नयी दिल्ली, 25 दिसंबर (भाषा) वैश्विक अनिश्चितताओं तथा चुनौतियों के बावजूद भारत में इस साल जनवरी से अब तक औसतन मासिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) 4.5 अरब डॉलर से अधिक रहा है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नीत सरकार के देश में निवेशक अनुकूल उपायों को बढ़ावा देने से 2025 में भी यह रुझान बरकरार रहने की उम्मीद है।
निवेशक-अनुकूल नीतियां, निवेश पर मजबूत ‘रिटर्न’, कुशल कार्यबल, कम अनुपालन बोझ, छोटे उद्योग-संबंधी अपराधों को दूर करना, सुव्यवस्थित अनुमोदन तथा मंजूरी के लिए राष्ट्रीय एकल खिड़की प्रणाली और उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजनाएं विदेशी निवेशकों को भारत की ओर आकर्षित करने के लिए किए गए प्रमुख उपायों में से हैं।
इसके अलावा, यह सुनिश्चित करने के लिए कि भारत एक आकर्षक तथा निवेशक-अनुकूल गंतव्य बना रहे, सरकार निरंतर आधार पर एफडीआई नीति की समीक्षा करती है। शीर्ष उद्योग मंडलों, संघों तथा उद्योगों के प्रतिनिधियों सहित हितधारकों के साथ गहन परामर्श के बाद समय-समय पर सरकार इसमें बदलाव करती है।
इस साल जनवरी-सितंबर की अवधि में देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) करीब 42 प्रतिशत बढ़कर 42.13 अरब डॉलर हो गया। एक साल पहले इसी अवधि में एफडीआई प्रवाह 29.73 अरब डॉलर रहा था।
एफडीआई प्रवाह अप्रैल-सितंबर 2024-25 में 45 प्रतिशत बढ़कर 29.79 अरब अमरीकी डॉलर हो गया, जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में यह 20.48 अरब अमरीकी डॉलर था। 2023-24 में कुल एफडीआई 71.28 अरब अमरीकी डॉलर रहा।
उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (डीपीआईआईटी) में सचिव अमरदीप सिंह भाटिया ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘ प्रवृत्ति के अनुसार देश 2025 में भी अच्छा एफडीआई आकर्षित करने का सिलसिला जारी रखेगा। ’’
उन्होंने कहा कि भारत विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाकर, नियामक बाधाओं को हटाकर, बुनियादी ढांचे का विकास कर और कारोबारी माहौल में सुधार कर वैश्विक निवेशकों के लिए अपनी अर्थव्यवस्था को खोलना जारी रख रहा है।
बीते दस साल (2014-2024) के दौरान कुल 991 अरब अमेरिकी डॉलर का एफडीआई प्रवाह दर्ज किया गया, जिसमें से 67 प्रतिशत (667 अरब अमेरिकी डॉलर) हासिल हुआ। विनिर्माण क्षेत्र में एफडीआई इक्विटी प्रवाह में 69 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो 2004-2014 में 98 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2014-2024 में 165 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया।
इसी तरह के विचार साझा करते हुए विशेषज्ञों ने कहा कि वैश्विक चुनौतियों के बावजूद भारत अब भी वैश्विक कंपनियों के लिए पसंदीदा निवेश गंतव्य है।
हालांकि, उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार को और अधिक कदम उठाने चाहिए जैसे कि व्यापार करने में सुगमता को और बेहतर बनाना, औषधि, निजी सुरक्षा एजेंसियों, प्रसारण व वृक्षारोपण जैसे क्षेत्र में क्षेत्रीय सीमाओं को उदार बनाना और प्रेस नोट 3 (2020) के तहत मानदंडों को आसान बनाना।
इस ‘प्रेस नोट’ के तहत, चीन जैसे भारत के साथ भूमि सीमा साझा करने वाले देशों से आने वाले एफडीआई आवेदनों को सभी क्षेत्रों के लिए अनिवार्य रूप से सरकारी अनुमोदन लेना होता है।
शार्दुल अमरचंद मंगलदास एंड कंपनी लिमिटेड के साझेदार रुद्र कुमार पांडे ने कहा, ‘‘ सरकार को प्रेस नोट 3 आवेदनों को संसाधित करने के लिए एक पारदर्शी प्रणाली लानी चाहिए। इसमें समयबद्ध प्रक्रिया होनी चाहिए, जिसमें ‘डीमिंग’ प्रावधान हो, क्योंकि इससे विदेशी निवेशकों का विश्वास बढ़ेगा और एफडीआई में वृद्धि होगी…।’’
पांडे ने कॉरपोरेट घरानों के बीच विवाद समाधान की सुविधा के लिए त्वरित (फास्ट-ट्रैक) अदालतें, मध्यस्थता केंद्र स्थापित करने और कॉरपोरेट को उनके विवादों को सुलझाने में मदद करने के लिए न्यायिक परिवेश बेहतर बनाने का भी आग्रह किया।
सरकारी शोध संस्थान नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, भारत को उन कंपनियों के लिए एक आकर्षक गंतव्य के रूप में देखा जा रहा है जो चीन से अपना विनिर्माण केंद्र स्थानांतरित करना चाहती हैं। यह बदलाव देश को अपनी घरेलू विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ाने का अवसर प्रदान करता है खासकर उच्च प्रौद्योगिकी उद्योगों में..।
डेलॉयट इंडिया की अर्थशास्त्री रुमकी मजूमदार ने कहा कि नियामक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने और नौकरशाही संबंधी बाधाओं को कम करने से निवेशकों का विश्वास बढ़ेगा तथा निवेश परिदृश्य सुगम बनेगा।
मजूमदार ने कहा, ‘‘ बुनियादी ढांचे के विकास खासकर लॉजिस्टिक्स और डिजिटल संपर्क पर निरंतर जोर देना भी एफडीआई वृद्धि को समर्थन देने के लिए महत्वपूर्ण है।’’
भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रवाह 2000 अप्रैल से 2024 सितंबर के बीच 1000 अरब अमेरिकी डॉलर को पार कर गया जिससे वैश्विक स्तर पर एक सुरक्षित तथा प्रमुख निवेश गंतव्य के रूप में देश की प्रतिष्ठा मजबूती से स्थापित हुई है।
डीपीआईआईटी के आंकड़ों के अनुसार, शेयर, पुनर्निवेशित आय और अन्य पूंजी सहित एफडीआई की संचयी राशि उक्त अवधि के दौरान 1,033.40 अरब अमरीकी डॉलर रही।
डीपीआईआईटी एफडीआई नीति के निर्माण के लिए जिम्मेदार है, जिसे विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 (फेमा) के तहत अधिसूचित नियमों के जरिये लागू किया जाता है। इसे आर्थिक मामलों के विभाग द्वारा प्रशासित और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा विनियमित किया जाता है।