मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ दैनिक जीवन में भावनाओं, इच्छाओं, महत्वाकांक्षाओं एवं आदर्शों में संतुलन बनाए रखने की योग्यता है। इसका अर्थ जीवन की वास्तविकताओं का सामना करने तथा उनको स्वीकार करने की योग्यता है। इस दौर में अधिकांश व्यक्ति मानसिक अशांति के साथ घबराहट, डर, असुरक्षा व बैचेनी आदि का अनुभव करता है और अगर यह दिन-प्रतिदिन की दिनचर्या में शामिल हो जाता है तो वो व्यक्ति मानसिक अस्वस्थता की स्थिति में चल रहा होता है। इसके पीछे कारण है कि व्यक्ति भौतिक और सामाजिक परिस्थितियों में अपने को सही रूप से समायोजित नहीं कर पाता हैं, फलस्वरूप मानसिक द्वंद्व बढ जाता है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मानसिक स्थिति को सुदृढ बनाने के लिए प्रयत्न करते रहना चाहिए।
इस भौतिकवादी युग में मानसिक अस्वस्थता का प्रमुख कारण है-असंतुलित जीवन व्यवहार। जिसमें और अधिक पाने की लालसा ने मानसिक रूप से व्यक्ति को अस्वस्थ बनाया है। पैसा, पद व पावर की अंधी दौड़ में व्यक्ति स्वयं को भूल सा गया है। बल्कि इनका उपयोग सही रूप से नहीं कर पाने के कारण व्यक्ति स्वयं को अकेला महसूस करने लगा है। सही मायने में व्यक्ति का यह आंतरिक खालीपन ही मानसिक अस्वस्थता है। आज व्यक्ति पैसा कमाने की अंधी दौड़ में परिवार, समाज, रिश्ते, नाते सबको को पीछे छोड़ केवल पैसों के पीछे लगा रहता है, इससे पैसों का संग्रह तो बढ जाता है, लेकिन एक समय बाद स्वयं को अकेले पाता है। इसी प्रकार बहुत बड़े-बडे़ पदों पर बैठे लोग अपने पद व पावर का दुरुपयोग करते हुए अनीति व अत्याचार पूर्वक दूसरों को परेशान करते है, दुर्भावना रखते है, योग्य व्यक्तियों को सम्मान नहीं देते है, अनैतिक आचरण करते है, परिणाम स्वरूप व्यक्ति मानसिक तनाव व अवसाद के साथ मानसिक रोगों का शिकार हो जाता है।
व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य चिंतन, भाव एवं व्यवहार पर आधारित है। इसलिए यह ध्यान देना भी जरूरी है कि हमारा चिंतन स्वस्थ हो. भाव शुद्ध व व्यवहार संतुलित होना जरूरी है। व्यक्ति का चिंतन ही भावनाओं को तरंगित करता है यह भावनात्मक तरंगे ही उसे क्रिया के अनुरूप व्यवहार करने के लिए प्रेरित करती हैं। इन तीनों के बीच कोई सीधा स्पष्ट संबंध तो नहीं है लेकिन यह तीनों परस्पर एक दूसरे को प्रभावित करते हैं एवं एक-दूसरे से प्रभावित होते हैं। इन तीनों का विशेष प्रभाव व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है।
मानसिक स्वास्थ्य का नैतिकता से भी सीधा संबंध है, नैतिक, ईमानदार व्यक्ति का संबंध परिवार एवं समाज के साथ अधिक होता है, वे इसे सुनहरा बनाने के लिए परिवार, समाज के प्रति समर्पित होते है। जब व्यक्ति स्वयं को जितना अधिक परिवार एवं समाज का अभिन्न अंग समझने लगता है उतना ही मानसिक रूप से स्वस्थ बनने लगता है। जो व्यक्ति इन नियमों का पालन नहीं करते हैं वे व्यक्ति दूसरों की तुलना में मानसिक रूप से कहीं अधिक अस्वस्थ हो जाते है। परिवार व समाज के साथ अभिन्न जुड़ाव के कारण व्यक्ति में दोष भाव उत्पन्न नहीं होता, परिणाम स्वरूप वे मानसिक रूप से स्वस्थ होते है।
