कितना सफल हो पाया है देश का गणतंत्र !

0
message_1737654981099_1737654988490

हमारा संविधान भले ही जाति धर्म के आधार पर कोई भेदभाव न करता हो लेकिन राजनीति से जुड़े लोग सत्ता की चाबी हाथ लगते ही चाबी अपने पास बनाये रखने के लिए भारतीय संविधान को उसकी मूल भावना से परे जाकर संविधान को अपने अपने स्वार्थ से परिभाषित करने का प्रयास करते है।तभी तो अभी तक एक सौ से अधिक बार भारतीय संविधान को संशोधनों का सामना करना पड़ा है।भारतीय संविधान की वर्षगांठ पर यह चिंतन करना आवश्यक है कि दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतांत्रिक राष्ट्र में क्या सही मायनों में स्वस्थ लोकतंत्र बचा हुआ है। क्या यह सच नही है कि

गण का तंत्र होने पर भी गण ही अपने अधिकार से वंचित होकर रह गए है।

 

भारतीय संविधान मिलने के बाद आमजन को लगा था कि अब उनका शासन उनके द्वारा ही किया जाएगा लेकिन चन्द पूंजीपतियो की जेब का खिलौना बने राजनीतिक दलों ने आमजन को दरकिनार कर पूंजीपतियों के सहारे देश में

कुर्सी प्राप्त करने की ऐसी चाल चली कि लोकतन्त्र बेचारा धराशाही होकर रह गया। विधायको और सांसदो की सत्ता के लिए होती कथित खरीद फरोख्त ने तो  देश के लोकतन्त्र को कमजोर करके रख दिया है।

भारतीय गणन्त्र को यूं धराशाही करने की कोशिश  की जाएगी, यह संविधान निर्माण के समय किसी ने सोचा तक नही था। इस लोकतन्त्र में क्या वास्तव में आमजनता को उनका अपना वास्तविक तन्त्र मिल पाया है? भारतीय संविधान की मूल भावना जनता पर जनता के द्वारा शासन का सपना क्या वास्तव में चरितार्थ हो पाया है? सन 1950 में भारतीय संविधान भले ही देश में लागू हो गया हो। भले ही देश के प्रत्येक नागरिक को भारतीय संविधान में समानता का अधिकार देने की व्यवस्था की गई हो, लेकिन

गणतन्त्र लागू होने के इतने वर्षों बाद भी देश मे नाम मात्र के लोगो का ही गणतन्त्र बन पाया है। देश मे राज वे लोग ही कर रहे

है,जो धन बल से परिपूर्ण है। बेचारी  आम जनता तो आजादी के बाद से आज तक इन धन बल वालो की ही मोहताज बनी हुई है। यही कारण है कि आम लोग जब असहनीय रूप से शोषित और पीड़ित हो जाते है तो वे अपने अधिकारों के लिए सडकों पर आकर आंदोलन करने को मजबूर होते है।जिन्हें फिर लाठी डंडे से दबाने की कोशिश की जाती है लेकिन यह तय है कि अब आम आदमी अपने विरूद्ध होने वाले हर अन्याय का

प्रतिवाद करने को तैयार हो गया है। ग्राम पंचायत से लेकर राष्ट्रपति पद तक

के चुनाव में  कोई भी आम आदमी चुनाव लडने का साहस

 नही जुटा पा रहा है। ग्राम स्तर पर गांव के धनाढय वर्ग से

जुडे लोग चुनाव लडते है तो क्षेत्र पंचायत, जिला पंचायत, विधान सभा,लोक सभा चुनाव मे भी  आम जनता मे से कोई चुनाव

लडने का साहस नही जुटा पाता है क्योकि लाखो करोड़ो रुपयों के बिना अब कोई भी चुनाव लडना सभंव नही रह गया है। राज्य सभा और विधान परिषद

तो राजनीतिक दलो की अपनी बपोती बन गई है। शायद ही किसी गरीब और आम आदमी को इन सदनो मे से किसी का सदस्य बनाया गया हो,  बडी

राजनितिक पार्टिया अपने चेहतो को राज्य सभा और विधान परिषदो मे भेजकर लंबे समय उपकृत करती रही है । इन सीटो पर वे अपने चहेतों को

भेजने के लिए संख्या बल के हिसाब से सीटो का आपसी बटवारा कर लेते है

जिससे आम जनता हर बार ठगी सी रह जाती है।

इसी कारण इन सदनो मे चुनकर जाने वाले नेता अपने क्षेत्र के प्रति जवाबदेह भी नही रहते, यहां तक कि उनकी सांसद निधि और विधायक निधि या

तो खर्च ही नही हो पाती या फिर उसका जमकर दुरूपयोग किया जाता है जो राष्ट्रहित में नही है।

गत चुनाव मे एक भी ऐसा

प्रत्याशी किसी बडे राजनीतिक दल से चुनाव मैदान में नही आया जो गरीबी की रेखा से नीचे का हो या फिर आमजनता के बीच का

हो और किसी बडी राजनीतिक पार्टी ने उसे टिकट दिया हो । जीवनभर अपनी पार्टी के प्रति वफादार रहने वाले भी इसी कारण टिकट से वंचित रह

जाते है क्योकि उनके पास धन बल नही होता जबकि धनबल के सहारे दलबदल कर स्वार्थी नेता हर पार्टी में टिकट पाने मे कामयाब हो जाते है। तभी

तो करोडो खर्च करके जो मौकाप्रस्त टिकट पा जाते है, वे चुनाव जीतकर पहले जो चुनाव में करोड़ों रुपया खर्च किया उसे बटोरेंगे। ऐसे में वे

कैसे जनता की सेवा कर पायगे?  चुनाव प्रभावित क्षेत्रो से करोड़ो

रूपये का काला धन पकडा जाना, चुनाव मे बेतहाशा खर्च की असलियत का  जीता जागता प्रमाण है। संविधान लागू होने के इतने वर्षो बाद भी व्यक्ति भूख से मर रहा है,रोजगार को तरस रहा है,अन्नदाता किसान आत्महत्या कर रहा है।आज भी पुलिस जिसे चाहे, जब चाहे, जहां चाहे उठाकर बिना किसी कारण

के हवालात में बन्द कर देती है,पुलिस हिरासत में मौत तक हो जाती है। जो चाहे सडक जाम कर मरीजो को अस्पताल जाने से रोक देता है। आज भी कर्मचारी या अधिकारी चाहे तो गरीब को उसके द्वारा घूस न देने के कारण उसे उसके मौलिक अधिकारों से वंचित कर देते है। आज भी प्राइवेट स्कूलों व प्राइवेट अस्पतालो मे गरीबो के लिए के लिए प्रवेश नही मिल पाता। आरक्षण व्यवस्था लागू होने पर भी उन्हे प्रवेश से वंचित किया जाता है। आज भी गरीब की भूमि पर भूमाफियाओ के कब्जे की शिकायते मिलना आम बात है।आज  आमजन  नेताओ के झूठे वायदो व भृष्ट अधिकारियो के मायाजाल में फंसकर परेशान है। ऐसे

में कैसे, भारतीय संविधान की मूल भावना के अनुरूप सभी  भारतीयों को उनका अपना लोकतन्त्र मिल पाएगा,यह विचार आज के दिन हमे करना चाहिए।यही आज की जरूरत भी है।तभी हम अपने लोकतंत्र को कमजोर होने से बचा सकते है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *