ठंड से बचने के लिए लोग कपड़े, स्वेटर, मोजे व दस्ताने पहनकर पूरा शरीर ढक लेते हैं। इससे ठंड तो बच जाती है लेकिन त्वचा के रोगों से बचाव नहीं हो पाता और सर्दियों का मौसम त्वचा के लिए कष्टदायी बन सकता है, अतः त्वचा के प्रति बरती गयी थोड़ी सी लापरवाही उसे बदरंग और रूखा बना सकती है। इसके साथ ही यह भी जरूरी है कि चिकित्सक द्वारा बतायी गयी सावधानियां बरत कर इस मौसम में भी त्वचा को कोमल और सुंदर बनाए रखा जा सकता है।
सर्दी के मौसम में त्वचा संबंधी रोगों से कैसे बचा जाए। इस संबंध में के त्वचा रोग विशेषज्ञ बताते हैं कि त्वचा रूखी होने के कारण ही कई बीमारियां होती हैं। त्वचा के रूखी होने के भी अनेक कारण हैं। त्वचा में प्रतिकूल और अनुकूल प्रक्रिया का होना इसका प्रमुख कारण माना जाता है।
सर्दी में तापमान में होने वाले परिवर्तन से कोशिकाएं सिकुड़ जाती हैं। त्वचा से निकलने वाला प्राकृतिक ऑयल जो गर्मी में पसीने के साथ निकलता है और सर्दी में नहीं निकल पाता है, के परिणामस्वरूप त्वचा में खुजली होने लगती है और त्वचा में रूखेपन की शिकायत हो जाती है।
लोग इस मौसम में धूप सेंकना भी पसंद करते हैं। अधिक समय तक धूप में रहने से ‘स्किन टैनिंग’ नामक बीमारी हो सकती है। इससे त्वचा बदरंग हो सकती है। इसके अलावा अचानक ठंड से गर्मी में और गर्मी से ठंड में नहीं जाना चाहिए। इससे शरीर के तापमान में परिवर्तन आता है। परिणामस्वरूप ‘कोल्ड आल्टीकेरिया’ यानी पित्ती भी उभर सकती है।
सर्दी के मौसम में औसतन 37 डिग्री गर्म पानी से ही नहाना चाहिए। बुजुर्गां को रूखी त्वचा खुजली से अधिक रूबरू होना पड़ता है। इसका प्रमुख कारण यह है कि त्वचा की कोशिकाएं मृत हो जाती हैं जिससे त्वचा रूखी और खुश्क होकर खुजली शुरू हो जाती है। इसे ‘विंटर इच’ कहा जाता है।
इस मौसम में ‘रेनाल्ड्स फिनामिना’ भी हो सकता है। इस बीमारी में नाखूनों में खून की सप्लाई पर्याप्त मात्रा में नहीं हो पाती और त्वचा नीली पड़ जाती है। उचित उपचार न कराने पर उंगलियां भी पतली और छोटी होने लगती हैं।
सर्दी के मौसम में एड़ी व पांव फटने की बीमारी भी अधिक होती है, क्योंकि इस मौसम में त्वचा कड़ी हो जाती है और जरा भी लापरवाही ‘क्रेकफीट’ का कारण बन सकती है। इसके अलावा ‘स्केबीज’ (कुकुर खुजली) भी हो सकती है। इसमें रोगी खुजलाते-खुजलाते परेशान हो जाता है। यह बीमारी संक्रामक होती है। योनि, पेडू, जांघ, पेट, स्तन, कांख (बगल) आदि पर स्केबीज का अधिक प्रकोप देखा जा सकता है।
सर्दी आते ही बच्चे भी त्वचा की बीमारियों से त्रास्त होने लगते हैं। फैट जमा होने से त्वचा लाल हो जाती है और खुजली शुरू हो जाती है। अधिक खुजलाने से घाव भी हो जाते हैं। इसे ‘पेनीकुलाइटिस’ कहा जाता है। इस मौसम में पैरों एवं हाथों की उंगुलियों में सूजन भी हो जाती है। अधिक देर तक पानी में काम करने से रक्त कोशिकाएं सिकुड़ जाती हैं और रक्त का संचार पूरी तरह नहीं होता है जिससे उंगलियां सूज जाती हैं। इसे ‘चिल ब्लेज’ कहा जाताहै।
सर्दी का मौसम उन लोगों के लिए भी कष्टदायी हो सकता है जिन्हें पहले से कोई त्वचा रोग है क्योंकि इस मौसम में ठंड के कारण रोग बढ़ जाता है। उदाहरण के लिए एडोपिक एक्जिमा, ग्रे रोग फैल सकता है। इसके अलावा इस मौसम में ‘सोसाइसिस डर्मेटाइटिस’ रोग का प्रभाव ग्रामीण इलाकों में अधिक देखने को मिलता है। इस रोग में रोगी के पूरे शरीर पर पपड़ी पड़ जाती है और खुजली होती रहती है।
त्वचा में खुजली और रूखेपन से बचने के लिए बाजार में उपलब्ध कोल्ड क्रीम का इस्तेमाल किया जा सकता है लेकिन जहां तक संभव हो, नारियल तेल का ही इस्तेमाल करना चिहए। सर्दी में घर पहुंचने के तुरंत बाद ही कपड़े नहीं बदलने चाहिए। इससे शरीर के तापमान में अचानक परिवर्तन आ जाता है और खुजली शुरू हो सकती है।
धूप सेंकते वक्त सिर पर कपड़ा रख लेना चाहिए और इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि सूर्य की सीधी रोशनी त्वचा पर न पड़े। हीटर या ब्लोअर का प्रयोग कम से कम करें। तेल या क्रीम का प्रयोग नहाने के तुरंत बाद यानी नम त्वचा में करना चाहिए। अधिक देर तक आग के पास न बैठें। फटी एड़ी से बचने के लिए रात में गर्म पानी में थोड़ा खाने वाला सोडा मिलाकर उस पानी में पैर डुबाकर कुछ देर रखें। फिर साफ कपड़े से पैरों को अच्छी तरह से पोंछकर सरसों का तेल या क्रीम लगा लें।