भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है गौवंश !

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भारत एक ऐसा देश है जहां गाय को माता का दर्जा दिया गया है। भारत विश्व का ऐसा देश है जहां पर दुनिया में सबसे अच्छी नस्ल वाला गौवंश पाया जाता है, लेकिन आज देश में गौवंश की जितनी दुर्दशा है, शायद किसी और की नहीं है। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि पिछले साल यानी कि वर्ष 2024 में जनवरी माह में बैतूल में गोवंश से भरा एक ट्रक नाले में पलट गया, जिससे 19 गोवंश की मौत हो गई थी। जानकारी के अनुसार इन सभी को महाराष्ट्र के कतलखाने ले जाया जा रहा था। इसी प्रकार से दिसंबर 2024 में दमोह से गौवंश भरकर जबलपुर की ओर आ रहा एक ट्रक ग्राम बोरिया कटंगी में अनियंत्रित होकर पलट गया था और हादसे में कई गोवंशों की मौत हो गई थी। वहीं कई गायें घायल हो गई थी। हादसे के बाद चालक व परिचालक मौके से फरार हो गये थे। इसी तरह से गत दिनों दिल्ली-मुम्बई एक्सप्रेस सड़क मार्ग पर गोवंश से भरे एक ट्रक की दूसरे वाहन से भिड़ंत हो गई और दोनों ट्रक पलट गए, जिसमें दो गोवंश की मौत हो गई।

 

बहरहाल, पाठकों को बताता चलूं कि पिछले 10 सालों में देश ने मछली और दूध उत्पादन में काफी तरक्की है और इन दोनों के उत्पादन में कई गुना बढ़ोतरी हुई है। पिछले साल ही केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्री राजीव रंजन (लल्लन सिंह) ने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में यह कहा था कि ‘देश में मवेशियों की संख्या भी बढ़ी है। खास कर गायों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है। उनके मुताबिक, गाय की संख्या 19.09 करोड़ से बढ़कर अब 19.30 करोड़ हो गई है लेकिन यह बहुत ही दुखद है कि आज देश के गौवंश की बहुत ही दुर्दशा देखने को मिल रही है। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि हमारे सनातन हिंदू धर्म में गोपाष्टमी पर्व को बेहद विशेष माना जाता है .इस दिन भगवान कृष्ण और गौ माता की कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को पूजा का विधान है‌। दीपावली पर हम गौवर्धन पूजा भी करते हैं, लेकिन यह बहुत ही दुखद है कि आज अधिकतर मामलों में गाय या तो भूख के कारण या दुर्घटनाओं में मारी जाती हैं या घायल हो जाती हैं अथवा लावारिस हालत में यत्र-तत्र घूमती हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि युगों-युगों से भारतीय कृषि अर्थशास्त्र का मजबूत आधार स्तम्भ रहे गोवंश की दुर्दशा का मंजर विशेषकर आज शहरों व राजमार्गों पर देखा जा सकता है।आज सड़कों , गलियों, खेतों में गौवंश आवारा और लावारिस घूमता है। हालांकि देश में आज अनेक गौशालाएं मौजूद हैं लेकिन आवारा गायें आज सड़कों पर दुर्घटना की शिकार हो रही हैं।

 

गौशालाओं की दुर्दशा भी आज किसी से छिपी नहीं है। इनके पास पर्याप्त फंड का अभाव होता है। दानवीर, भामाशाह गायों की रक्षा के लिए आगे आते हैं लेकिन आमजन की भी तो कुछ जिम्मेदारियां बनतीं ही हैं। आज गौवंश के लिए खाने व पीने तक के लिए कोई व्यवस्थाएं उपलब्ध नहीं हो पाती हैं। जब तक गाय दूध देती है तब तक लोग गाय को अपने घरों में रखते हैं और यह हमारे देश की विडंबना ही है कि दूध देना बंद करने के बाद लोग उन्हें लावारिस हालत में छोड़ देते हैं। यहां प्रश्न यह उठता है कि क्या गौवंश को बचाने की जिम्मेदारी सरकार, प्रशासन, पशुपालन विभाग की ही है? हमारी और हमारे समाज की कोई भी जिम्मेदारी नहीं है? कहना ग़लत नहीं होगा कि गाय देश में हमेशा से ही एक संवेनदशील मुद्दा रहा है और इस पर राजनीति होती रही है। यह बहुत ही संवेदनशील और दुखद है कि आज हमारे देश में कहीं भी उन गायों के लिए कोई प्रवाधान नहीं है, जिन्हें बेसहारा या लावारिस यूं ही खुले में छोड़ दिया जाता है। नतीजन वे अक्सर दुर्घटनाओं का शिकार हो जाती हैं, और या तो मारी जाती हैं अथवा विकलांग हो जाती हैं। लावारिस और आवारा गायें आज भूख से बिलखते हुए पालिथीन निगल लेतीं हैं, जिससे बहुत बार वे गंभीर रूप से बीमार हो जाती हैं।

 

