आईएमएफ के अनुसार वर्ष 2024 में 3,937.011 बिलियन डॉलर की अनुमानित जीडीपी के साथ भारत दुनिया की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। यहां की दो तिहाई आबादी आज भी ग्रामीण आबादी ही है।वर्ल्डोमीटर द्वारा संयुक्त राष्ट्र के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार 27 नवंबर 2024 तक भारत की वर्तमान जनसंख्या 1,456,190,641 बताई गई है। जीवन प्रत्याशा 72.24 वर्ष और प्रति हजार जीवित जन्मों पर शिशु मृत्यु दर 22.6 है।
इन सब आंकड़ों के बीच भारतीय गांव आजकल शहरी जीवन का अनुसरण कर रहे हैं। कृषि प्रधान कहलाने वाला गांवों का देश भारत कृषि और पशुपालन से मुंह मोड़ने लगा है। हाल ही में 21 नवंबर 2024 को माननीय सुप्रीम कोर्ट में दाखिल उच्च स्तरीय समिति की अंतरिम रिपोर्ट में 2018-19 के राष्ट्रीय सर्वेक्षण का हवाला देते हुए कृषि परिवारों की औसत आय केवल 10,218 रूपए बताई गई है । यह बहुत ही गंभीर और संवेदनशील है कि घटती आय ने किसानों के सिर पर कर्ज का बड़ा बोझ लाद दिया और पिछले तीस सालों में चार लाख से अधिक किसानों, खेतीहर मजदूरों ने आत्महत्या कर ली।
समिति ने कर्ज माफी और एम एस पी को कानूनी मान्यता देने की भी सिफारिश की है क्योंकि खेती से किसान रोज 27 रूपए ही कमा रहा है। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज छोटे-सीमांत किसान और कृषि मजदूर आर्थिक संकट से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। भारतीय ग्रामीण परिवारों की बचत आज घटी है और खर्च और कर्ज बढ़ा है। ग्रामीण पुरूष ही नहीं महिलाएं भी कर्ज लेने में आगे हैं। आंकड़े बताते हैं कि ग्रामीण परिवारों के मासिक खर्च में दस साल में 164 प्रतिशत और शहरी परिवारों के खर्च में 146 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। आज ग्रामीण भी शहरों के लोगों की भांति ईएमआई पर सामान खरीदते हैं और स्वास्थ्य बीमा पर भी खर्च में भी आमूलचूल बढ़ोत्तरी हुई है।
आज ग्रामीण परिवारों के प्रति व्यक्ति मासिक खर्च में काफी वृद्धि हुई है। आंकड़े बताते हैं कि आज गांवों में प्रति एक लाख लोगों में 18,714 लोग ऐसे हैं, जिन्होंने कोई न कोई कर्ज लिया है जबकि शहरों में एक लाख में 17,442 लोग कर्जदार हैं। सांख्यिकी मंत्रालय की व्यापक वार्षिक माड्यूलर सर्वेक्षण (कैम्स) रिपोर्ट के मुताबिक, 2022-23 में देश में प्रति एक लाख लोगों पर 18,322 लोग कर्जदार हैं।