नयी दिल्ली, छह दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि लोकतंत्र में विभिन्न विचारधाराओं के लिए हमेशा जगह होती है लेकिन उन मान्यताओं का संविधान के अनुरूप होना जरूरी है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने एक वकील की जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए यह टिप्पणी की। याचिका में केंद्र और ‘बार काउंसिल ऑफ इंडिया’ को यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया था कि बार निकायों के चुनाव लड़ने वालों को किसी राजनीतिक दल का सदस्य नहीं होना चाहिए।
पीठ ने कहा, ‘‘लोकतंत्र में अलग-अलग विचारधाराओं के लिए हमेशा गुंजाइश होती है लेकिन यह संविधान के अनुरूप होना चाहिए। ऐसा कोई कानून नहीं है जो किसी राजनीतिक दल के सक्रिय सदस्य को बार निकायों का चुनाव लड़ने से रोकता हो। आप चाहते हैं कि कानून बनाया जाए। माफ कीजिए, ऐसा नहीं किया जा सकता।’’
वरिष्ठ अधिवक्ता सिराजुद्दीन ने जनहित याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता जया सुकिन की ओर से मामले की पैरवी की।
पीठ ने टिप्पणी की, ‘‘यदि बार के किसी पदाधिकारी की कोई राजनीतिक विचारधारा है तो इसमें गलत क्या है? आप कपिल सिब्बल को एससीबीए (सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन) के अध्यक्ष पद से हटाना चाहते हैं? आप (मनन कुमार) मिश्रा (बिहार से राज्यसभा सदस्य) को ‘बार काउंसिल ऑफ इंडिया’ के अध्यक्ष पद से हटाना चाहते हैं?’’
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कानूनविद राम जेठमलानी के योगदान का उल्लेख करते हुए कहा कि दिवंगत जेठमलानी ‘बार काउंसिल ऑफ इंडिया’ के अध्यक्ष थे तथा उन्होंने एससीबीए के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया था।
पीठ ने कहा, ‘‘वह संसद सदस्य भी थे और विभिन्न राजनीतिक दलों से जुड़े थे। क्या आप चाहते हैं कि देश इन प्रतिभाशाली व्यक्तियों के विचारों और योगदान से वंचित रहे? बार निकाय समाज के कुलीन सदस्यों का एक समूह है। हमें नहीं लगता कि राजनीतिक दलों के साथ जुड़ाव का कोई प्रभाव पड़ेगा।’’
शीर्ष अदालत ने कहा कि जब कानून इस मुद्दे पर चुप है तो वह किसी राजनीतिक दल से जुड़े व्यक्ति को बार निकाय का चुनाव न लड़ने के लिए कैसे कह सकती है।
न्यायमूर्ति कांत ने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा, ‘‘हमारी राय में आपको किसी राजनीतिक दल में शामिल होना चाहिए और कुछ अनुभव प्राप्त करना चाहिए।’’
न्यायालय के मिजाज को भांपते हुए सिराजुद्दीन ने इस मुद्दे को विधि आयोग को भेजने का निर्देश दिए जाने का अनुरोध किया लेकिन पीठ ने कहा कि वह ऐसा कोई निर्देश पारित नहीं करेगी और उसने याचिकाकर्ता को याचिका वापस लेने की अनुमति दे दी।