एक बार शिकार के लिये गये अकबर बादशाह जंगल में भटक गये और भूख प्यास से परेशान हो गये। उन्होंने देखा कि एक कुंए पर एक ब्राह्मण नहा रहा है। कुंए में झांककर अकबर ने देखा तो पानी बहुत नीचे था। उसने जाकर उस व्यक्ति से पानी पिलाने का आग्रह किया। उन्हें बहुत प्यास लगी थी। पंडित जी ने उन्हें ओक से पानी पीने को कहा और अकबर पानी पीता ही गया। पंडितजी ध्यान से उसकी अंगुलियों को निहारते रहे और बोले-बादशाह सलामत बहुत थक गये हैं। पानी पीने के बाद थोड़ा विश्राम कर लीजिए। अकबर ने आश्चर्य से पूछा-कौन बादशाह? अकबर बादशाह। कैसे पहचाना? हुजूर मेरी आंखें कभी धोखा नहीं खाती। अंगुली की मुद्रा कह रही है। अकबर ने आदेश दिया। आगरा आकर मिलो। बीरबल आगरा पहुंचे लेकिन बादशाह के महल के बहुत चक्कर लगाने पर भी मुलाकात नहीं हुई। परेशान होकर पनवाड़ी की दुकान लगा ली। एक बार अकबर का पान पेश करने वाला छुट्टी पर चला गया और उसकी एवज में दूसरे को रखा गया। अकबर ने जब पान मुंह में रखा तो आग बबूला हो गया इतना चूना? कल तुम्हें पाव भर चूना खिलाऊंगा, तब पता चलेगा चूने का जायका क्या होता है। बेचारा परेशान हो गया। मौत सामने दिखाई देने लगी। संयोगवश उसने सामने पनवाड़ी की दुकान लगाये बैठे पानवाले को अपना दुखड़ा सुनाया। पानवाले ने उसे विश्वास दिलाया कि तुम्हारा कुछ नहीं होगा। बादशाह के पास जाने से पूर्व जितना घी पी सकते हो, पीकर जाना और फिर मुझे मिलना। अकबर ने उसे चूना पिलाया और एक संतरी को हुक्म दिया कि इसके अपने घर छोड़कर आओ। मेरे सामने मर जायेगा तो अच्छा नहीं। दूसरे दिन कम चूना लाकर पहले से भी अच्छा पान लगाकर उसने पेश किया। अकबर ने पूछा-तुम जिन्दा कैसे हो। उसने सब दास्तान सुना दी। जाओ उस पनवाड़ी को लेकर हाजिर हो। अब बीरबल अकबर के सामने। तुम्हें तो कहीं देखा है। हुजूर प्यासा कुंए के पास आता है। आपको पानी पिलाया था। अच्छा तो तुम कहीं नहीं जाओगे। मेरे नवरत्न में तुम एक हो। तब से अकबर बीरबल के तर्क वितर्क चलते रहे।