न्यायाधीशों के करीबी रिश्तेदारों की नियुक्ति के खिलाफ प्रस्ताव पर विचार कर सकता है कॉलेजियम

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नयी दिल्ली, 30 दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के करीबी रिश्तेदारों की नियुक्ति के खिलाफ एक प्रस्ताव पर विचार कर सकता है। सूत्रों ने यह जानकारी दी।

बताया जाता है कि यह प्रस्ताव एक वरिष्ठ न्यायाधीश ने पेश किया है और अगर इस पर अमल किया जाता है, तो न्यायिक नियुक्तियों में अधिक समावेशिता आ सकती है और इनमें योग्यता के मुकाबले परिवार को तरजीह दिए जाने की धारणा को बदला जा सकता है।

सूत्रों के मुताबिक, उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम उच्च न्यायालय कॉलेजियम को यह निर्देश देने पर विचार कर सकता है कि वे ऐसे उम्मीदवारों की सिफारिश करने से बचें, जिनके माता-पिता या करीबी रिश्तेदार या तो मौजूदा समय में शीर्ष अदालत या उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश हैं या फिर अतीत में रह चुके हैं।

सूत्रों ने कहा कि हालांकि, इस प्रस्ताव से कुछ योग्य उम्मीदवारों से शीर्ष अदालत या उच्च न्यायालयों का न्यायाधीश बनने का मौका छिन सकता है, लेकिन यह पहली पीढ़ी के वकीलों के लिए अवसरों के द्वार खोलेगा और संवैधानिक अदालतों में विविध समुदायों का प्रतिनिधित्व बढ़ाएगा।

शीर्ष अदालत में न्यायाधीश पद के लिए नामों की सिफारिश करने वाले तीन सदस्यीय कॉलेजियम में प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत शामिल हैं।

न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति अभय एस ओका पांच सदस्यीय उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम का हिस्सा हैं, जो उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए नामों का चयन और सिफारिश करता है।

उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम ने हाल ही में उन वकीलों और न्यायिक अधिकारियों के साथ व्यक्तिगत संवाद शुरू किया है, जिनके नाम की सिफारिश उच्च न्यायालयों में पदोन्नति के लिए की गई है। यह पहल उस पारंपरिक पद्धति से अलग है, जिसके तहत बायोडाटा, लिखित आकलन और खुफिया रिपोर्ट पर विचार किया जाता है।

उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम की बैठक 22 दिसंबर को हुई थी। इसमें राजस्थान, उत्तराखंड, बंबई और इलाहाबाद के उच्च न्यायालयों में न्यायाधीश पद पर नियुक्ति के लिए केंद्र सरकार को लगभग छह नामों की सिफारिश की गई थी।

हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश शेखर कुमार यादव से जुड़े विवाद के बाद व्यक्तिगत संवाद को फिर से शुरू करने की कवायद जोर पकड़ती दिख रही है।

न्यायमूर्ति यादव ने पिछले दिनों विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के एक कार्यक्रम में विवादास्पद टिप्पणी की थी कि भारत को बहुमत की इच्छाओं के अनुसार कार्य करना चाहिए। उनकी इस टिप्पणी की बड़े पैमाने पर आलोचना हुई थी।

न्यायमूर्ति यादव इस विवाद पर अपना पक्ष रखने के लिए 17 दिसंबर को उच्च न्यायालय कॉलेजियम के सामने पेश हुए थे।

शीर्ष अदालत ने 10 दिसंबर को टिप्पणी पर आधारित खबरों का संज्ञान लिया था और इस मुद्दे पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय से रिपोर्ट तलब की थी।

एक आधिकारिक बयान में कहा गया था, “उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश शेखर कुमार यादव के भाषण पर आधारित खबरों का संज्ञान लिया है। उच्च न्यायालय से विवरण मांगा गया है और मामला विचाराधीन है।”

स्थापित प्रक्रिया के अनुसार, उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम द्वारा जिस न्यायाधीश के खिलाफ किसी विवादास्पद मुद्दे पर संबंधित उच्च न्यायालय से रिपोर्ट मांगी जाती है, उसे प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाले शीर्ष अदालत के कॉलेजियम के समक्ष अपना पक्ष रखने का अवसर दिया जाता है।

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