आभूषण-सौंदर्य के साथ सेहत भी

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नारी का आभूषण प्रेम जग जाहिर है। आभूषण सौंदर्य में चार चांद तो लगाते ही हैं, ये स्वास्थ्य की दृष्टि से भी उत्तम हैं। ये एक्यूप्रेशर का कार्य करते हुए शरीर को संतुलित रखते हैं और बीमारियों से रक्षा करते हैं।
विभिन्न आभूषण स्वास्थ्य पर किस तरह असर डालते हैं उनका जरा जायज़ा लें।
बिंदी :- यह भी आभूषण की श्रेणी में आती है। आजकल की डिजाइनर बिंदी के तो क्या कहने। हर रेंज में उपलब्ध ये बिंदियां टीवी सीरियल्स में वैंप के चेहरे पर अजीबो-गरीब डिजाइनों में सजती हैं। उसे एकदम से एक्सक्लूसिव लुक देती हैं।
पारंपरिक भारतीय नारी के माथे पर लगी लाल कुमकुम की बिंदी उसे ख़ास गरिमा प्रदान करती है। इसे लगाने से मन एकाग्र होता है।
गले का हार, मंगलसूत्रा :- इनसे गर्दन के पीछे पड़ने वाला प्रेशर रीढ़ की हड्डी को दर्द से बचाता है। इससे आवाज भी मधुर होती है। स्पांडिलाइटिस के चांस कम होते हैं। मंगलसूत्रा सुहाग चिन्ह होता है। इससे नारी की सुंदरता निखरती है। गले की शोभा बढ़ती है।
हार कई प्रकार के होते हैं जैसे लंबे रानीहार, मटरमाला, फूलमाला, ठुस्सी, गुलुबंद, बजरबट्टी, लॉकेट नैकलेस आदि। हार पीतल और गिलट के भी होते हैं और चांदी, कुंदन, सोने, हीरे और विभिन्न प्रकार के स्टोन्स, पन्ना, पुखराज, रूबी, टोंपाज नीलम आदि के भी।
कर्ण आभूषण :- कहते हैं कानों में भारी झुमके, टॉप्स आदि पहनने से स्त्रियों को हर्निया, जीभ, आंख व पेट संबंधी बीमारियां कम होती हैं। बीच में लंबे झुमकों का फैशन कुछ कम हो गया था लेकिन अब फिर पूर्व की भांति खूब लंबे-लंबे लटकन और तरह तरह के डिजाइन के हल्के भारी इयररिंग्स चल पड़े हैं।
कान के बाह्य भाग में छेद करवा के बालियां पहनने का भी खूब फैशन है। इसमें पुरूष भी पीछे नहीं। राजस्थान में पुराने जमाने में स्त्रा पुरूष कान के ऊपरी भाग में छोटी-छोटी बालियां पहनते थे। वही फैशन दुबारा लौट आया है।
इयरिंग्स सेट के साथ भी होते हैं यानी गले का हार, अंगूठी, चूड़ियां सभी के साथ मैच करते हुए और बग़ैर सेट के भी मिलते हैं जिन्हें आप इच्छानुसार मैच करके पहन सकते हैं। ये मोती और विभिन्न रत्नों के अलावा सोने, चांदी, गिलट के हो सकते हैं। जे़रोकिन और हैदराबादी मोती के इयररिंग्स काफी डिमांड में रहते हैं।
लौंग और नथ :- नाक में छेद कर पहने जाने वाले ये आभूषण नाक के रोगों से बचाव करते हैं। घ्राण शक्ति को बढ़ाते हैं। साथ ही गले के लिये भी लाभदायक हैं। इनसे गले में खराश जुकाम होने की संभावना कम हो जाती है। फेफड़ों में शुद्ध वायु का संचार होता है। नाक में हीरे की कणी जब अपनी छटा बिखेरती है, नारी सौंदर्य दैदीत्यमान हो उठता है। दुल्हन का श्रृंगार नथ बिना अधूरा है।
आधुनिक बालायें नाक में छोटी सी नथ पहनकर अपने व्यक्तित्व को इम्प्रेसिव बनाती हैं और सौंदर्य को  नये आयाम देती हैं।
अंगूठी :- आमिर खान एक विज्ञापन में एक शख्स को अंगूठी की दुकान कहता है, कारण उसका अंगुलियों में ढेर सारी अंगूठियां पहनना है। आज आप ऐसी चलती फिरती अंगूठी की दुकानें कई जगह देख सकते हैं।
हीरे की अंगूठी का आज युवतियों में क्रेज है। ये दस हज़ार से ऊपर लाखों करोड़ों की रेंज तक में हो सकती हैं। हीरा है सदा के लिये, यह एड आपको कई जगह टीवी, अखबार मेग्जीन और पोस्टरों पर दिखता है। यह सोने की तरह रीसेल वैल्यू रखता है यानी जब भी आप बेचना चाहें, बेच सकते हैं। जिसमें ज्यादा पैसा भी नहीं कटता है, हां हीरा असली है, यह देखना आपका काम है। असली हीरा ही बिकेगा। आप उसे गारंटी के साथ खरीदें और बिल संभाल कर रखें। आज मिडिल क्लास में भी हीरा बहुत पापुलर है। सगाई की अंगूठी लड़का लड़की दोनों हीरे की ही पसंद करते हैं।
यह आभूषण मानसिक विकारों, सीने के दर्द और बार-बार होने वाली घबराहट से निज़ात दिलाता है। हथेलियों के सही पॉइंट पर दबाव देकर रक्त संचार सही रखता है।
टीका :- यह माथे पर लगाया जाने वाला आभूषण है जिसे चेन लगे हुक द्वारा बालों में फंसाकर टिकाया जाता है। बीच में गायब यह फैशन फिर खूब चल पड़ा है। शादी ब्याह में शरीक होने पर औरतें टीका लगाती हैं। दुल्हन के लिये टीका आवश्यक है वर्ना श्रृंगार अधूरा लगेगा। हर समय टीका धारण करना सुविधाजनक न होने के कारण विशेष अवसरों पर ही इसे लगाया जाता है।
आभूषण विशेषज्ञों के अनुसार इससे दिमाग में एलर्टनेस आती है और दिमाग को गति मिलती है।
कंगन, चूड़ी, ब्रेसलेट :- ये आभूषण हाथों की शोभा बढ़ाते हैं। कंगन में हज़ार किस्म के डिजाइन वैरायटी देखने को मिलेंगी। ये भी सुहाग चिन्ह हैं। विधवाएं केवल सोने की चूड़ियां ही पहनती हैं।
फिरोज़ाबाद में बनने वाली कांच की रंग बिरंगी तरह-तरह के डिजाइन वाली चूड़ियां आंखों को लुभावनी लगती है। हर सुंदर चीज़ की तरह मन को प्रफुल्लता से भर देती हैं।
ब्रेसलेट पहनने से ब्लडप्रेशर बहरापन, दांत दर्द, स्मरण शक्ति तथा वाणी दोष की शिकायत नहीं होती, ऐसा माना जाता है।
बाजूबंद :- पहले इसे ग्रामीण स्त्रियां और बनजारनें ही बाजू में पहना करती थीं। अब यह आधुनिकाओं की बाहों की शोभा भी बन गया है। इससे ब्लडप्रेशर नॉर्मल रहता है। साथ ही मस्तिष्क तनावमुक्त रहता है। कंधे का दर्द नहीं सताता, ऐसा माना जाता है।
तगड़ी या करधनी :- ये गहने नारी कटि पर पहनती हैं। गांव की औरतें चांदी या गिलट की करधनी धारण करती हैं, अमीर औरतें सोने और हीरे या अन्य महंगे रत्नों से जड़ित। ये हल्की भारी हर तरह के वजन की हो सकती हैं। इससे पेट बेढब नहीं होता और कमर की सुडौलता बरकरार रहती है। मासिक धर्म, पाचन क्रिया में अनियमितता नहीं होती। कमर दर्द की शिकायत नहीं होती।
पायल, बिछुआ :- पायल पैरों में पहने जाना वाला आभूषण है। इससे गठिया की शिकायत नहीं होती। एड़ी में दर्द नहीं रहता और पैरों में सूजन नहीं आती। टखने सूज कर भारी नहीं होते। मासिक धर्म को नियमित रखने में भी पाजेब सहायक होती हैं। ये ज्यादातर चांदी की ही होती हैं लेकिन अब ये नगों वाली भी पसंद की जाने लगी हैं। अभिजात्य वर्ग में सोने की पाजेब का भी चलन है। पहले राजे रजवाड़े की औरतें ही पैर में सोना पहन सकती थी। राजे रजवाड़ों के खत्म होने के साथ ऐसे नियम भी खत्म हो गए।
बिछुआ पैरों की अंगुली में पहना जाता है। इससे पैर दर्द नहीं होता। रक्त संचार सुचारू रहता है। ये भी सुहागचिन्ह हैं लेकिन आजकल कुंआरी लड़कियां भी शौकिया पहन लेती हैं। ये भी ज्यादातर चांदी के ही होते हैं। आजकल कई डिजाइनों में विभिन्न प्रकार के रंगबिरंगे नगों से जड़े बिछुए बनते हैं। सोने से लेकर हीरे जड़े तक ज्वेलर्स के यहां देखे जा सकते हैं।
एक पारंपरिक हिन्दू नारी की छवि मुकम्मल बनाते ये आभूषण करोड़ों का बिज़नेस कर रहे हैं। ये न केवल हमारे सौंदर्य बोध के प्रतीक हैं वरन शरीर और मन को स्वस्थ रखने में भी कई तरह से सहायक हैं। दवाइयों की बचत करते ये नेचरोथेरेपी का काम करते हैं।
बस ध्यान देने वाली बात यह है कि इन्हें पहनकर आप असुविधा महसूस न करें। कहीं कोई अंगूठी या बिछुआ या और कोई गहना इतना भी टाइट न हो कि आपका रक्तसंचरण रोक दे क्योंकि हर फायदे के साथ नुकसान की संभावना नकारी नहीं जा सकती, इसलिए जरूरत है थोड़ी सावधानी की।

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