मुंबई, चार दिसंबर (भाषा) भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति ने बुधवार को द्विमासिक मौद्रिक नीति पर विचार-विमर्श शुरू किया। खुदरा मुद्रास्फीति के केंद्रीय बैंक के संतोषजनक स्तर से ऊपर होने के कारण प्रमुख नीतिगत दर पर यथास्थिति का अनुमान है।
आरबीआई गवर्नर शक्तिकान्त दास की अध्यक्षता वाली छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) में लिए गए निर्णय की घोषणा शुक्रवार छह दिसंबर को की जाएगी।
दास अपने मौजूदा कार्यकाल की आखिरी एमपीसी बैठक की अध्यक्षता कर रहे हैं। उनका कार्यकाल 10 दिसंबर को खत्म हो रहा है।
सरकार ने रिजर्व बैंक को खुदरा मुद्रास्फीति दो प्रतिशत घट-बढ़ के साथ चार प्रतिशत पर रखने की जिम्मेदारी दी हुई है।
रिजर्व बैंक ने फरवरी 2023 से रेपो यानी अल्पकालिक ब्याज दर को 6.5 प्रतिशत पर बनाये रखा है। विशेषज्ञों का मानना है कि इसमें 2025 में ही कुछ ढील मिल सकती है।
एसबीआई की एक शोध रिपोर्ट में कहा गया है, ”हमें चालू वित्त वर्ष के दौरान दरों में कटौती की उम्मीद नहीं है… पहली दर में कटौती तथा रुख में और बदलाव अप्रैल 2025 में होने की संभावना है।”
विनिर्माण और खनन क्षेत्रों के खराब प्रदर्शन के कारण चालू वित्त वर्ष की जुलाई-सितंबर तिमाही में भारत की आर्थिक वृद्धि दो साल के निचले स्तर 5.4 प्रतिशत पर आ गई।
वित्त वर्ष 2023-24 की जुलाई-सितंबर तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 8.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी।
आरबीआई ने खाद्य मुद्रास्फीति के जोखिम के बीच अपनी पिछली द्विमासिक समीक्षा (अक्टूबर) में भी रेपो दर को नहीं बदला।
एसबीएम बैंक इंडिया के ट्रेजरी प्रमुख मंदार पिताले ने कहा कि आरबीआई को दर में कटौती पर विचार करने के बजाय सीआरआर (नकद आरक्षित अनुपात) में चरणबद्ध कटौती करके नकदी बढ़ाकर वृद्धि को समर्थन देना चाहिए।
हालांकि जमीन, मकान के विकास से जुड़ी कंपनी एसकेए ग्रुप के निदेशक संजय शर्मा ने कहा, ‘‘ रियल एस्टेट क्षेत्र एक महत्वपूर्ण बिंदु पर खड़ा है जहां संभावित रेपो दर में कटौती एक पासा पलटने वाला साबित हो सकती है। यह न केवल घर खरीदारों के लिए वित्तीय बोझ को हल्का करेगा बल्कि बाजार में नई गति लाएगा, मांग को बढ़ावा देगा और दीर्घकालिक निवेश को आकर्षित करेगा।’’