इससे बड़ी विडंबना और दुःख की बात और भला क्या हो सकती है कि आज इस मूक पशु के संरक्षण की ज़िम्मेदारी लेने को कोई भी तैयार नजर नहीं आते हैं। आज गाय सिर्फ और सिर्फ राजनीति के नारों में जरूर ज़िंदा है।गाय को भारत की अर्थव्यवस्था की असली रीढ़ माना जाता रहा है और आज भी यह देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। हिन्दू धर्म में तो गाय के महत्व के कुछ आध्यात्मिक, धार्मिक और चिकित्सीय कारण भी रहे हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार गाय में 33 कोटि देवी-देवता निवास करते हैं। स्वामी दयानन्द सरस्वती कहते हैं कि एक गाय अपने जीवनकाल में 4,10,440 मनुष्यों हेतु एक समय का भोजन जुटाती है। पाठकों को बताता चलूं कि पूरी संसद द्वारा गौवध बंदी करने का समर्थन करने पर भी प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि ‘यदि यह प्रस्ताव पास होता है, तो मैं प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र दे दूंगा।’ कहना ग़लत नहीं होगा कि आज गौहत्या पर कानून को और अधिक सख्त बनाए जाने की आवश्यकता है। पंजाब केसरी महाराजा रणजीत सिंह ने अपने शासनकाल के दौरान राज्य में गौहत्या पर मृत्युदंड का कानून बनाया था। बहरहाल,वैज्ञानिक शोधों से यह पता चला है कि गाय में जितनी सकारात्मक ऊर्जा होती है उतनी किसी अन्य प्राणी में नहीं है। कहते हैं कि गाय की रीढ़ में स्थित सूर्यकेतु नाड़ी सर्वरोगनाशक, सर्वविषनाशक होती है। गाय एकमात्र ऐसा प्राणी है, जो ऑक्सीजन ग्रहण करता है और ऑक्सीजन ही छोड़ता है, ‍जबकि मनुष्य सहित सभी प्राणी ऑक्सीजन लेते और कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ते हैं। पेड़-पौधे इसका ठीक उल्टा करते हैं। इतना ही नहीं, देशी गाय के एक ग्राम गोबर में कम से कम 300 करोड़ जीवाणु होते हैं।एक तोला (10 ग्राम) गाय के घी से यज्ञ करने पर एक टन ऑक्सीजन बनती है।पंचगव्य का निर्माण गाय के दूध, दही, घी, मूत्र, गोबर द्वारा किया जाता है, जो कि कई रोगों में लाभदायक है।

 

कहते हैं कि एक गाय बैल को मारना एक मनुष्य को मारने के समान है।गुरु गोविंदसिंहजी ने कहा था, ‘यही देहु आज्ञा तुरुक को खापाऊं, गौ माता का दुःख सदा मैं मिटाऊं।’प्रसिद्ध मुस्लिम संत रसखान की इच्छा थी कि यदि पशु के रूप में मेरा जन्म हो तो मैं बाबा नंद की गायों के बीच में जन्म लूं। उन्होंने कहा था कि- ‘जो पशु हों तो कहा बसु मेरो, चरों नित नंद की धेनु मंझारन।’महर्षि अरविंद ने कहा था कि गौ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की धात्री होने के कारण कामधेनु है। इसका अनिष्ट चिंतन ही पराभव का कारण है।पं. मदनमोहन मालवीय की अंतिम इच्छा थी कि भारतीय संविधान में सबसे पहली धारा सम्पूर्ण गौवंश हत्या निषेध की बने।गांधीजी ने कहा है कि ‘गोवंश की रक्षा ईश्वर की सारी मूक सृष्टि की रक्षा करना है, भारत की सुख- समृद्धि गाय के साथ जुड़ी हुई है। गाय प्रसन्नता और उन्नति की जननी है, गाय कई प्रकार से अपनी जननी से भी श्रेष्ठ है।’

 

बहरहाल, पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि गाय के गोबर से बायोगैस, गोबर गैस बनाई जा सकती है। गोबर गैस प्लांट के विभिन्न पर्यावरणीय फायदे हैं। यह भी एक तथ्य है कि एक प्लांट से करीब 7 करोड़ टन लकड़ी बचाई जा सकती है जिससे करीब साढ़े 3 करोड़ पेड़ों को जीवनदान दिया जा सकता है। साथ ही करीब 3 करोड़ टन उत्सर्जित कार्बन डाई ऑक्साइड को भी रोका जा सकता है। इतना ही नहीं,गौमूत्र और गोबर फसलों के लिए बहुत उपयोगी कीटनाशक सिद्ध हुए हैं। यह भी एक तथ्य है कि एक गाय का गोबर 7 एकड़ भूमि को खाद और मूत्र 100 एकड़ भूमि की फसल को कीटों से बचा सकता है। केवल 40 करोड़ गौवंश के गोबर व मूत्र से भारत में 84 लाख एकड़ भूमि को उपजाऊ बनाया जा सकता है। इतना ही नहीं, गौमूत्र में नाइट्रोजन, सल्फर, अमोनिया, कॉपर, लौह तत्व, यूरिक एसिड, यूरिया, फॉस्फेट, सोडियम, पोटैशियम, मैगनीज, कार्बोलिक एसिड, कैल्सियम, विटामिन ए, बी, डी, ई, एंजाइम, लैक्टोज, सल्फ्यूरिक अम्ल, हाइड्रॉक्साइड आदि मुख्य रूप से पाए जाते हैं। यूरिया मूत्रल, कीटाणुनाशक है।

