भूबैकुण्ठ धाम बदरीनाथ के कपाट बंद होने के साथ ही मध्य हिमालय के चारों धामों की यात्रा का समापन हो गया। इस साल देशभर के 47,87,196 तीर्थ यात्री 10 मई से लेकर 17 नवम्बर तक बदरीनाथ, केदारनाथ, यमुनोत्री एवं गंगोत्री धामों की यात्रा कर पुण्य लाभ कमा
गये लेकिन पर्यावरणीय दृष्टि से अति संवेदनशील हिमालय को यह भीड़ जो नुकसान कर गयी, उक खामियाजा न केवल मध्य हिमालय के लोग अपितु हरिद्वार से लकर गंगा सागर तक के
लोगों को चरम मौसम सहित जलवयु परिर्वन के अन्य दुष्प्रभावों से भविष्य में दो चार होना पड़ेगा।
संवेदनशील हिमालय के पारितंत्र को मनुष्यों से कहीं ज्यादा वाहनों की भीड़
नुकसान पहुंचाती है और उत्तराखण्ड के चार धामों में वाहनों की भीड़ निरन्तर ब़ढती जा रही है. इस साल की यात्रा में कुल 5,40,440 वाहन सीधे और धामों के
बहुत करीब तक पहुंचे जिनके प्रदूषण ने गंगोत्री और सतोपन्थ जैसे ग्लेशियर समूहों को प्रभवित किया। चूंकि हिमालय एशिया का जलस्तंभ होने के साथ ही मौसम का नियंत्रक भी है और यह एशिया के पांच देशों से जुड़ा हुआ है, इसलिये
हिमालय की चिन्ता केवल उत्तराखण्ड तक ही सीमित नहीं है। हिमालय जैसे
संवेदनशील क्षेत्रों में यात्री वाहनों की संख्या बढ़ाने के बजाय उस पर सख्त नियमबनाने की आवश्यकता है।
लाखों वाहनों की हिमालय पर चढ़ाई
17 नवम्बर के बदरीनाथ के कपाट बंद होने के साथ ही चार धाम यात्रा के समापन तक चारों तक 5,40,440 वाहन यात्रियों को लेकर पहुंचे।
इनमें से भी सीधे बदरीनाथ और गंगोत्री पहुंचने वाले वाहनों से उत्सर्जित प्रदूषकों का सीधा असर सतोपन्थ और गंगोत्री ग्लेशियर समूहों पर पड़ना स्वाभाविक ही है। केदारनाथ पहुंचने वावाले यात्रियों की संख्या तो हर साल कीर्तिमान बना ही रही थी लेकिन इस बार केदार घाटी पहुंचने वाले यात्री वाहनों ने भी रिकार्ड तोड़ दिया। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस साल केदारनाथ यात्रा पर जाने वाले वाहनों की संख्या 1,87,590 तक पहुंच गयी जबकि पिछले यह संख्या केवल 88,236 थी।
इसी प्रकार यात्रा की समाप्ति तक 1,65,703 वाहन बदरीनथ पहुंच चुके थे। इसरो की रिपोर्ट के अनुसार यह घाटी भूस्खलन की दृष्टि से देश में सर्वाधिक
संवेदनशील है और मुख्य केन्द्रीय भ्रंश के निकट होने के कारण यह भूकम्प के मुहाने पर भी बैठी है। इसलिये इस क्षेत्र में क्षमता से अधिक मानव दबाव को बहुत जोखिमपूर्ण माना गया है।
दिखने लगा है असर हिमालय पर जहरीले धुएं का
सन् 1968 में जब पहली बार बद्रीनाथ बस पहुंची थी तो वहां तब तक लगभग
60 हजार यात्री पहुंचते थे लेकिन यह संख्या अब 13 लाख सालाना पार कर गयी है। इन यात्रियों के साथ मात्र 6 माह में लगभग 1.50 लाख से अधिक वाहन बद्रीनाथ पहुंच रहे हैं। गंगोत्री में इस बार 8,15,273 यात्री और 88,236 वाहन 3
नवम्बर तक पहुंच चुके थे। पहले ज्यादातर यात्री बसों में सफर करते थे और
औसतन एक बस 30 यात्रियों को ढो लेती थी लेकिन अब अधिकतम् 5 लोग कारें लेकर यात्रा कर रहे हैं जिस कारण वाहनों का भारी दबाव हिमालय पर बढ़ता जा रहा है जिसका विपरीत असर हिमालय के पारितंत्र पर पड़ने के साथ ही
अतिवृष्टि, बादल फटने, त्वरित बाढ़ और आसमानी बिजली गिरने जैसी आपदाओं की संख्या बढ़ने के साथ ही उनकी आवृति भी बढ़ रही है।
