अनुशासन से जीवन सुधारें

0
20150327221922-success-winning-inspirational

हमारी विडम्बना है कि देश के आम से आम व्यक्ति से लेकर, खास से खास व्यक्ति तक, सब अपना सारा का सारा दारोमदार सरकार के कंधे पर रख देते हैं। उसकी सबसे पहली शिकायत- सरकार नौकरी नहीं देती। दूसरी शिकायत- सरकार स्वास्थ्य सुविधा नहीं देती। तीसरी शिकायत- सरकार जनवितरण प्रणाली को कारगर करने में कामयाब नहीं है। चौथी शिकायत- सरकार जरूरतमंदों की आवास नहीं दे पा रही है। पांचवी शिकायत- बच्चों की शिक्षा-दीक्षा में सरकार कुछ नहीं कर पा रही है। छठवीं शिकायत- सरकार आम व्यक्ति को सुरक्षा नही ंदे पा रही है। इन कुछ मुद्दों को लेकर हम विश्लेषणात्मक अध्ययन करते हैं।
सरकार कहां से नौकरी देगी? जनसंख्या अनियंत्रित हो गई है। परिवार नियोजन पूरी तरह से कारगर नहीं हो पा रहा है। जो सरकारी नौकरियां हैं, उनमें भ्रष्टतंत्र की छाप नजर आती है। अगर आम व्यक्ति पहले दिन ही यह कह देता कि पैसा-वैसा नहीं, सीधे नौकरी दो, तो बात इतनी नहीं बिगड़ती। आम व्यक्ति ने स्वार्थ साधने के लिए बाबुओं की मुट्ठी गरम की। आम आदमी ही रिश्वतखोरी का सबसे बड़ा शिकार है। अब भी ज्यादा कुछ नहीं बिगड़ा, अधिकारियों व बाबुओं की बात न मानकर बिजिलेंस को शिकायत करें। बहुत संख्या में ऐसा होगा तो सरकारी महकमों में ईमानदारी आएगी। और एक कटु सत्य तो यह है कि इतनी बड़ी संख्या में बेरोजगारों के लिए सरकारी नौकरियों में पद खाली नहीं है। आम व्यक्ति पढ़-लिखकर, लोन लेकर, परिजनों का सहयोग लेकर अपना व्यवसाय, संस्थान, स्वरोजगार की स्थापना करे। खुद तो पैसे कमाये ही, दूसरों को भी नौकरी दे। स्वास्थ्य को लेकर भी आम आदमी सरकार से खफा है। लेकिन एक बात पर विचार करें कि सरकारी अस्पतालों को किसने बिगाड़ा? जनमानस ने ही तो अपने मन में सरकारी अस्पताल के प्रति विश्वास को तोड़ा। जब निजी अस्पताल खुलने लगे, लोग ठीक होने के लिए वहां पहुंचने लगे। ऊंचे-ऊंचे विज्ञापनों की ओर भागने लगे। व्यक्ति- खासकर पढ़ा-लिखा व्यक्ति अपने साथियों को साथ लेकर सरकारी अस्पतालों में हाजिरी लगाएगा तो एक-दो दिन में तो नहीं, एक-दो महीनों में सरकारी अस्पताल सुधरकर ही रहेगे। लापरवाह की आवाज बहुत ऊंची है, मगर अधिकार रखने वाले की आवाज उससे भी सौ गुना ज्यादाहोती है। फिर डॉक्टर भी बैठेंगे, दवाइयां भी बटेंगी,  आऊटडोर और इनडोर- दोनों में अच्छी चिकित्सा होगी। जब आम व्यक्ति हावी हो जाएगा, तो अस्पताल वाले खुद-ब-खुद सरेंडर हो जाएंगे।
जनवितरण प्रणाली की दुकानों में इसलिए बहुत ज्यादा अनियमितता होती है कि समाज के हर वर्ग में, हर व्यक्ति में जागृति नहीं है। जो चालाक  होते हैं, धड़ल्ले से अपना सामान निकाल लेते हैं। दुकान मालिक को धीरे से कुछ अधिक पैसे पकड़ाकर और भी माल बाहर करवा लेते हैं। जो सीधे-सादे लोग होते हैं, वे अपने कार्ड व झोले लेकर रोज चक्कर काटते हैं। मगर कभी कुछ मिलता है, कभी कुछ नहीं। समाज के परमार्थिक समझदार लोगों को सामने आने की जरूरत है। सरकार के पास बड़े पैमाने में जनजागरण के लिए क्षमताएं नहीं है, इसलिए वार्ड व क्षेत्र बार समाज सेवकों को घर-घर जाकर लोगों में अलख जगाना होगा। उन्हें जागृत करना होगा। उन्हें उनके अधिकारों से अवगत कराना होगा। फिर तंत्र से निपटना आसान हो जाएगा।
आवास का सपना, आज का सबसे बड़ा सपना है। मगर याद रखना है कि ईमानदारी की कमाई से घर बनवाना आजकल मुश्किल हो गया है। जीवन भर की कमाई इकट्ठी कर एक मामूली सा मकान बना लेना बहुत बड़ी चुनौती हो जाती है। मगर जो ऊंचे-ऊंचे मकान, डुप्लेक्स आदि अंधाधुंध बन रहे हैं इनके पीछे किसी माफिया का हाथ होता है, सूदखोर,   सटोरियों, जुआरियों आदि का हाथ होता है। किसी रिश्वतखोर का हाथ होता है। इसलिए आम व्यक्ति को ऊंचे-ऊंचे महलों का दिवास्वप्न नहीं देखना चाहिए, ईश्वर ने जितना दिया, उससे संतुष्ट रहना चाहिए। सरकार के लिए अरबों लोगों के लिए आवास की व्यवस्था की स्थिति कम से कम फिलहाल नहीं है। पढ़े-लिखे लोग ही सरकारी शिक्षा को प्रभावित कर सकते हैं। अगर पढ़े-लिखे आमजनों में जागृति आ जाए तो हमारी सरकारी शिक्षा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की हो जायेगी। ये निजी स्कूल वाले शोषक सिमट जाएंगे। हमारा आम व्यक्ति कमजोर है। एक मंच पर आकर सोचें।
सरकार द्वारा यह संभव नहीं कि एक अरब लोगों के लिए एक अरब बॉडीगार्ड तैनात करें। आजकल हर व्यक्ति को सुरक्षा चाहिए। इसीलिए अपनी सुरक्षा खुद कीजिए। अपने जीवन को लापरवाही से न जीकर, अनुशासन के साथ जिएं। जहां अनुशासन रहेगा, वहां सावधानी रहेगी इस तरह हमारे इर्दगिर्द एक सुरक्षा कवच बन जाएगा। अपनी सभी इन्द्रियां खोलकर घर-बाहर हर जगह हम सरकार के साथ सफल तालमेल बना सकते हैं। 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *