नयी दिल्ली, विदेश व्यापार महानिदेशक (डीजीएफटी) संतोष कुमार सारंगी ने कहा कि ऊंची ब्याज दरें निर्यातक समुदाय के लिए एक बड़ी बाधा हैं और वाणिज्य मंत्रालय इस मोर्चे पर उनकी मदद के लिए वित्त मंत्रालय के साथ मिलकर काम कर रहा है।
सारंगी ने कहा कि वाणिज्य मंत्रालय को वित्त मंत्रालय को ब्याज समानीकरण योजना (आईईएस) की प्रासंगिकता तथा विनिर्माण प्रतिस्पर्धा को बनाए रखने में उसके योगदान को समझाने में ‘कठिनाई’ आ रही है।
उन्होंने कहा कि ऐसे कई अध्ययन हैं जिनसे पता चलता है कि वित्तीय संस्थानों द्वारा बहुत ज्यादा गारंटी मांगी जाती है, जिसकी वजह से सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों (एमएसएमई) के लिए संस्थागत वित्त तक पहुंच में दिक्कत आती है और यह उन्हें निर्यात बाजार में आने से रोकती है।
सारंगी ने कहा, ‘‘ इसलिए हम एमएसएमई के लिए बिना किसी गारंटी या सब्सिडी वाली व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए वित्त मंत्रालय के साथ काम कर रहे हैं।’’
विदेश व्यापार महानिदेशक ने भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता सम्मेलन में यह बात कही।
उन्होंने कहा कि भारत में अपने समकक्ष देशों की तुलना में ब्याज दरें ऊंची हैं।
भारत में रेपो दर 6.5 प्रतिशत है, जबकि कई दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में यह 2.5 से 3.5 प्रतिशत के बीच है।
उन्होंने कहा, ‘‘ इसलिए यह हमारे निर्यातकों, खासकर एमएसएमई के लिए निर्यात के मामले में प्रतिस्पर्धी बनने की राह में सबसे बड़ी बाधा है।’’
उन्होंने कहा कि आईईएस ‘‘ हमारे निर्यातकों के सामने आने वाली’’ बेहद ऊंची ब्याज दरों के प्रभाव को आंशिक रूप से बेअसर करने में सक्षम है।
फिलहाल यह योजना 31 दिसंबर तक लागू है।
सारंगी ने कहा, ‘‘ हमें उम्मीद है कि वित्त मंत्रालय के साथ हमारी बातचीत उन्हें यह समझाने में सफल होगी कि यह वास्तव में एमएसएमई के लिए एक बड़ा हस्तक्षेप है। इससे उन्हें न केवल बाजार में बने रहने में मदद मिलेगी, बल्कि यह सुनिश्चित होगा कि वैश्विक बाजार के साथ उनका एकीकरण कहीं बेहतर तथा मजबूत होगा।’’
निर्यातकों को निर्यात से पहले और बाद में रुपये में निर्यात ऋण के लिए ब्याज समानीकरण योजना के तहत सब्सिडी मिलती है।
यह योजना एक अप्रैल, 2015 को शुरू की गई थी और पहले इसे 31 मार्च, 2020 तक पांच साल के लिए लागू किया गया था। हालांकि इसके बाद भी इसे जारी रखा गया।