असाधारण रोग जो समय के साथ शरीर के विभिन्न अंगों को नुकसान पहुंचाते हैं, उनमें डायबिटिज प्रमुख है। यह एक ऐसा रोग है जिसका तत्कालिक प्रभाव अधिकांश रोगियों में देखने को नहीं मिलता और लम्बे समय तक पीड़ित व्यक्ति को इस बात का आभास भी नहीं होता कि वह इससे ग्रसित है।
किसी शारीरिक अंग जैसे गुरदे, आंख, हृदय आदि के प्रभावित होने के फलस्वरूप होने वाले लक्षण आने के पश्चात ही प्रायः इस रोग का पता चल पाता है। संक्रामक रोगों के नियंत्राण के बाद मधुमेह विश्व की महामारी के रूप में उभर कर सामने आया है। इसके भविष्य में बहुत भीषण परिणाम हो सकते हैं अगर इस पर काबू न पाया गया।
डायबिटिज एक तरह की बीमारी है जिसमें शरीर की एक ग्रंथि जिसे पेंक्रियाज कहते हैं, सही तरह से काम करना बंद कर देती है। पेंक्रियाज से अलग-अलग तरह के हारमोंस निकलते हैं जैसे कि इंसुलिन। इंसुलिन खून में से, शरीर के सभी सेल्स को चीनी या शुगर पहुंचाने में मदद करता है। इससे सभी सेल्स को ऊर्जा मिलती है।
डायबिटिज में इंसुलिन की कमी हो जाती है। इससे सभी सेल्स को शुगर मिलना बंद हो जाता है अर्थात सभी सेल्स को खाना मिलना बंद हो जाता है। यह ऊर्जा की कमी शरीर को हानि पहुंचाती है। इसके अनेक लक्षण हैं।
डायबिटिज दो प्रकार की होती है- टाइप 1 और टाइप 2।
टाइप – 1 :- यह डायबिटिज ज्यादातर 20 साल की उम्र के पहले होती है। इसके रोगी अधिकतर पतले होते हैं और इसमें पेंक्रियाज जो इंसुलिन बनाता है, नष्ट हो जाता है। इस वजह से ऐसे रोगियों को हमेशा इंसुलिन की जरूरत होती है जो उन्हें इंजेक्शन या इंसुलिन पंप द्वारा दी जाती है। डायबिटिज के ऐसे रोगी करीब 10 प्रतिशत हैं।
टाइप – 2 :- इस डायबिटिज के रोगी अधिकतर मोटे होते हैं। इन रोगियों में इंसुलिन अवरोध अथवा रूकावट होती है। सेल्स को इंसुलिन की कमी हो जाती है और वे ठीक से काम नहीं करते। यह अधिकतर 30-35 या उससे अधिक उम्र वालों को होता है। यह शुरू की अवस्था में लाइफ स्टाइल व खानपान द्वारा कंट्रोल किया जा सकता है और अधिकतर लोगों को रैग्युलर दवाई लेने की जरूरत पड़ती है।
ऐसे रोगियों को इंसुलिन देना पड़ता है या तो गोली के रूप में या इंजेक्शन द्वारा। टाइप 2 डायबिटिज कुल डायबिटिज के बीमारों में करीब 90 प्रतिशत है। इस आपाधापी के युग में टाइप 2 रोगियों की संख्या में सर्वाधिक इजाफा होने वाला है।
पिछले कुछ वर्षों से अब 30 बरस से कम आयु के लोगों में भी टाइप 2 रोगी मिलने लगे हैं। समस्या की प्रबलता घटने की बजाय बढ़ती जा रही है। यह बहुत चिन्ता का विषय है। यह एक महामारी के रूप में सामने आ सकती है जो देश के बहुमूल्य संसाधनों एवम् स्वास्थ्य सेवाओं को बुरी तरह प्रभावित करेगा।
यह एक ध्यान देने योग्य बात है कि इसके जितने रोगी प्रत्यक्ष रूप में सामने होते हैं लगभग उतने ही लोग डायबिटिज की कगार पर खड़े होते हैं जिन्हें हम प्री डायबिटिज की अवस्था कहते हैं। प्री डायबिटिज को हम आज की तारीख में डायबिटिज के घोषित मानक के तत्काल पहले की अवस्था को कहते हैं।
डायबिटिज के डायग्नोसिस के लिए :- सामान्य तौर पर किसी स्वस्थ व्यक्ति की ब्लड शुगर खाली पेट अथवा फास्टिंग जांच कराने पर 70-110 मि॰ ग्राम के दायरे में होनी चाहिए और 75 ग्राम ग्लूकोज लेने या खाना खाने के 2 घंटे बाद 70-140 मि. ग्राम के दायरे में होनी चाहिए। खाली पेट अथवा फास्टिंग का मतलब है कि आप कम से कम आठ घंटे से कुछ नहीं खा रहे हैं जिससे कि आपको किसी भी प्रकार की ऊर्जा या कैलोरी मिल सके। खाना खाने के 2 घंटे बाद की जांच को पोस्ट फास्टिंग ब्लड शुगर टेस्ट कहते हैं।
डायबिटिज होने के क्या लक्षण हैं?
