पुरुषोत्तम राम मानव से भगवान बनने की यात्रा का आदर्श है

0
राम पुरुषोत्तम से भगवान बनने की यात्रा का आदर्श हैं। राम जीवन के गहरे अंधेरे को सूर्य की भांति भेदने में समर्थ हैं। उनका अवतार ईश्वर की बनाई सृष्टि में मनुष्यता द्वारा दिव्यता के प्रति परम भरोसे का पावनतम प्रतीक है। राम मनुष्यता की सांस्कृतिक व आध्यात्मिक रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है। आज जिस आत्मानुशासन की जरूरत है, राम उस कौशल के सिद्ध महारथी हैं। तमाम वैभव में पैदा होकर भी, गृहस्थ जीवन में रहकर साधक बनकर जीवन जीने का पाठ राम से सीखा जा सकता है। राम कहीं भी अति चमत्कारिक बनकर मर्यादा का उल्लंघन नहीं करते हैं। वे समस्त मानव जाति को अपने मूल स्वभाव में स्थित रहकर देवत्व की बराबरी तक पहुंचने की राह दिखाते हैं।
 राम मानवों के लिए दुःख की स्थिति को एक शाश्वत सच की तरह स्वीकार करते हैं और कुशलता से उसे जीकर दिखाते हैं।  राम ने मानव जाति को सिखाया कि अगर ईश्वर मनुष्य बन सकता है तो मनुष्य में भी ईश्वर बनने की सारी संभावनाएं अंतर्निहित हैं। राम इसी सपने को साकार करने के आधार बिंदु हैं। राम का चरित्र  साधनहीन साधारण परिस्थितियों में असाधारण बनने का आत्मविश्वास हैं। राम इस बात के प्रतीक हैं कि सोने के किले और प्रकृति पुत्रों के बीच युद्ध में सदा जनवर्ग ही जीतता है।  राम प्रतिकूलताओं से जूझने की संजीवनी और विचलित निराश मन का उल्लास हैं। उन्होंने सिखाया है कि डर मन को दुर्बल करता है।
राम मानव मानक स्थापित कर महामानव मर्यादा पुरुषोत्तम बने। राम आध्यात्मिक लोकचेतना की मुखरता के द्योतक हैं, राम का आचरण धर्माचरण है, लोक कल्याणकारी धर्माधार है और अहंकारी दशानन के दंभ के मर्दन करने वाले हैं। आज का दिन धन, यश व बल के घमंड के त्याग का दिन है। आज के दिन हम अपने अंतस के रावण को जलाकर अपने दोष मिटाएं। मर्यादामय जीवन जीकर स्वयं राम बन जाने का है।
राम जीवन के गहरे अंधेरे को सूर्य की भांति भेदने में समर्थ हैं। उनका अवतार ईश्वर की बनाई सृष्टि में मनुष्यता द्वारा दिव्यता के प्रति परम भरोसे का पावनतम प्रतीक है। वे दुःख से दूर होने की कोरी कल्पनाओं को पुष्टकरने के बजाय दुःख जैसी मनःस्थिति के कुशल प्रबंधन का मार्ग प्रशस्त करते हैं। रामकथा मनुष्यता की सांस्कृतिक व आध्यात्मिक रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है।
 रामबाण एक सुदृढ़ संकल्प में भरोसे का प्रतीक है। आज जिस आत्मानुशासन की जरूरत है, राम उस कौशल के सिद्ध महारथी हैं। तमाम वैभव में पैदा होकर भी गृहस्थ जीवन में रहकर साधक बनकर जीवन जीने का पाठ राम से सीखा जा सकता है। रामकथा साधनों की न्यूनता के बीच भावनात्मक रूप से सबल होने का राज रामकथा से सीखा जा सकता है। रावण की लंका में बंधन में बंधी, क्रूर मानसिकता की अवस्था में भी सीता की सात्विकता बल आरोपित तामसिकता के सम्मुख बाध्य नहीं थीं। रामकथा भीषण संकट में भी आत्मबल सुरक्षित रखने का रहस्य खोलती है।