मानसिक रूप से स्वस्थ होने के लिए व्यक्ति में आत्म विश्वास व आत्म सम्मान की भावना का विकास होने के साथ-साथ चिंतन-मंथन व विचार करने का सामथ्र्य भी होना चाहिए। इसके अलावा बुद्धि व विवेक के द्वारा निर्णय लेने की क्षमता का विकास व जीवन में धैर्य के साथ उत्साह भी दिखना चाहिए। स्वयं कमियों के प्रति जागरूक रहत हुए शक्ति व योग्यता का आकलन करने की क्षमता भी मानसिक शक्ति प्रदान करता है। इसके अलावा दूसरों के प्रति सम्मान और श्रद्धा के साथ प्रत्येक परिस्थिति में मन में सदैव प्रसन्नता व प्रफुल्लता का अहसास करते रहने से मानसिक स्वास्थ्य को प्रबल बना सकता है। इसके विपरित मानसिक अस्वस्थ व्यक्ति में इन सबका अभाव होता है।
मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति ही समाज के विकास में अपना विशिष्ट योगदान दे सकता है। किसी भी समाज की प्रगति एवं विकास उस समाज में रहने वाले व्यक्तियों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के साथ नैतिकता पर निर्भर करता है। मानसिक रूप से अस्वस्थ होकर एकाकी जीवन जीने से समाज की प्रगति एवं उन्नति बाधित होती है। मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति न केवल अपनी उन्नति में सहयोगी होता है बल्कि वह अपने परिवार एवं समाज को भी सफलता की नई ऊंचाइयों तक ले जाने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है। इसी प्रकार परिवार एवं समाज का कोई मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति प्रगति यात्रा में बाधा पैदा कर सकता है।
मानसिक रूप से स्वस्थ होने के लिए व्यक्ति छोटी-छोटी बाते अपनाकर अपने जीवन को बदलने का प्रयास करते रहना चाहिए। सबसे पहले व्यक्ति अपने चिंतन को स्वस्थ बनाने का प्रयास करे, यह तभी संभव होगा जब अति-चिंतन से दूर होकर अस्वस्थ विचारों को छोडने का प्रयास करे। इसके अलावा प्रत्येक घटना व परिस्थिति के साथ ताल-मेल के साथ वर्तमान में जीने का अभ्यास करें। अपना व्यक्तिगत व सामाजिक दायरा बढाते हुए दूसरे लोगों से जुड़ने व उनसे बात-चीत करने का प्रयास करे। शारीरिक स्वस्थता के लिए प्रकृति के साथ जुड़ाव रखे और सबसे जरूरी बात व्यक्ति अपने आनन्द व खुशी के लिए कुछ न कुछ रचनात्मक करने का प्रयास भी करें, मानसिक स्वस्थ व्यक्ति के रूप में आपका योगदान समाज में विशिष्ट हो जायेगा।
इस भौतिकवादी युग में मानसिक अस्वस्थता का प्रमुख कारण है-असंतुलित जीवन व्यवहार। जिसमें और अधिक पाने की लालसा ने मानसिक रूप से व्यक्ति को अस्वस्थ बनाया है। पैसा, पद व पावर की अंधी दौड़ में व्यक्ति स्वयं को भूल सा गया है। बल्कि इनका उपयोग सही रूप से नहीं कर पाने के कारण व्यक्ति स्वयं को अकेला महसूस करने लगा है। सही मायने में व्यक्ति का यह आंतरिक खालीपन ही मानसिक अस्वस्थता है। आज व्यक्ति पैसा कमाने की अंधी दौड़ में परिवार, समाज, रिश्ते, नाते सबको को पीछे छोड़ केवल पैसों के पीछे लगा रहता है, इससे पैसों का संग्रह तो बढ जाता है, लेकिन एक समय बाद स्वयं को अकेले पाता है। इसी प्रकार बहुत बड़े-बडे़ पदों पर बैठे लोग अपने पद व पावर का दुरुपयोग करते हुए अनीति व अत्याचार पूर्वक दूसरों को परेशान करते है, दुर्भावना रखते है, योग्य व्यक्तियों को सम्मान नहीं देते है, अनैतिक आचरण करते है, परिणाम स्वरूप व्यक्ति मानसिक तनाव व अवसाद के साथ मानसिक रोगों का शिकार हो जाता है।
