सुस्त और सुस्ती के साथ आलस्य और आलसी का गहरा नाता है। सदैव काम और श्रम करने वाले बहुत कम मिलते हैं। जो काम को कल पर टालता है वही आलस्य व आलसी व्यक्ति की पहली पहचान है।
आलस एक बीमारी है इसीलिए इसे अपनाने वाला आलसी व्यक्ति अनेक रोगों का शिकार होता है। एक ही स्थान पर पड़े रहने वाले कठोर पत्थर पर भी काई जम जाती है। यही आलसी व्यक्ति के साथ होता है। आलसी व्यक्ति को सबसे बड़ा सुख आलस करने से मिलता है किन्तु जल्द ही उसके सामने इसका कुपरिणाम सामने आने लगता है। उसे कई तरह की बीमारियां घेर लेती हैं।
आलस तो व्यक्ति के सोचने समझने की शक्ति को कुंद व कमजोर कर देता है। वह जीवित होकर भी मृत के समान हो जाता है। वह किसी को मदद करने की बजाय स्वयं ही दूसरों के भरोसे और उनकी सहायता पर रहता है।
सभी मौसमों में सर्दी का मौसम ऐसा है जब आलस अपने चरम पर होता है। आलसी व्यक्ति गुटखा चबा सकता है, सिगरेट पी सकता है। आलसी महिलाएं जुबान चला सकती हैं उसे लड़ा कर जुबानी व जमा खर्च कर सकती हैं। ज्यादा से ज्यादा तम्बाकू या सुपारी चबा सकती हैं पर इससे हासिल कुछ नहीं होता।
सुख-सुविधा के आधुनिक वैज्ञानिक संसाधन जन-जन को आलसी बनाने पर तुले हैं। सम्पन्न व्यक्ति इन संसाधनों के चलते आलसी होते जा रहा है। रिमोट नामक छोटा सा यंत्रा व्यक्ति को निकम्मा व आलसी बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। आज हम साधन सम्पन्न हो गए हैं। सम्पूर्ण काम मशीनों के माध्यम से हो रहा है। ऐसे में मनुष्य को शारीरिक श्रम करने की जरूरत नहीं पड़ रही है।
भौतिक साधन व सुविधाएं मनुष्य को लगातार आलसी बना रही हैं। यह आलस ही अनेक बीमारियों की जड़ है। गाडि़यां पैरों को नाकारा बना रही हैं। टी.वी. हमंे असामाजिक बनाकर घरों में कैद कर रहा है। मोबाइल बातूनी व झूठा बना रहा है। कम्प्यूटर दिमाग की बत्ती बुझा रहा है। जहां सम्पन्नता है वहां व्यक्ति आलसी बनने का हर संभव उपाय कर रहा है।
आलसी व्यक्ति को सबसे पहले मोटापा होता है। जोड़ों में दर्द होता है। वह थका-थका सा रहता है। पाचन बिगड़ता है। अपच, कब्ज, गैस, एसिड बनता है। बवासीर होती है। रक्त वसा बढ़ता है। कोलेस्ट्राल बढ़ जाता है। यह ब्लड प्रेशर बढ़ाता है। हृदय रोग, मधुमेह सब एक एक करके होता जाता है। ऐसे में उपचार के लिए पैसा पानी की तरह बहाया जाता है किन्तु इन बीमारियों की जड़ तक कई नहीं जाता। हालात यह है कि आज बीस में से मात्रा एक व्यक्ति व्यायाम करता है।
आलस की कोई दवा नहीं है। इसकी दवा तो पहले से ही आपके पास है जो निःशुल्क है। इसके लिए न तो खेत खोदना है न सड़क बनानी है। अपनी जगह से उठिए, खड़े होइए। आपका भाग्य भी खड़ा हो जाएगा। आगे बढि़ए, पैदल चलिए, साइकिल चलाइए, दौडि़ये, व्यायाम कीजिए, कुछ अपना काम कीजिए। आपके कर्म करने से भाग्य जाग जाएगा और आपको सफलता का फल-मिलता जाएगा। आलस दूर होगा तो सभी बीमारियां अपने आप दूर हो जाएंगी।
आपको किसी का पिछलग्गू नहीं बनना है और न ही दास बनना है। आपको तो कर्मठ बनना है। सुस्त नहीं, चुस्त बनना है। आपके कर्म करने से शरीर में प्राण वायु आक्सीजन की मात्रा बढ़ेगी तो सब कुछ अपने आप ठीक हो जाएगा। चेहरे पर कांति आएगी, बुढ़ापा दूर भाग जाएगा। स्फूर्ति आएगी। दिमाग दुरूस्त रहेगा।
पानी जमा रहकर खराब हो जाता है। बहता पानी साफ रहता है। पड़े-पड़े लोहे में भी जंग लग जाती है। फिर आप क्यों आलस में पड़कर अपने शरीर को बर्बाद करना चाहते हैं। भाग्य आपकी मुट्ठी में है। कर्म कीजिए और मन माफिक भाग्य फल पाइए किन्तु कभी भी सुस्त व आलसी न बनिए।