महिला सुरक्षा कानूनों का बढ़ा दुरुपयोग

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डॉ.नर्मदेश्वर प्रसाद चौधरी

 
पुराने जमाने में हमारा देश बहुत पिछड़ा हुआ था। समाज में अशिक्षा व्याप्त थी। स्त्रियां तो क्या पुरुष भी अशिक्षित थे।उस समय महिलाओं की दशा व दिशा समाज में बहुत ही खराब थी। वे  सिर्फ भोग की वस्तु समझी जाती थी । उन्हें कोई अधिकार न था। उनकी स्थिति एक मजदूर जैसी थी। प्राय: उन्हें मारा पीटा भी जाता था। धीरे-धीरे देश स्वतंत्र हुआ । शिक्षा का  प्रचार प्रसार बढ़ा। महिलाओं को भी पढ़ने -लिखने का अधिकार मिला। उसी के साथ उन्हें मिली, स्वतंत्रता । उनकी सामाजिक सुरक्षा के लिए कानून बनाये गये। जिससे उनकी स्थिति में सुधार आया। आज महिलाएं हर क्षेत्र में आगे हैं।किसी से कम नहीं हैं, लेकिन आज उन्हीं महिला सुरक्षा के कानूनों का दुरुपयोग, पुरुष और उसके परिवार के लोगों को प्रताड़ित करने के लिए किया जा रहा है। पति और उसके परिवार के लोगों पर दहेज लेने का व प्रताड़ना का झूठा आरोप लगाकर जेल भेजा जा रहा है, पैसा ऐंठा जा रहा है। इससे पुरुष वर्ग और उसका परिवार हमेशा डरा रह रहा है और विवाहित महिला व उसके परिवार के लोगों के उत्पीड़न का शिकार हो रहा है। इसके पुरुष झूठे आरोपों और उत्पीड़न से उबकर आत्महत्या कर रहे हैं अथवा एकाकी जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इसका ताजा उदाहरण बैंगलूरु के इंजीनियर की आत्महत्या है।

 

महिलायें स्वतंत्र रहना चाह रही हैं और अपना मनमाना कर रही हैं। तलाक के मामले बढ़ रहे हैं। सबसे दुखद बात तो ये है कि महिलाए ससुराल से सारा कीमती सामान लेकर मायके चली जा रही हैं और अपना मनमाना जीवन यापित करते हुए दहेज का झूठा आरोप लगाकर पति से मोटा धन हर्जा-खर्चा का वसूल रही है। पुरुष एकांकी रहकर अपने नसीब को रो रहा है या आत्महत्या कर रहा है।इस कृत्य में उसके मायके के लोग पूर्ण रूप से सहयोग कर रहे हैं और पैसा खींच रहे हैं।कुछ लोगों के लिए तो यह एक आसान सा रोजगार हो गया है। समाज को इस पर ध्यान देना जरूरी है। लोगों को जागना होगा कि महिला सुरक्षा के कानूनों का दुरुपयोग न हो और पुरुषों का भविष्य भी सुरक्षित रहे। महिलाओं के साथ ही पुरुष सुरक्षा का भी कानून बनना चाहिए। आज ऐसे हजारों मामले सामने आ रहे है जो काफी भयावह स्थिति है। इस पर हम सभी के सोच से बदलाव लाया जा सकता है।

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