 

गौवंश को बचाने के लिए आज आवश्यक कदम उठाए जाने की जरूरत बहुत ही अहम् है। गौवंश के संरक्षण के लिए आज जहां एक ओर चरागाह भूमियों का संरक्षण करने की जरूरत है, वहीं वन्य क्षेत्र के संरक्षण की भी जरूरत है। भामाशाहों को और अधिक गौशालाओं के निर्माण के लिए आगे आना होगा।गौवंशीय पशु अधिनियम 1995 के अंतर्गत 10 वर्ष तक का कारावास और 10,000 रुपए तक का जुर्माना है, लेकिन कानून को और अधिक प्रभावी और सख्त बनाने की आवश्यकता है।गायों के संरक्षण के लिए एकमात्र उपाय यह है कि सबसे पहले हमें पुनः गौ-धन की उपयोगिता स्थापित करनी होगी। गौवंश संरक्षण के लिए गौशालाओं की स्थापना अच्छी बात है लेकिन वर्तमान परिदृश्य में हम गौ-धन संरक्षण के लिए पूर्णतः गौशाला पर निर्भर हो गये हैं, हमें इससे बाहर निकल कर पुख्ता कदम उठाने होंगे। हमें स्वयं गौवंश के लिए आगे आकर पहल करनी होगी। हमें देश में ऐसी व्यवस्थाओं को जन्म देना होगा,जिससे किसान पुनः गौ-पालन की ओर उन्मुख हो। गाय के दूध की महत्ता के बारे में भी जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है।

 

 आज हमारी नई पीढ़ी आधुनिकता की चमक में अपने प्राचीन सभ्यता और संस्कारों को भूलती जा रही है। उन्हें हमारे हिन्दू धर्म के प्रति जागरूक करने के लिए जागरूकता अभियान और कार्यक्रम आयोजित करने की जरूरत महत्ती है। हमें अपनी युवा पीढ़ी को यह बताने की जरूरत है कि गाय सिर्फ दूध देने वाला पशु नहीं है, बल्कि इसके पर्यावरण, स्वास्थ्य और आर्थिक फायदे बहुत हैं।आज देश में राष्‍ट्रीय कामधेनु आयोग (आरकेए) का गठन भारत सरकार द्वारा गायों और उनकी संतानों के संरक्षण, उनके पालन, सुरक्षा और विकास के लिए और पशु विकास कार्यक्रमों के लिए दिशा निर्देश देने के लिए किया गया है, लेकिन गौधन संरक्षण के लिए और अधिक पहलें करने की आवश्यकता है। गाय हमारे देश में युगों-युगों से पूजनीय व हमारी आस्था का बड़ा केंद्र रही है। प्रश्न यह उठता है कि क्या हम गाय जैसे सबसे पूजनीय और सम्मानित माने जाने वाले मूक जीव की ऐसी दुर्दशा देख सकते हैं ?

 

हमारा देश तो वह देश रहा है जहां घर में बनने वाली पहली रोटी गाय के लिए और अंतिम रोटी कुत्ते के लिए बनाई जाती रही है। जीवों के प्रति दया, करूणा का भाव हम सभी में रहा है लेकिन आज हमारी आंखों के सामने पढे़- लिखे और कथित सभ्य लोग जीवों के प्रति हिंसा, अत्याचार करते हैं और हम एक तमाशबीन बनकर उसे चुपचाप देखते रहते हैं। हम इतने संवेदनहीन व स्वार्थी आखिर कैसे हो सकते हैं ? यह बहुत दुखद है कि आज ट्रकों में भर-भरकर गोवंश को तस्करी के लिए अवैध रूप से इधर-उधर ढ़ोया जाता है। कहने को तो गाय या अन्य किसी भी प्राणी के प्रति क्रूरता कानून में अपराध माना गया है, लेकिन सवाल यह है कि गौवंश के संरक्षण, संवर्धन के प्रति आखिर हमारी आवाज़ कब उठेगी ? गौवंश पर अत्याचार, बर्बरता, हिंसा, उन्हें खुले में लावारिश व आवारा छोड़ना आखिर कब रूकेगा ? अंत में, यही कहूंगा कि ‘गौ माता’ मातृत्व, उर्वरता और समृद्धि का प्रतीक ही नहीं, भारतीय संस्कृति का मूलाधार तथा हमारे देश की कृषि और अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार स्तंभ भी है। अतः आइए ! हम गौवंश के संवर्धन और संरक्षण की दिशा में हर संभव व जरूरी कदम उठाए।
 

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