राम का सैन्य बल लोक कौशल का अद्भुत संग्रह है। विश्व के सबसे बड़े योद्धा को पराजित करने के लिए राम पड़ोसी राजाओं की मदद लेने के बजाए वंचितों और वनवासियों पर भरोसा करते हैं। राम कहीं भी अति चमत्कारिक बनकर मर्यादा का उल्लंघन नहीं करते हैं। वे मानवीय संवेदनाओं से लड़ने के बजाए उनका सम्मान करना सिखाते हैं। वे समस्त मानव जाति को अपने मूल स्वभाव में स्थित रहकर देवत्व की बराबरी तक पहुंचने की राह दिखाते हैं। राम मानवों के लिए दुःख की स्थिति को एक शाश्वत सच की तरह स्वीकार करते हैं और कुशलता से उसे जीकर दिखाते हैं।
राम का अर्थ बंधन मुक्त होकर परम चेतना के आकाश में रमण करने से है। जिसका अपनी दसों इंद्रियों पर नियंत्रण है, ऐसे दशरथ पिता एवं जिसमें सभी ज्ञानेंद्रियां व कर्मेंद्रियों पर सम्यक संतुलन को कुशलता पूर्वक धारण करने की सामर्थ्य हो, ऐसी कौशल्या को अपने प्रकट होने का मार्ग बनाया है, वे राम ही हो सकते हैं, कोई और नहीं। राम एक जीवन दृष्टि हैं जो अपनी कृपा दृष्टि भर से सब कुछ सही कर देने का दावा नहीं करते, बल्कि अपने मर्यादित पौरुष से सब कुछ संभालने की कला सिखाते है। राम ने मानव जाति को सिखाया कि अगर ईश्वर मनुष्य बन सकता है तो मनुष्य में भी ईश्वर बनने की सारी संभावनाएं अंतर्निहित हैं। राम इसी सपने को साकार करने के आधार बिंदु हैं। 
राम का चरित्र  साधनहीन साधारण परिस्थितियों में असाधारण बनने का आत्मविश्वास हैं।  राम इस बात के प्रतीक हैं कि सोने के किले और प्रकृति पुत्रों के बीच युद्ध में सदा जनवर्ग ही जीतता है। राम की अयोध्या शांति का प्रतीक है तो किष्किंधा प्रकृति से सहकार का प्रतीक और लंका परम बैभव की प्रतीक है। रामकथा यह बताती है कि शांति द्वारा परम वैभव को भी प्रकृति के साहचर्य  के सहारे बड़ी सहजता से पराजित किया जा सकता है। राम प्रतिकूलताओं से जूझने की संजीवनी और विचलित निराश मन का उल्लास हैं। उन्होंने सिखाया है कि डर मन को दुर्बल करता है। दुर्लघ्य को लांघना ही तो मानव की ताकत है। प्राप्त व पर्याप्त के अंतर को समझकर ही संतोष निधि के महत्व को समझा जा सकता है। 
राम संपूर्ण प्राणी जगत के जीवन का संबल हैं, आश्वस्ति का मार्ग हैं और जीवन में पुरुषार्थ के संस्कारों से मिशनरीवत सिद्धियां प्राप्ति का सच हैं। अपनी अनुकरणीय शांत मनःस्थिति जिसका राज्य है, जिसकी कर्मसिद्धि से प्राप्त प्रसिद्धि   खासी चर्चा का साम्राज्य है, अनवरत निष्काम लगन जिसके सुकून का ककून है, जो अपनी उदात्त विनम्र आदतों का सम्राट है, जो धैर्य का अवतार है, जो आत्मतुष्टि का सागर है, वही अयोध्या में रहने वाला राजा राम है। राम संपूर्ण जगत के पुरुषोत्तम हैं तो हमारा राजा राम उच्च शिक्षा का अपनी धुनि का अघोषित राजा है।
 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *