दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर भारत !

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हाल ही में पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (पीएचडीसीसीआई) के अध्यक्ष ने यह बात कही है कि पिछले तीन वर्षों से मजबूती से आगे बढ़ने वाला भारत अगले साल यानी कि वर्ष 2026 तक जापान को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है। उद्योग मंडल पीएचडीसीसीआई का मानना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था चालू वित्त वर्ष यानी कि 2024-25 में 6.8 फीसदी और 2025-26 में 7.7 फीसदी की रफ्तार से आगे बढ़ सकती है। हालांकि भारत के समक्ष अनेक वैश्विक चुनौतियां विद्यमान हैं लेकिन भारत ने पिछले कुछ समय से देश में विभिन्न आर्थिक सुधारों के दम पर वैश्विक पटल पर अपनी साख को मजबूत किया है। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज दुनिया के बहुत से देश अर्थव्यवस्था में धीमी गति का सामना कर रहीं हैं।

 

उद्योग मंडल ने जो बातें कहीं हैं वह हम भारतीयों में निश्चित ही उत्साह का संचार करतीं हैं क्योंकि आने वाले समय में हम जापान जैसे देश को भी पीछे छोड़ देंगे। देश की अर्थव्यवस्था को आज अगर गति मिल रही है तो निश्चित ही इसका श्रेय सरकार को जाता है क्योंकि आज सरकार द्वारा देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत और सुदृढ़ करने के लिए अनेक कदम उठाए गए हैं। यह ठीक है कि आज देश में खाद्य पदार्थों की कीमतों में थोड़ा उछाल जरूर आया है लेकिन अच्छी बात यह है कि देश में खुदरा महंगाई कम हो रही है। चालू वित्त वर्ष यानी कि 2024-25 में खुदरा महंगाई घटकर 4.5 फीसदी और आने वाली तिमाहियों में चार से 2.5 फीसदी के बीच रह सकती है। खुदरा महंगाई घटने के कारण आरबीआई फरवरी की मौद्रिक समीक्षा में रेपो दर में 0.25 फीसदी कटौती कर सकता है।

 

  रेपो दर वह दर है जिस पर भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) वाणिज्यिक बैंकों को ऋण देता है। वास्तव में रेपो दर का मतलब है ‘पुनर्खरीद दर।’ उल्लेखनीय है कि रेपो दर में कटौती से वाणिज्यिक बैंकों के साथ-साथ व्यक्तियों के लिए भी उधार लेने की लागत कम हो जाएगी। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि जिस दर पर बैंक व्यक्तिगत ऋण, गृह ऋण आदि जैसे ऋण प्रदान करते हैं, उसे ऋण की लागत कहा जाता है। ऋणों पर ब्याज को बारी-बारी से कम किया जाता है। इससे सीआरआर (नकद आरक्षित अनुपात) में भी कमी आती है, जिससे व्यक्तियों के लिए ऋण की उपलब्धता बढ़ जाती है। कहना ग़लत नहीं होगा कि बैंक द्वारा ब्याज की दरों में कटौती से खुदरा महंगाई दर और घटेगी। बहरहाल, उद्योग मंडल ने कृषि, खाद्य प्रसंस्करण, फिनटेक, सेमीकंडक्टर, नवीनीकृत ऊर्जा, स्वास्थ्य और बीमा जैसे क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिए जाने की सलाह दी है क्योंकि ये वे क्षेत्र हैं जिनमें विकास की काफी संभावनाएं हैं।

 

इसके अतिरिक्त, देश में रिकॉर्ड जीएसटी संग्रहण के आंकड़े भी उत्साहित करने वाले हैं। अप्रैल 2024 में सकल वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह 2.10 लाख करोड़ रुपये के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया। यह वर्ष-दर-वर्ष के आधार पर 12.4 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि को दर्शाता है जो घरेलू लेन-देन (13.4 प्रतिशत की वृद्धि) और आयात (8.3 प्रतिशत की वृद्धि) में मजबूत वृद्धि से संभव हुआ है। रिफंड के बाद, अप्रैल 2024 के लिए शुद्ध जीएसटी राजस्व 1.92 लाख करोड़ रुपये है, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 15.5 प्रतिशत की शानदार वृद्धि को दर्शाता है। निश्चित ही इससे भी अर्थव्यवस्था को गति मिली है।

 

यही नहीं, इस साल कृषि उत्पादन में इजाफा होने, तीसरी और चौथी तिमाही में सरकारी पूंजीगत व्यय बढ़ने, विदेशी मुद्रा भंडार के और बढ़ने तथा निर्यात के मोर्चे पर भी बेहतर प्रदर्शन करने की उम्मीद है। गौरतलब है कि पिछले साल यानी कि 2024 में सितंबर-अक्टूबर में चीन, जापान और स्विटजरलैंड के बाद भारत 700 अरब डॉलर(फॉरेक्स रिजर्व) के भंडार को पार करने वाली विश्व की चौथी अर्थव्यवस्था बन गया था। कहना ग़लत नहीं होगा कि पिछले कुछ समय में सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के निवेश और रियल एस्टेट में घरेलू निवेश में बढ़ोतरी के कारण भी भारतीय अर्थव्यवस्था को नवीन गति मिली है। अब यहां प्रश्न यह उठता है कि आखिर अर्थव्यवस्था को गति कैसे मिल सकती है? तो इसका सीधा सा उत्तर यह है कि कोई भी देश अपनी पूंजी को बढ़ावा देकर अर्थव्यवस्था को गति प्रदान कर सकता है। कहना ग़लत नहीं होगा कि बुनियादी ढांचे, शिक्षा, प्रौद्योगिकी और अनुसंधान में निवेश करने से उत्पादन क्षमताओं में सुधार होता है, जिससे उत्पादन बढ़ता है। प्रोडक्शन बढ़ने से अधिक नौकरियाँ मिलती हैं और देश की आबादी के लिए अधिक आय होती है और अर्थव्यवस्था को गति मिलती है। आज देश में व्यापार सुगमता बढ़ाकर, लागत को कम करके, बुनियादी ढांचों के विकास और प्रौद्योगिकी को अपनाकर अर्थव्यवस्था को गति दी जा सकती है।

 

 बहरहाल, यह ठीक है कि आज कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों और वैश्विक बाजारों में कमजोरी के कारण रूपया कुछ हद तक कमजोर जरूर हुआ है और इसके कारण भारतीय अर्थव्यवस्था, आम जनता और बिजनेस जगत पर असर पड़ा है।रुपये में कमजोरी आने से विदेशों से आयात करना महंगा हो रहा है। इसके चलते जरूरी वस्तुओं की कीमत बढ़ रही है लेकिन यह बहुत चिंताजनक इसलिए नहीं है क्योंकि घरेलू बाजार की ताकत अब भी हमारे साथ है। आने वाले समय में हम निश्चित ही हम जापान जैसी मजबूत अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर हो रहे हैं।

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