मन का सीधा प्रभाव तन पर पड़ता है। यदि मन अस्वस्थ है तो तन भी अस्वस्थ रहेगा। यदि मन पुष्ट है, बलवान है, आप में मनोबल की कमी नहीं है तो आप का शरीर भी चुस्त दुरूस्त व पूरी तरह कार्यशील बना रहेगा। हमें ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए, जिस से शरीर रोगी हो। हमें वह सब करना चाहिए जिस से शरीर स्वस्थ रह सके। जब हम इसी धारणा को बना कर चलेंगे तो हमें कभी कोई परेशानी नहीं आएगी। हम अपने शरीर को निरोगी रख सकेंगे। रोगों से बचते हुए, स्वस्थ रहने के लिए हमें निम्न बिन्दु अपने जीवन में पूरी तरह उतार लेने चाहिए। हमें प्रातः सूर्य उदय से बहुत पहले उठ कर दिनचर्या शुरू करनी चाहिए। हम उचित, सुपाच्य तथा पौष्टिक भोजन लें। हमारी जीवन पद्धति सादा हो। जितना शरीर स्वीकार कर सके, उतना व्यायाम भी अवश्य करें। हर अवस्था में खुश रहने का प्रयत्न करें। अपनी इच्छाएं सीमित रखें। जितनी चादर हो, उतने ही पांव पसारें। कार्य से जी नहीं चुरायें। हर समय धनोपार्जन में नहीं लगे रहना चाहिए। जितना विश्राम जरूरी है, उतना विश्राम तो करें मगर इस विश्राम के समय में केवल आराम ही करें। चिंता, तनाव से दूर रहें। अधिक की लालसा तो नहीं करें मगर उन्नति के लिए प्रयत्न अवश्य करना। ईमानदार बने रहें। बेईमानी से दूर रहें। ईश्वर में पूर्ण विश्वास बनाए रखें। यदि हम इन बातों पर ध्यान देकर चलेंगे तो हम संतुष्ट रहेंगे। हमारा मन स्वस्थ बना रहेगा। टेंशन हमें छू भी न सकेगी। इस से हमारा स्वास्थ्य, हमारा तन भी निरोग बना रहेगा। यदि मन शांत बना रहेगा तो मानसिक व शारीरिक विकार भी दूर भागेंगे। हमारे चेहरे पर रौनक बनी रहेगी। भोजन सात्विक हो, शुद्ध हो, सुपाच्य हो तथा शरीर के लिए हितकर हो। परिवार में भी शांति बनाए रखें। आस पड़ोस में संबंध अच्छे हों। प्रकृति से दूर नहीं भागें। इस के करीब आएं। सुखी होंगे। दिनचर्या ऐसी बनाएं जो आसानी से निभायी जा सके। समय, स्थान, आयु, शारीरिक स्थिति आदि के अनुसार ही खान-पान रहन-सहन, बातचीत हो जो मन तथा शरीर को पूरी तरह से स्वस्थ रखने में मदद करेंगे। आज की अंधी दौड़ में मन शुद्ध रखें। मनोबल में कमी न आने दें। हिम्मत न हारें। शरीर भी निरोग तथा स्वस्थ रहेगा।