पहाड़ों पर कई गुना अधिक होता है वाहन प्रदूषण
विशेषज्ञों की माने तो मैदानी क्षेत्र की तुलना में पहाड़ों पर वाहनों का प्रदूषण चार गुना अधिक होता है। मैदानों में सामान्यतः वाहन तीसरे और चौथे गेयर में औसतन 60 किमी की गति से चलते हैं जबकि पहाड़ों की चढ़ाइयों पर वाहन पहले और दूसरे गेयर में औसतन 20 किमी की गति से चलते हैं। वाहन पहाड़ों पर कितनी चढ़ाई चढ़ते हैं इसका अन्दाजा इस बात से लग जाता है कि चारधाम यात्रा समुद्रतल से 300 मीटर की ऊंचाई पर स्थिति ऋषिकेश से शुरू हो कर समुद्रतल से 3042 मीटर की उंचाई पर स्थित गंगोत्री और 3133 मीटर की उंचाई पर स्थित बद्रीनाथ पहुंचते हैं। वाहनों की अत्यधिक भीड़ का सीधा असर गंगोत्री और सतोपन्थ ग्लेशियरों पर पड़ रहा है। इस तरह हिमालय पर वाहनों की भीड़ से लोकल और ग्लोबल वार्मिंग का तेज होना स्वाभाविक ही है।
वाहन हानिकारक गैसें करते हैं उत्सर्जित
वाहनों से उत्सर्जित वायु प्रदूषण गैसों और कणों का मिश्रण होता है। साइंस जनरल के फरबरी अंक में प्रकाशित एक शोध पत्र के अनुसार गैसों में नाइट्रोजन ऑक्साइड (एनओएक्स), कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और ओजोन शामिल हैं। पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) में कार्बनिक और मौलिक कार्बन, सीसा जैसे धातु और पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन शामिल होते हैं। डीजर्ल इंधन से चलने वाले वाहन सर्वाधिक ब्लैक कार्बन उत्सर्जित करते हैं। ब्लैक कार्बन एक प्रकार का कण पदार्थ (पीएम) है जो जीवाश्म ईंधन, बायोमास और अन्य कार्बनिक पदार्थों के अधूरे दहन से उत्पन्न होता है। यह सूर्य के प्रकाश को अवशोषित कर और वातावरण को गर्म करता है और जलवायु को भी प्रभावित करता है। साथ ही यह बर्फ की सतहों पर जमा होने पर बर्फ के पिघलने की गति भी बढ़ाता है। वाहनों से सबसे अधिक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित होती है जो कि जीवाश्म ईंधन के दहन से उत्पन्न एक ग्रीनहाउस गैस है। यह जलवायु परिवर्तन में योगदान देने वाली प्राथमिक गैस है।
जलवायु परिवर्तन की रफ्तार बढ़ाते हैं वाहन
कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन ग्रीनहाउस गैसें हैं जो जलवायु परिवर्तन में
योगदान करती हैं। कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन गैस एरोसोल के निर्माण और व्यवहार को प्रभावित करती है जिसके गर्म और ठंडे दोनों चरम प्रभाव हो सकते हैं। इसी तरह मीथेन वायुमंडल में रासायनिक प्रतिक्रियाओं के माध्यम से एरोसोल के निर्माण को जन्म देती है।एरोसोल बादल निर्माण और गुणों को प्रभावित कर
सकते हैं, जिससे पृथ्वी का विकिरण संतुलन प्रभावित होता है और चरम मौसम की स्थिति पैदा हो जाती है जिससे दैवी आपदाओं का खतरा बना रहता है।
इसलिए एरोसोल सांद्रता में परिवर्तन जलवायु प्रतिक्रिया तंत्र को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे ग्रीनहाउस गैसों की भूमिका और जटिल हो जाती है। अब कल्पना की जा सकती है कि वाहनों का रेला किस तरह हिमालय को नुकसान पहुंचा रहा है। यद्यपि अब वाहनों के सख्त नियमन से पार्टिकुलेट मैटर और नाइट्रोजन
ऑक्साइड उत्सर्जन में कमी आई है, लेकिन वाहनों की बढ़ती संख्या के कारण सुधार अधूरे साबित हो रहे हैं।