कराची, 11 दिसंबर (भाषा) पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (पीसीबी) अगर चैंपियंस ट्रॉफी के आयोजन को लेकर चल रहे गतिरोध के कारण अगले साल फरवरी मार्च में होने वाली इस 50 ओवर की प्रतियोगिता से हटने का फैसला करता है तो उसको राजस्व के भारी नुकसान के अलावा मुकदमों का भी सामना कर पड़ सकता है और वह अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से अलग-थलग भी पड़ सकता है।
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) की प्रतियोगिताओं के आयोजन से जुड़े एक वरिष्ठ क्रिकेट प्रशासक ने बुधवार को पीटीआई को बताया कि अगर आईसीसी और भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) हाइब्रिड मॉडल को पूरी तरह से स्वीकार करने से इनकार करते हैं तो पीसीबी के लिए टूर्नामेंट से हटने का फैसला करना आसान नहीं होगा।
इस अधिकारी ने कहा,‘‘ पाकिस्तान ने न केवल आईसीसी के साथ मेजबानी से जुड़े समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, बल्कि इस प्रतियोगिता में भाग लेने वाले अन्य सभी देशों की तरह उसने आईसीसी के साथ सदस्यों की अनिवार्य भागीदारी से संबंधित समझौते (एमपीए) पर भी हस्ताक्षर किए हैं। ’’
उन्होंने कहा,‘‘आईसीसी की प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए एमपीए पर हस्ताक्षर करने के बाद ही कोई सदस्य देश आईसीसी प्रतियोगिताओं से होने वाली कमाई का हिस्सा पाने का हकदार होता है।’’
अधिकारी में कहा,‘‘सबसे महत्वपूर्ण बात किया है कि आईसीसी ने अपनी सभी प्रतियोगिताओं के लिए प्रसारक से समझौता किया है जिसमें उसने गारंटी दी है कि चैंपियंस ट्राफी सहित आईसीसी की प्रतियोगिताओं में उसके सभी सदस्य देश भाग लेंगे।’’
आईसीसी पिछले सप्ताह चैंपियंस ट्रॉफी का आयोजन हाइब्रिड मॉडल से करवाने पर सहमति हासिल करने में सफल रहा था। इसके अनुसार भारत अपने मैच दुबई में खेलेगा। इसके अलावा आईसीसी की 2027 तक होने वाली प्रतियोगिताओं में यह व्यवस्था बरकरार रहेगी। इसकी हालांकि अभी तक औपचारिक घोषणा नहीं की गई है।
अगर यह समझौता हो जाता है तो इसका मतलब होगा कि पाकिस्तान 2027 तक होने वाली आईसीसी प्रतियोगिताओं के लिए भारत का दौरा करने के लिए बाध्य नहीं होगा।
प्रशासक ने कहा कि अगर पाकिस्तान चैंपियंस ट्रॉफी से हटता है तो आईसीसी और यहां तक कि आईसीसी कार्यकारी बोर्ड में शामिल अन्य 16 सदस्य देश भी उसके खिलाफ मुकदमा कर सकते हैं। प्रसारक भी यह रास्ता अपना सकता है क्योंकि पाकिस्तान के बाहर हो जाने से सभी हितधारकों को नुकसान होगा।
उन्होंने इसके साथ यह भी खुलासा किया कि पीसीबी को कार्यकारी बोर्ड के अन्य सदस्यों से ठोस समर्थन नहीं मिला।