शताब्दियों से स्त्रिायाँ आभूषण बनवाती और पहनती चली आ रही हैं। प्रायः स्त्रिायाँ यही मानती हैं कि आभूषणों का प्रयोग मात्रा तन व सौंदर्य के निखार व आकर्षण वृðि के लिए अथवा श्रंृगार के तौर पर ही किया जाता है परंतु सिर्फ इतनी ही बात नहीं है। आभूषणों के प्रयोग से विभिन्न प्रकार के रोग भी दूर होते हैं।
पुरूषों की तुलना में प्रकृति ने स्त्रिायों को रूप-सौंदर्य तो भरपूर दिया है लेकिन वे पुरूषों से बहुत अधिक नाजुक एवं कमजोर भी हुआ करती हैं। संतान पैदा करने के कारणों से स्त्रिायां और भी अधिक कमजोर हो जाया करती हैं क्योंकि बच्चों का शरीर उन्हीं के शरीर से निर्मित होता है, इसलिए स्त्रिायों के लिए इसकी आवश्यकता होती है कि असाधारण तौर पर कोई शक्ति बाहर से उनके शरीर में पहुंचाई जाए। इसी कारण प्राचीन काल के आचार्यों ने इस अतिरिक्त शक्ति को आभूषणों के माध्यम से पहुंचाने की बात सोची थी।
सोना अपनी प्रकृति में गर्म और चाँदी शीतल हुआ करती है। इसी कारण अगर सिर में सोना और पाँव में चाँदी पहनी जाए तो शरीर में विद्युत की धारा चलने लगती है अर्थात् सिर से गर्म बिजली उत्पन्न होकर नीचे की ओर चली जाएगी और पाँव वाली ठण्डी बिजली उसको आकर्षित करेगी क्योंकि सर्दी गर्मी को खींच लिया करती है। अतः ऐसा होने से सिर में उत्पन्न हुई गर्मी पैरों में आ जाती है तथा पैरों की चाँदी से उत्पन्न सर्दी सिर में चली जाती है। इस तरह सिर को ठण्डा और पैरांे को गर्म रखने का मूल्यवान चिकित्सकीय नियम पूरा होता है।
इसके विपरीत यदि सिर में चांदी और पैरों में सोना पहना जाए तो ऐसी स्थिति में दिमाग में शीतल एवं पाँव में गर्म बिजली पैदा होगी तथा पैरों की गर्म बिजली खिंचकर मस्तिष्क पर पहुँच जाएगी। इससे चिकित्सकीय नियम के विरूð सिर गर्म और पाँव ठण्डे हो जाएँगे। अतः ऐसा करने से अंदेशा है कि इस विधि से आभूषणों को धारण करने वाली स्त्रिायां पागलपन या किसी अन्य रोग का शिकार बन जाएं। यही नियम था जिसकी वजह से स्वर्ण आभूषणों को शरीर के निचले भागों में पहनना वर्जित बताया गया था।
यदि सिर (कमर से ऊपर) एवं पाँव (कमर से नीचे) दोनों में ही सोने के गहने पहने जाएं तो मस्तिष्क एवं पैरों में एक समान गर्म विद्युत की धारा प्रवाहित होगी तथा गर्मी का गर्मी से टकराव होकर दो रेलगाडि़यों के परस्पर टकराने जैसी नुकसानदायक स्थिति पैदा हो जाएगी तथा स्वास्थ्य हमेशा खराब रहने लगेगा। इसी प्रकार यदि कोई सिर में सोना और पांव में चांदी या कुछ अन्य धातु न पहनें तो सिर में उत्पन्न होने वाली गर्म बिजली पांव की ओर शोषित नहीं होगी बल्कि सिर ही सिर में रह जाएगी। इससे दिमाग खराब होने का भय बना रहता है।
जिन धनवान परिवारों की स्त्रिायां केवल सोने के गहनों को ही पहनती हैं और चांदी के आभूषणों को पहनना पसंद नहीं करती, वे प्रायः किसी न किसी व्याधि से ग्रसित अवश्य रहा करती हैं। उनका हृदय व्याकुलता, हिस्टीरिया, रक्तप्रदर, पेट दर्द एवं श्वेत प्रदर जैसी बीमारियां प्रायः ग्रसित किये रहती हैं।
स्वास्थ्य के नियमों के अनुसार अंगूठों एवं अंगुलियों में चांदी के जेवर ही पहनने चाहिए ताकि मस्तिष्क की गर्मी पांव की ओर आकर शीतलता मस्तिष्क तक पहुँचती रहे। इससे दिमाग ठण्डा तथा पांव गर्म रहने का मूल्यवान नियम स्थापित रहता है।
बिछिया पहनने वाली स्त्रिायों को प्रसव पीड़ा कम होती है तथा उन्हें साइटिका रोग नहीं होता। इसके पहनने से दिमाग के विकार दूर होते हैं तथा स्मरण-शक्ति बढ़ती है। पायलों के पहनने से पीठ, एड़ी व घुटनों के दर्द से राहत मिलती है तथा हिस्टीरिया के दौरे नहीं पड़ते। इससे श्वास रोग होने की संभावना दूर हो जाती है। बदन में रक्त शुð व स्वच्छ बना रहता है व मूत्रा रोग की शिकायत नहीं होती।
विज्ञान बताता है कि यदि हाथी दांत या कांच को खाल, रेशम या कम्बल आदि से रगड़ा जाए या लाख के सिरे को फलालेन, ऊन या हाथ से रगड़ दिया जाय तो विद्युत उत्पन्न हो जाती है। इसी कारण हमारे पूर्वजों ने स्त्रिायों के हाथों में कांच, हाथी के दांत एवं लाख (लाह) की चूडि़यों को पहनने का विधान बनाया था ताकि कामकाज करतेे हुए जब चूडि़यां शरीर से रगड़ लंे तो विद्युत धारा उत्पन्न हो।
स्त्रिायां अगर हंसुली या हार गले में पहनती हैं तो इससे उनकी नेत्रा ज्योति सहज ही बनी रहती है तथा गलकंड रोग नहीं होता। आवाज में मिठास एवं माधुर्य बना रहता है। सिरदर्द, हिस्टीरिया, सरवाइकल स्पांडीलाइटिस आदि कष्टों में लाभ होता है तथा मानसिक शिकायतों का निवारण होकर हृदय दृढ़ बनता है।
माना जाता है कि मस्तक पर बिन्दी लगाने से मस्तिष्क में पैदा होने वाले विचार असमंजस की स्थिति से मुक्त होते हैं। बिंदिया में सम्मिलित लाल तत्व पारे का लाल ऑक्साइड होता है जो शरीर के लिए लाभदायक सिð होता है। बिंदिया एवं सिन्दूर के प्रयोग से मुखमण्डल झुर्री रहित बना रहता है।
विवाह के अवसरों पर नववधुओं द्वारा सिर पर धारण किया जाने वाला मांग टीका (मन्टीका) सिर के बीचों-बीच मांग में एक लड़ी के सहारे लटका रहता है। इससे मस्तिष्क संबंधी क्रियाएं नियंत्रित, संतुलित तथा नियमित बनी रहती हैं तथा साथ ही मस्तिष्कीय विकार भी नष्ट होते हैं।
अंगूठी को सबसे छोटी उंगली में पहनने से छाती के दर्द, घबराहट, ज्वर, कफ, दमा, आदि के प्रकोपों से भी बचाव होता है। स्वर्ण आभूषण पवित्राता को प्रदान करते हैं। रत्नजडि़त आभूषण ग्रहों की पीड़ा, दुष्टों की नजर एवं बुरे स्वप्नों को नष्ट करती है। शुक्राचार्य के अनुसार पुत्रा की कामना वाली स्त्राी को हीरा नहीं पहनना चाहिए।