भारतीय सनातन संस्कृति में कहा गया है कि अन्न ही ‘ब्रह्म ‘ है क्योंकि अन्न से ही समस्त प्राणी उत्पन्न होते हैं तथा उत्पन्न होकर ये अन्न के द्वारा ही जीवित रहते हैं तथा अन्न में ही ये पुनः लौटकर समाविष्ट हो जाते हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि मानव जीवन ईश्वर प्रदत्त होता है लेकिन लौकिक गति और व्यवहार अन्न से प्राप्त ऊर्जा से होता है। इसलिए कहा भी गया है कि ‘प्राणो वा अन्नं’ अर्थात् प्राण ही अन्न है। तात्पर्य है कि अन्न के बिना कुछ भी संभव नहीं है लेकिन आज उसी अन्न की बर्बादी हो रही है। आज भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व में भोजन/अन्न/खाने की बर्बादी एक बड़ी गंभीर व ज्वलंत समस्या है। सच तो यह है कि भोजन की बर्बादी एक बड़ी त्रासदी है।
भारत में आज शादियों, पार्टियों, किसी फंक्शन विशेष, कार्यालयों, घरों कमोबेश हर स्थान पर भोजन/अन्न की बर्बादी होती है जो चिंता का विषय है। खासकर भारत जैसे देश में, जहां लाखों लोग गरीबी रेखा के नीचे रहते हैं और जो हर रोज़ अपने पेट के गांठ बांध कर सोते हैं, उस देश में भोजन की बर्बादी हो तो यह किसी विडंबना से कम बात नहीं कही जा सकती । ब्याह-शादियों में आज शानो-शौकत दिखाने के लिए वर और वधू पक्ष खाने/भोजन के कई आइटम परोसते हैं जिसके कारण लोग खाते कम हैं और बर्बाद ज्यादा करते हैं। अक्सर होता यह है कि लोग अपनी थाली में जरूरत से ज्यादा खाना भर लेते हैं और पेट भरने के बाद थाली में बचा काफी भोजन यूं ही व्यर्थ में फेंक देते हैं जो बाद में न तो किसी जानवर/जीव/पक्षी के काम आ सकता है और न किसी भूखे पेट के। हमारी इस आदत से अन्न की बहुत ज्यादा बर्बादी होती है।
वैसे भी भारतीय संस्कृति में अन्न को जूठन के रूप में छोड़ना पाप माना गया है और यह अन्न का अपमान करने जैसा ही है और यह अपमान बहुत से लोग अनेक स्थानों पर करते हैं, फिर चाहे कोई पार्टी हो, शादी-ब्याह हो या अन्य कोई कार्यक्रम। घरों और कार्यालयों में भी लोग भोजन की बर्बादी से बाज नहीं आते हैं। वास्तव में अन्न को बर्बाद करना सिर्फ एक सामाजिक बुराई नहीं है, बल्कि यह एक आर्थिक बुराई भी है। अन्न की बर्बादी भी कहीं न कहीं अमीर और गरीब के बीच आर्थिक असमानता की खाई को और अधिक बढ़ाती है।
आहार(भोजन/खाना/अन्न) के प्रति आज के समय में हमारा व्यवहार कैसा है यह बात आंकड़ों से एकदम स्पष्ट व साफ होती है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) के आंकड़े बताते हैं कि साल 2021 में दुनियाभर में 93.1 लाख टन भोजन कचरे में समा गया। इनमें से अधिकांश यानी 56.9 लाख टन कचरा हमारे घरों से निकला है। दरअसल भोजन को बर्बाद करते समय अक्सर हम लोग यह बात भूल जाते हैं कि जब भोजन बर्बाद होता है, तो भूमि, जल, श्रम, ऊर्जा और अन्य इनपुट भी बर्बाद हो जाते हैं जिनका उपयोग भोजन के उत्पादन, प्रसंस्करण, परिवहन, तैयारी, भंडारण और निपटान में किया जाता है। भोजन को बर्बाद करके हम देश के किसान-मजदूर (जो अन्न को पैदा करते हैं), अन्न को कमाने वाले तथा अन्न को हमारी थाली में परोसने वाले सभी का हम सरेआम अपमान करते हैं। इसलिए हमें चाहिए कि हम शादी-विवाहों, पार्टियों और अन्य उत्सवों में दिखावे और बनावटी सभ्यता-संस्कृति का शिकार न होते हुए सीमित खाने के आइटम्स को बनवाएं. जितनी हमें जरूरत हो उतना ही प्लेट/थाली में लें और तब भी अगर खाना बच जाए तो उसे जरूरतमंद लोगों में बांट दें।