अगर आप नीचे लिखे हुए लक्षणों में से कुछ भी लंबे समय तक हैं तो आपको डायबिटिज का टेस्ट अवश्य करवाना चाहिए।
ऽ अगर आपको बहुत पेशाब लगाता है।
ऽ अगर आपको बहुत प्यास लगती है।
ऽ आपको बहुत अधिक भूख लगती है।
ऽ आपका वजन अचानक से बहुत बढ़ने या घटने लगता है।
ऽ कमजोरी/थकान लगती है
ऽ स्किन या चर्म में संक्रमण है।
ऽ धुंधला दिखाई देता है।
ऽ घाव भरने में देर लगती है।
ऽ हाथ/पैर में खुजली, सनसनाहट होती है।
डायबिटिज :- किस प्रकार हमारे चिकित्सीय संसाधनों को चुनौती देगी।
डायबिटिज रोगियों में मृत्यु दर दुगनी है। हृदय आघात की संभावना दो से चार गुना अधिक है। 17-20 प्रतिशत रोगियों की मृत्यु 50 वर्ष से कम आयु में रोग होने के 20 वर्ष बाद लगभग सभी टाइप 1 रोगियों में और 60 प्रतिशत से अधिक टाइप 2 रोगियों में आंख के पर्दे (रेटिना) में खराबी आ जाती है।
पैरों में सुन्नता आने के कारण पैरों में घाव, गैंगरीन एवं पैरों के कटने की दर में वृद्धि हो जाती है। 10-20 वर्ष के बाद लगभग 30-50 प्रतिशत टाइप 1 और 20-50 प्रतिशत टाइप 2 के रोगियों में गुर्दे की खराबी आ जाती है और उन्हें डायलेसिस और गुर्दा प्रत्यारोपण की आवश्यकता पड़ने लगती है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि आने वाले समय में हमें गहन हृदय चिकित्सा केन्द्र, डायलेसिस केंद्र, नेत्रा संबंधी उपचार हेतु अच्छे केन्द्र, पैर चिकित्सा केंद्र एवं गुर्दा प्रत्यारोपण केंद्रों की जरूरत पड़ेगी। रोगियों को इलाज के लिए पैसा तो खर्चना ही पड़ेगा, साथ ही सरकार पर अच्छे हास्पिटल खोलने के लिए कितना दबाव होगा।
उच्च वसा व ऊर्जायुक्त भोजन की प्रचुरता, शहरीकरण, औद्योगीकरण व आर्थिक विकास के कारण डायबिटिज के रोगियों की निरन्तर वृद्धि हो रही है। इस समस्या को देखते हुए जन जागरण अभियान की अति आवश्यकता है। अतः आज के बच्चों व युवाओं को हमें नियमित व्यायाम, उचित भोजन चयन एवं एक स्वस्थ जीवन शैली के प्रति न केवल जागरूक करना होगा अपितु पूर्ण निगरानी करनी होगी।
इसमें कोई शक नहीं है कि समाज में चेतना अवश्य आई है और जागरूकता भी बढ़ी है परंतु इस रोग के फैलाव को रोकने के लिए और अधिक प्रयासों और जागरूकता की आवश्यकता है।
रोग्र ग्रसित होने पर क्या करें :-
जैसे ही हमें रोग ग्रसित होने का पता चले तो आवश्यकता है पूर्ण जांच की। फिर अच्छे चिकित्सक की देख रेख में रेगुलर उपचार करायें। समय-समय पर जांच कराते रहें और दवाइयों का प्रयोग चिकित्सक के कहे अनुसार रेगुलर करें और इसमें कोई कोताही न बरतें। बैलेन्स डायट, हल्का व्यायाम, सैर व स्वस्थ पारिवारिक संबंध एवम् तनाव मुक्त जीवन इस रोग को कम करने में बहुत अधिक सहायक हैं।