शास्त्रों से ले कर लोक तक, शिव के असँख्य स्वरुप दिखते हैं। दुर्दांत राक्षसों का अंत करते महायोद्धा शिव, सहजता से प्रसन्न हो कर सब कुछ दे देने वाले कृपालु भोलेनाथ शिव, छोटी छोटी बातों पर रूठ जाने वाली अर्धांगिनी को मनाते रहने वाले भोले पति शिव, माता सती की मृत्यु के बाद उनके शव को कंधे पर उठा कर पागलों की तरह चीखते-चिल्लाते विलाप करते शिव, और कभी युगों तक स्वयं को संसार और संसारिकता से दूर रह कर शांत पड़े रहते तपस्वी शिव पर इन समस्त रूपों में मुझे समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष को अपने कंठ में उतारने वाले शिव का स्वरूप सबसे अधिक प्रभावित करता है। उनका वह स्वरूप समस्त पौराणिक इतिहास का सबसे भव्य और विराट स्वरूप है, ऐसा भव्य उदाहरण समूची सृष्टि में अन्यत्रा कहीं नहीं। एक दिन शव हो जाना ही सृष्टि के प्रत्येक जीव की नियति है किन्तु मनुष्य यदि शिव की भांति संसार की रक्षा के लिए विष पीने का साहस कर ले तो उसे शिवतत्व प्राप्त होता है। उसके बाद उसकी देह का नाश भले हो जाए, उसके व्यक्तित्व का नाश नहीं होता। शिव अर्धनारीश्वर हैं, अर्थात वे माता शक्ति को अपने से अलग व्यक्ति नहीं मानते, उन्हें अपने शरीर का ही आधा हिस्सा मानते हैं। शक्ति के बिना शिव शव हैं। क्या यह स्त्रा सम्मान का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण नहीं? माता पार्वती भी उतनी ही शक्तिशाली हैं जितने स्वयं शिव हैं। वे शिव के समान ही करुणामयी हैं, और शिव के समान ही महान योद्धा भी। शिव पार्वती की रक्षा करते हैं, पार्वती शिव की रक्षा करती हैं। माता पार्वती शिव के शरीर का आधा हिस्सा हैं किन्तु इससे उनका स्वतंत्रा अस्तित्व तनिक भी प्रभावित नहीं होता। वे लोक में शक्ति की देवी के रूप में स्वतंत्रा रूप से पूजी जाती हैं। प्रत्येक शिव मंदिर के पास माता का भी मन्दिर होता है पर माता की हर पिंडी के पास शिव का मंदिर आवश्यक नहीं। स्त्रा स्वतंत्राता का सृष्टि में इससे सुन्दर उदाहरण और कहीं नहीं। शिव एक सद्गृहस्थ की भांति जीवन जीने वाले देव हैं। एक सामान्य सा उनका भी परिवार है जिसमें उनके अतिरिक्त उनकी पत्नी हैं और दो पुत्रा हैं। एक पुत्रा सदैव रूठे ही रहते हैं। नागरीय जीवन से दूर एकान्त पर्वत पर उनका परिवार संसाधन विहीन जीवन जीता है। कोई तड़क-भड़क नहीं, कोई अनावश्यक चमक नहीं। सोच कर देखिये तो प्राचीन काल से यही सामान्य भारतीय जीवन शैली रही है। इसीलिए समस्त लोक को भगवान शिव अपने से लगते हैं। शिव परिवार भारतीय लोक का आदर्श परिवार है।