सर्दी में भोजन भाए, आलस सताए

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सर्दी का मौसम आते ही तापमान, शरीर, खानपान एवं दैनिक क्रियाकलाप में बदलाव आ जाता है। दिन छोटा एवं रातें बड़ी हो जाती हैं। ठंड सताने लगती है। गर्म कपड़े एवं धूप मन को भाने लगते हैं। मन डटकर खाने को करता है और तन को आलस घेर लेता है।
सर्दी में यदि इस बदलाव के अनुरूप मनमर्जी करेंगे तो लाभ मिलने की बजाय नुकसान हो सकता है अतएव इससे बचें। मनमर्जी न करें। सेहत को बिगाड़ने की अपेक्षा बचाने का विवेकपूर्ण निर्णय लें एवं सेहत बनाने के उपाय करें।
सर्दी में कमरे के भीतर एवं बाहर के तापमान में बहुत अंतर होता है, अतएव तेज ठंड की स्थिति में दिन हो या रात, गर्म कपडे़ पहन कर एवं सुरक्षा उपाय कर बाहर निकलें।
बच्चे, वृद्ध, रोगी हृदय, गठिया, हड्डी, दमा, एवं शुगर के रोगी तेज ठंड में बाहर निकलने से बचें। उपयुक्त उपाय कर बाहर निकलें।
शरीर में गर्मी लाने वाले गर्म पेय पदार्थ पिएं। अदरक, जड़ी बूटी या औषधि युक्त पेय या चाय पिएं। मक्खन निकला, हल्दी मिला गर्म मीठा दूध पिएं। ठंडा पेय या ठंडी चीजें उपयोग नहीं करें। नाश्ता पूर्ण पौष्टिक हो किंतु भारी कदापि न दो। तिल, मूंगफली, चना, गुड़, दलिया, परांठा आदि उपयुक्त मात्रा में चबा चबाकर खाएं।
भोजन, ताजा, सादा, पौष्टिक एवं गर्म हो और सभी स्वादों का समावेश हो। स्वाद लें किंतु उसके वशीभूत होकर अधिक न खाएं।
भोजन गरिष्ठ व तला हुआ न हो। शक्कर, घी, नमक, आदि की मात्रा ज्यादा कदापि न हो। भोजन सेहत बिगाड़ने वाला न हो।
दिन में सोने से बचें, रात को सात-आठ बजे खाना खाकर सो जाएं। कमरे में सिगड़ी, हीटर न जलाएं। नींद भरपूर आए, ऐसा उपाय करें।
व्यायाम बारहमासी काम आता है। अतएव पदयात्रा, साइकिल चालन, या अन्य शारीरिक व्यायाम कर शरीर चुस्त-दुरूस्त रखें। इससे भोजन तन को लगेगा और पूर्ण पचेगा एवं आलस नहीं घेरेगा।
ठंड के मौसम में शारीरिक सफाई बहुत मायने रखती है अतएव गुनगुने पानी में नहाएं। शरीर की भली प्रकार से सफाई करें।
बाहर ठंड होने पर सांस नली सिकुड़ जाती है जिससे अस्थमा की तकलीफ बढ़ जाती है।
अधिक ठंड पड़ने पर शरीर का ताप बनाए रखने से बाहर की त्वचा सिकुड़ जाती है जिससे रक्त प्रवाह बढ़ने से बीपी एवं हृदय रोग बढ़ जाता है।
बच्चे, बूढ़े एवं रोगी बाहर ठंड में निकलते हैं तो उन्हें ठंड लगने से उनका शरीर अकड़ जाता है या नीला, काला पड़ने लगता है।
ठंड में मांसपेशियों के सिकुड़ने से गठिया, जोड़ों में दर्द एवं हड्डी की परेशानी बढ़ जाती है।
सांस से सदैव गर्म वाष्प निकलते रहने के कारण पानी की जरूरत बनी रहती है किंतु गर्मी की तुलना में कुछ कम पानी से काम चल जाता है।
ठंडी चीजें एवं ठंडे पेय पीने से पाचनतंत्रा गड़बड़ा जाता है। ये पेट के भीतर के ताप को बिगाड़ देते हैं।
ग्रीष्म एवं वर्षाकाल के टूट फूट की मरम्मत एवं कमी पूर्ति के लिए सर्दी में पौष्टिक नाश्ता एवं भोजन की जरूरत पड़ती है। इसलिए नाश्ता पौष्टिक लें।
व्यायाम करने से शरीर चंचल रहता है। रक्त प्रवाह बना रहता है। आलस नहीं घेरता। भोजन पचता है एवं पौष्टिक तत्व शरीर के अंगां को मिलते हैं। शारीरिक क्रियाएं सही रहती हैं एवं नींद अच्छी आती है।
अच्छी नींद से दिल-दिमाग एवं पाचन तंत्रा ठीक रहता है। शरीर की मरम्मत होती है और भूख अच्छी लगती है

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