने उच्च न्यायालय के फैसले के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की और सिर्फ एक व्यक्ति मुसर्रफ हुसैन प्रमाणिक को पार्टी बनाया गया। जबकि बड़े जमींदार मुसर्रफ हुसैन प्रमाणिक को छोड़ दिया गया।

 

आरंभ में जमींदारों ने इसे मजाक समझा और आंदोलन को कुचलने के लिए कई हथकंडे अपनाये लेकिन आंदोलनकारी अपने संकल्प ‘‘हमला चाहे कैसा भी हो, हाथ हमारा नहीं उठेगा’’ पर अडिग रहे और निरंतर आगे रहे। निरंतर संघर्ष का नतीजा यह हुआ 1988 में बिहार विधानसभा में मछुआरों के हितों की रक्षा के लिए जल संसाधनों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने का एक प्रस्ताव लाया गया।

गंगा मुक्ति आंदोलन के साथ समझौते के बाद राज्य सरकार ने पूरे बिहार की नदियों-नालों के अलावा सारे कोल ढाबों को जल-कर से मुक्त घोषित कर दिया। परंतु स्थिति यह है कि गंगा की मुख्य धार मुक्त हुई है लेकिन कोल ढाब व अन्य नदी-नालों में अधिकांश की नीलामी जारी है और सारे पर भ्रष्ट अधिकारियों और सत्ता में बैठे राजनेताओं का वर्चस्व है।

 

संयुक्त किसान मोर्चा के प्रदेश संयोजक पत्रकार दिनेश सिंह ने कहा कि हवा पानी जमीन प्रकृति है इस पर जीने वाले समुदाय का ही इस पर हक है . उन्होंने ने कहा कि मत्स्यजीवी भी किसान ही हैं . हमारा पूरा समर्थन गंगा मुक्ति आंदोलन के साथ है पसमांदा मुस्लिम महाज के सलाउद्दीन ने कहा कि कहा कि गंगा राष्ट्रीय धरोहर है , ये हिंदू मुसलमान सभी का है।सभा  को  ऑन लाइन अनिल प्रकाश , पूर्व सांसद अली अनवर ने भी संबोधित किया।

 

आंदोलन की मांग  है कि मछुओं को मछ्ली पकड़ने से रोकने और प्रताड़ित करने का मुकदमा वन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों पर चलाया जाय। गौरतलव है कि  14 दिसंबर 2024 को कहलगांव के मछुओं का जाल किनारे पर से उठा लिया गया एवं महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार भी किया गया है ।

वन विभाग द्वारा बाड़ी बांधने के एवज में किए जा रहे अवैध वसूली से रोका जाय। बिहार सरकार द्वारा घोषित निःशुल्क शिकारमाही के अधिकार को  कारगर और सक्रिय किया जाय ।इसके लिए निःशुल्क शिकारमाही के परिचय पत्र बनाने की प्रक्रिया तेज की जाय ।गंगा में एनटीपीसी द्वारा प्रवाहित जल तथा शहर के गंदे पानी को गंगा में गिरने से रोका जाय ।

 

साथ ही कहा गया  कि पीरपैंती में थर्मल पावर स्टेशन बनने से गंगा का प्रदूषण स्तर बढ़ेगा इसलिए उसे रोककर सोलर बिजली घर बनाया जाय।वहीं गंगा की निर्मलता बरकार रखने , डॉल्फिन को दुष्प्रभाव से बचाने , बाढ़ की विभीषिका और जल जमाव  कम करने तथा गंगा में मछली बढ़ाने हेतु फरक्का बराज के सभी गेट खोल दिए जाएं या उसके नीचे सुरंग बनाने  की मांग की। नदी आधारित मछुओं को वैकल्पिक मत्स्य पालन और रोजगार के अवसर मुहैया कराए जाने की भी मांग की गयी।

 

 जिलाधिकारी को संबोधित एक मांग पत्र उनकी अनुपस्थिति में अपर समाहर्ता  मिथिलेश कुमार को सौंपा गया।इस मांग पत्र में वन विभाग पर मुकदमा चलाने , मत्स्य विभाग द्वारा निःशुल्क शिकारमाही का परिचय जारी करने और फ्री फिशिंग एक्ट बनाने की मांग की गई है ।कार्यक्रम में राहुल , सुनील सहनी , अर्जुन सहनी , रेणु सिंह , अजय सहनी सूरज सहनी , अनिरुद्ध , रविंद्र कुमार सिंह , रोहित कुमार और गौतम कुमार ने सक्रिय भागीदारी निभाई।  राष्ट्रीय समागम के बाद आंदोलन का आगाज महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है ।
 

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