व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य चिंतन, भाव एवं व्यवहार पर आधारित है। इसलिए यह ध्यान देना भी जरूरी है कि हमारा चिंतन स्वस्थ हो. भाव शुद्ध व व्यवहार संतुलित होना जरूरी है। व्यक्ति का चिंतन ही भावनाओं को तरंगित करता है यह भावनात्मक तरंगे ही उसे क्रिया के अनुरूप व्यवहार करने के लिए प्रेरित करती हैं। इन तीनों के बीच कोई सीधा स्पष्ट संबंध तो नहीं है लेकिन यह तीनों परस्पर एक दूसरे को प्रभावित करते हैं एवं एक-दूसरे से प्रभावित होते हैं। इन तीनों का विशेष प्रभाव व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है।
मानसिक स्वास्थ्य का नैतिकता से भी सीधा संबंध है, नैतिक, ईमानदार व्यक्ति का संबंध परिवार एवं समाज के साथ अधिक होता है, वे इसे सुनहरा बनाने के लिए परिवार, समाज के प्रति समर्पित होते है। जब व्यक्ति स्वयं को जितना अधिक परिवार एवं समाज का अभिन्न अंग समझने लगता है उतना ही मानसिक रूप से स्वस्थ बनने लगता है। जो व्यक्ति इन नियमों का पालन नहीं करते हैं वे व्यक्ति दूसरों की तुलना में मानसिक रूप से कहीं अधिक अस्वस्थ हो जाते है। परिवार व समाज के साथ अभिन्न जुड़ाव के कारण व्यक्ति में दोष भाव उत्पन्न नहीं होता, परिणाम स्वरूप वे मानसिक रूप से स्वस्थ होते है।
मानसिक रूप से स्वस्थ होने के लिए व्यक्ति में आत्म विश्वास व आत्म सम्मान की भावना का विकास होने के साथ-साथ चिंतन-मंथन व विचार करने का सामथ्र्य भी होना चाहिए। इसके अलावा बुद्धि व विवेक के द्वारा निर्णय लेने की क्षमता का विकास व जीवन में धैर्य के साथ उत्साह भी दिखना चाहिए। स्वयं कमियों के प्रति जागरूक रहत हुए शक्ति व योग्यता का आकलन करने की क्षमता भी मानसिक शक्ति प्रदान करता है। इसके अलावा दूसरों के प्रति सम्मान और श्रद्धा के साथ प्रत्येक परिस्थिति में मन में सदैव प्रसन्नता व प्रफुल्लता का अहसास करते रहने से मानसिक स्वास्थ्य को प्रबल बना सकता है। इसके विपरित मानसिक अस्वस्थ व्यक्ति में इन सबका अभाव होता है।
मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति ही समाज के विकास में अपना विशिष्ट योगदान दे सकता है। किसी भी समाज की प्रगति एवं विकास उस समाज में रहने वाले व्यक्तियों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के साथ नैतिकता पर निर्भर करता है। मानसिक रूप से अस्वस्थ होकर एकाकी जीवन जीने से समाज की प्रगति एवं उन्नति बाधित होती है। मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति न केवल अपनी उन्नति में सहयोगी होता है बल्कि वह अपने परिवार एवं समाज को भी सफलता की नई ऊंचाइयों तक ले जाने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है। इसी प्रकार परिवार एवं समाज का कोई मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति प्रगति यात्रा में बाधा पैदा कर सकता है।
मानसिक रूप से स्वस्थ होने के लिए व्यक्ति छोटी-छोटी बाते अपनाकर अपने जीवन को बदलने का प्रयास करते रहना चाहिए। सबसे पहले व्यक्ति अपने चिंतन को स्वस्थ बनाने का प्रयास करे, यह तभी संभव होगा जब अति-चिंतन से दूर होकर अस्वस्थ विचारों को छोडने का प्रयास करे। इसके अलावा प्रत्येक घटना व परिस्थिति के साथ ताल-मेल के साथ वर्तमान में जीने का अभ्यास करें। अपना व्यक्तिगत व सामाजिक दायरा बढाते हुए दूसरे लोगों से जुड़ने व उनसे बात-चीत करने का प्रयास करे। शारीरिक स्वस्थता के लिए प्रकृति के साथ जुड़ाव रखे और सबसे जरूरी बात व्यक्ति अपने आनन्द व खुशी के लिए कुछ न कुछ रचनात्मक करने का प्रयास भी करें, मानसिक स्वस्थ व्यक्ति के रूप में आपका योगदान समाज में विशिष्ट हो जायेगा।