छुट्टी वाले दिन अलार्म का शोर कितना सुहाना लगता है। यह कोई दस साल के हर्ष से पूछे। काश ऐसा बाल दिवस रोज आये, स्कूल की छुट्टी हो और मम्मी पापा ने बाजार घुमाने का वादा किया हो। वाह हुई न मजेदार बात।
इत्तेफाक से आज आनंद की भी दफ्तर से छुट्टी थी। शायद पिछले संडे आफिस में बैठकर काम करने का इनाम। तो आदतन सुबह सात बजे उनकी भी नींद खुल तो गयी मगर छुट्टी का ख्याल आते ही अंतर्मन तक शान्ति और सुख का एहसास हुआ। ऐसा लगा जैसे जन्नत नसीब हो गयी हो और हो भी क्यों न आखिर मिड वीक आफ यानी मध्य सप्ताह छुट्टी की बात ही अलग होती है। सो बस आँखें मींचे बिस्तर में ऊँघते रहे। उधर रश्मि का भी मन अति आनंदित था – न बेटे का स्कूल न पति का आफिस। उसपर घूमने जाने की खुशी अलग। दिल्ली का वर्मा परिवार आज असल मायनों में सुख सागर में गोते लगा रहा था।
पापा हम हमेशा आपकी वजह से लेट होते हैं। अभी तक आप नहाये भी नहीं।
अभी नहाने ही जा रहा हूँ।
तो जाइये न।
उफ ये लड़का! आज जरा तसल्ली से अखबार तो पढ़ने दे बेटा।
देखा! अब अखबार पढ़ने लगे। पापा ऐसे तो हम शाम तक भी नहीं जा पाएंगे, आप जानते हैं मुझे नई बैट्री वाली गाड़ी खरीदनी है, जैसी गगन के पास है, और सबसे जरूरी दृ बर्गर!
अच्छा बाबा जा रहा हूँ। तुम जल्दी से तैयार हो जाओ।
हर्ष – मम्मी आप भी अपना फोन रख के मुझे जल्दी से तैयार कर दीजिये।
मम्मी – जरा एक मिनट बेटे, ये नया व्हाट्सएप्प आया है बाल दिवस पर। जरा अपने ग्रुप पर फारवर्ड कर दूँ।
हर्ष -ओहो! कोई मेरी बात सुनता नहीं है। आज बाल दिवस है – मेरा दिन। आज सब लोग मेरी बात सुनेंगे। ठीक ?
बच्चे की मासूम बात सुनके आनंद और रश्मि खुशी से हंस पड़े और बोले – ठीक है। चलो चलें।
वाकई आज बाजार की रौनक देखने लायक थी। बच्चों के शोरूम में तरह तरह की सेल लगी हुई थी। एक से बढ़कर एक कपडे़, जूते, खिलौने और भी बहुत कुछ। हर्ष ने मम्मी पापा के साथ खूब खरीदारी की। कपड़ों से लेकर स्कूल की नई बोतल तक हर चीज पर धावा बोल दिया और कमाल की बात तो यह कि आज मम्मी पापा ने एक बार न टोका।
पापा मैं थक गया हूँ और मुझे जोरों की भूख लगी है।
रश्मि ने भी सुर में सुर मिलाते हुए कहा – हाँ मुझे भी। चलिए किसी अच्छे रेस्टोरेंट में बैठकर खाना खाते हैं।
आनंद – ठीक है, चलो।
रेस्टोरेंट का मेनू कार्ड दिखते हुए आनंद ने हर्ष से पूछा – हर्ष बेटे क्या खाओगे?
हर्ष की आँखों में चमक थी – बर्गर। बड़ा सा बर्गर चीज वाला। साथ में ठंडा और बाद में आइसक्रीम।
आनंद – हाँ हाँ जरूर।
सबने भरपेट खाना खा कर एक बर्गर पैक भी करवा लिया। रेस्टोरेंट से बाहर निकलते ही आनंद को याद आया कि अपनी चेंज काउंटर पर भूल गया है सो वह भागकर अंदर गया।
रश्मि को बगल वाली दुकान में चमकती साड़ी ने आकर्षित किया और वह बोली – हर्ष बेटे, यहीं रहना। मैं बगल वाली दुकान में हूँ, अभी पापा आ रहे हैं।
हाँ मम्मी बेफिक्र रहिये। मैं कोई छोटा बच्चा नहीं रहा। आप जाओ।
बच्चे के आत्म विश्वास भरे शब्द सुनके रश्मि को बड़ी तसल्ली हुई और वह पड़ोस की दुकान में घुस गई। तभी हर्ष के सामने एक उसका हमउम्र बच्चा खड़ा उसको देख रहा था। उसकी गड्ढों में धंसी खाली आँखें, बदन पर घिसी पिटे कपड़ों के चीथड़े , पतले पतले हाथ पैर देख मालूम होता था उसने कई दिनों से ठीक से खाना नहीं खाया है। ऐसे बच्चे अक्सर हमें सड़कों पर, फुटपाथों पर देखने को मिल ही जाते हैं। वही बच्चे जिनको मम्मी पापा भीख तक नहीं देते, कहते हैं कि इन्हें मेहनत करनी चाहिए।
पहले तो वह बच्चा कुछ दूर था लेकिन देखते देखते हर्ष के नजदीक आ पहुंचा और बोला – बड़ी भूख लगी है भैया। बड़ी भूख लगी है।
इस वक्त हर्ष का दिल बहुत मुश्किल में था। भूख के अहसास से कोई अपरिचित तो होता नहीं फिर चाहे वह छोटा बच्चा ही क्यों न हो। अगर मम्मी पापा के साथ होता तो वे लोग इस बच्चे को दुत्कार कर हर्ष की इस कशमकश को वह खत्म कर देते लेकिन अब क्या किया जाए? दुत्कार या करुणा?
भैया खाना दे दो न भैया। – बच्चे ने दोबारा हाथ फैला कर मांग की।
इतना सुनते ही हर्ष ने यकायक अपना अजीज बर्गर का पैकेट उस बच्चे को दे दिया। पैकेट खोलने का भी सब्र नहीं छोड़ा था उस बच्चे की भूख ने। उसने पैकेट को बीच में से फाड़ा और गपगप करके बर्गर खाने लगा।
हर्ष को ऐसी खुशी आज तक न हुई थी जो इस वक्त हो रही थी। वह चुपचाप खड़ा उस बच्चे को निहारता रहा। आज उसने पहली बार किसी भूखे को खाना खिलाया था।
तभी आनंद ने चिल्लाकर कहा – ए चोट्टे ! मेरे बच्चे का खाना छीनता है?
नहीं नहीं पापा! मैंने खुद इसको अपना बर्गर दिया है। खाने दीजिये न। इसको भी तो भूख लगी थी। पापा बाल दिवस का सही अर्थ मुझे आज समझ में आया है। यह केवल व्हाट्सप्प पर आये मैसेज या अखबार में आने वाले सेल धमाकों का त्यौहार नहीं । बाल दिवस तो बचपन का जश्न मनाने का नाम है। आज का बाल दिवस मुझे हमेशा याद रहेगा।