आज ज़्यादातर लोगों को यह एहसास तक नहीं होता कि वे कितनी बार और कितनी मात्रा में खाना बर्बाद करते हैं और इसका खाद्य सुरक्षा, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन पर कितना नकारात्मक असर हो सकता है। हमें यह बात अपने जेहन में रखनी चाहिए कि वर्तमान में बर्बाद होने वाला पौष्टिक भोजन जरूरतमंद परिवारों को भोजन उपलब्ध कराने में सहायक हो सकता है। भोजन की बर्बादी कम करने से धन की भी बचत होती है। भोजन की बर्बादी को रोककर हम संसाधनों को अधिक उत्पादक उपयोगों के लिए संरक्षित कर सकते हैं। इतना ही नहीं, भोजन की बर्बादी को रोककर हम ग्रीनहाउस गैसों को कम करके जलवायु परिवर्तन को कम करने में भी मदद कर सकते हैं। क्या यह बहुत गंभीर व संवेदनशील बात नहीं है कि विश्व खाद्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया का हर 7वां व्यक्ति आज भूखा सोता है। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि भारत वर्ष 2024 के वैश्विक भुखमरी सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट- जीएचआई) में 27.3 स्कोर के साथ 127 देशों में से 105 वें स्थान पर है, जो खाद्य असुरक्षा और कुपोषण की चुनौतियों से प्रेरित “गंभीर” भूख संकट को उजागर करता है।
वर्ष 2022 में एक प्रतिष्ठित हिंदी दैनिक के हवाले से यह खबर आई थी कि दुनिया में हर साल एक अरब टन से ज़्यादा खाना बर्बाद होता है, वहीं दुनिया के क़रीब 10 प्रतिशत लोगों को भोजन नसीब नहीं हो पाता है। खबर से पता चला कि दुनिया में हर साल तक़रीबन 1.3 अरब टन आहार व्यर्थ हो रहा है, जिससे अन्यथा 1.6 अरब लोगों की भूख मिटाई जा सकती थी। इतना ही नहीं, यूएनईपी (संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम) की खाद्य अपव्यय सूचकांक की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय घरों में सालाना 68.7 मिलियन टन भोजन बर्बाद होता है, सरल शब्दों में कहें तो यह प्रति व्यक्ति लगभग 55 किलोग्राम बैठता है। घरेलू खाद्य अपव्यय के मामले में यह दुनिया भर में दूसरे स्थान पर है, उसके बाद चीन का स्थान है। राष्ट्रीय संसाधन रक्षा परिषद (एनडीआरसी) की एक अन्य रिपोर्ट कहती है कि अमेरिका में उत्पादित भोजन का 40% हिस्सा खाया नहीं जाता, जबकि एशिया में लगभग 1.34 अरब टन भोजन बर्बाद हो जाता है; इसमें मुख्य योगदान भारत और चीन का है।
भोजन की बर्बादी के संबंध में उपयुर्क्त सभी आंकड़े अत्यंत चौंकाने वाले हैं। अतः हम सभी को यह चाहिए कि हम भोजन की बर्बादी को हर तरह से रोकें, लोगों में जागरूकता पैदा करें, खुद भी जागरूक हों। वास्तव में, खाने की बर्बादी रोकने के तीन अहम सूत्र हैं, रीयूज़, रिड्यूस और रिसाइकलिंग। खाद्य पदार्थों को दोबारा उपयोग में लाने, उनकी बर्बादी रोकने के साथ ही रिसाइकलिंग प्रोसेस पर उचित ध्यान देने की ज़रूरत है। अतः ‘भोजन बचाइए, दुनिया बचाइए।’